दरभंगा
विश्वविद्यालय संगीत एवं नाट्य विभाग में द्वि दिवसीय संगीत एवं नाट्य विषयक राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्धाटन हुआ जिसमें विषय विशेषज्ञ के रूप में अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञ आमंत्रित हैं । संगीत विषयक कार्यशाला का विषय है वैदिक सामगान तकनीक “और नाट्य विषयक कार्यशाला का विषय है। आलेख, अभिनय और दृश्यात्मकता
संगीत की विशेषज्ञा थीं पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ से पधारीं विदुषी प्रो. पंकजमाला शर्मा एवं नाट्य विषयक कार्यशाला के विशेषज्ञ थे। पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ के एमेरिटस प्रो. महेन्द्र कुमार
कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में मंचासीन
अतिथियों का विभागाध्यक्षा प्रो.लावण्य कीर्ति सिंह ‘ काव्या ‘ ने परम्परागत ढंग से स्वागत किया और सभी मंचासीन अतिथियों ने सम्मिलित रूप से दीप प्रज्वलित कर कार्यशाला का उद्घाटन किया । इसके बाद विभाग के छात्र – छात्राओं के द्वारा कुलगीत प्रस्तुत किया गया ।
उद्घाटन -उद्बोधन में प्रो. पंकजमाला शर्मा ने वैदिक सामगान के तकनीकी पक्ष को उजागर किया तो प्रो. महेन्द्र कुमार ने नाटक में आलेख , अभिनय और दृश्यात्मकता को समझाया । उद्घाटन सत्र का समापन संकायाध्यक्ष प्रो. पुष्पम नारायण द्वारा धन्यवादज्ञापन से हुआ ।
कार्यशाला के नाट्य विषयक प्रथम तकनीकी सत्र में डाॅ. महेन्द्र कुमार ने आलेख , अभिनय और दृश्यात्मकता के अन्तर्गत नाटक के तत्व जैसे अभिनेता, दर्शक, आलेख और दृश्यबन्ध पर विस्तार से छात्रों के साथ प्रश्नोत्तर रूप में चर्चा किया । आलेख के लिखित अलिखित रूप, अभिनेता और वर्चुअल रियलिज्म, दृश्यबंध में विविध प्रकार को सहज और सरल शब्दों में प्रतिभागियों के साथ शेयर किया । इसके अतिरिक्त पार्श्वमंच की भूमिका और महत्व को बताते हुए छात्रों को पूर्व से रचित परिभाषा को स्वयं परख कर स्वयं के लिए नई परिभाषा गढने के लिए प्रेरित किया । उन्होंने आधे -अधूरे नाटक को मूल रूप से उदाहरण के केन्द्र में रखकर आलेख, अभिनय और दृश्यात्मकता को सोदाहरण – व्याख्यान के द्वारा प्रस्तुत किया ।दृश्यबंध में विशेष रूप से रंगों की भूमिका पर भी चर्चा की गई ।
संगीत विषयक कार्यशाला के प्रथम तकनीकी सत्र में वैदिक संगीत की आप्त आचार्या विशेषज्ञा प्रो. पंकजमाला शर्मा ने अपने पांडितयपूर्ण व्याख्यान में वैदिक कालीन सामगान से सम्बन्धित अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डाला । लौकिक अवधारणा से पूर्व वैदिक काल में सप्त स्वरों को सप्त वायु कहा जाता था ।दीप्त, आयत, करूण, मध्य और मृदु इनके पाॅच लक्षण थे । वैदिक वाङ्ग्मय ऋक्,यजुष् और गान के कारण समस्त वैदिक साहित्य श्रुत परम्परा से संचालित थी । उपर्युक्त बातें उन्होंने वैदिक साहित्य में कला की उत्पत्ति ,अवधारणा एवं उपयोगिता के क्रम में कहा कि संगीत एवं नाटक आपस में जुड़े हुए हैं ।
कार्यशाला में भाग लेने वाले प्रतिभागियों में खूब उत्साह दिखाई दिया ।
पुनः कल प्रातः दस बजे से कार्यशाला आरंभ होगा ।