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तीनो काला कानून को रद्द करने बिल पर पुन लोकसभा में बहस हो, और रद्द करने का प्रस्ताव पास हो : माले 

 

तीनो काला कानून को रद्द करने का बिल पर पुन लोकसभा में बहस हो, और रद्द करने का प्रस्ताव पास हो : माले

 

लोकतंत्र व संविधान की हत्या करने वाली है यह तीनो कानून : माले

दरभंगा  तीन नई फौजदारी संहिताओ क्रमश भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता,और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के खिलाफ आज भाकपा(माले) के राष्ट्रव्यापी आवाहन पर आज लहेरियासराय पोलो मैदान से लहेरियासराय टावर तक प्रतिवाद मार्च निकाला गया।

मार्च में तीनो काला कानून को वापस लेने, लोकसभा में पुन बहस कराकर रद्द करने, मोदी सरकार होश में आओ, लोकतंत्र और संविधान की हत्या करना बंद करो आदि नारा लगा रहे है।

 

इस अवसर पर वरिष्ठ नेता आर के सहनी, राज्य कमिटी सदस्य अभिषेक कुमार, इंसाफ मंच के प्रदेश उपाध्यक्ष नेयाज अहमद, हरि पासवान, जिला परिषद सदस्य सुमिंत्रा देवी, साधना शर्मा, मयंक कुमार यादव, उमेश साह, कामेश्वर पासवान, सत्यनारायण पासवान पप्पू, विनोद सिंह, विसनाथ पासवान, प्रवीण यादव, शिवन यादव, अवधेश सिंह, प्रिंस राज सहित कई लोग उपस्थित थे।

 

पोलो मैदान में आयोजित सभा को संबोधित करते हुए माले नेताओ ने कहा की मूलभूत नागरिक स्वतंत्रताएं हैं, जैसे बोलने की स्वतंत्रता, एकत्र होने की स्वतंत्रता, किसी के साथ जुडने की स्वतंत्रता, प्रदर्शन करने की स्वतंत्रता और अन्य नागरिक अधिकारों को अपराध की श्रेणी में लाने के लिए कई कठोर प्रावधान किए गए हैं। यह प्रस्तवाना में दिखाई दे रहा है, क्रूर यूएपीए से “आतंकवादी कृत्य” की विस्तारित परिभाषा ली गयी है, नए नामकरण के साथ कुख्यात राजद्रोह कानून ( भारतीय दंड संहिता- आईपीसी की धारा 124 ए) को कायम रखा गया है और भूख हड़ताल को अपराध बना दिया गया है- ये सभी वैध असहमति और कानूनी उग्र लोकतांत्रिक प्रतिवादों को अपराध बनाने के संभावित औज़ार हैं।

दूसरा, पुलिस को अनियंत्रित शक्तियां दे दी गयी हैं, जिनका देश में नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। गिरफ्तारी के लिए बचावों का अनुपालन किए बगैर पुलिस को व्यक्तियों को निरुद्ध करने का कानूनी अधिकार दे दिया गया है। यह बाध्यकारी कर दिया गया है कि गिरफ्तार आरोपी का नाम, पता और अपराध की प्रकृति का हर पुलिस स्टेशन और जिला मुख्यालय पर भौतिक एवं डिजिटल प्रदर्शन प्रमुख रूप से किया जाये। यह प्रवाधान निजता के अधिकार और किसी व्यक्ति की मानवीय गरिमा के हनन के अलावा बिना औपचारिक दोषसिद्धि के ही व्यक्तियों को पुलिस द्वारा निशाना बनाए जाने को सुगम करता है। हथकड़ी लगाने को वैध बना दिया गया है, जबकि प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ़आईआर) दर्ज करने में पुलिस को विवेकाधिकार दे दिया गया है। सबसे हतप्रभ करने वाली बात यह है कि पुलिस अभिरक्षा की अवधि को वर्तमान 15 दिन से बढ़ा कर 60 या 90 दिन कर दिया गया है, जो कि आरोपी व्यक्ति को धमकाए जाने, उत्पीड़न और खतरे में डालेगा।

 

माले नेताओ ने कहा की मॉब लिंचिंग को लेकर भारतीय न्याय संहिता में आधे अधूरे कदम उठाए गए है। इसमें ऐसे कृत्यो को बिना साफ तौर और ऐसे कहे हुए ही अपराध बनाया गया, धर्म को भीर हिंसा के कारणों के तौर पर शामिल नहीं है।

 

आगे नेताओ ने कहा कि चौथा कारण वे चिंताएँ हैं जो उन प्रावधानों को लेकर हैं, जिनमें मनमानी और अमानवीय सजाओं का प्रावधान कर दिया गया है. हथकड़ी लगाने के अलावा तन्हाई जैसी अमानवीय सजा को वैधानिक मान्यता दे दी गयी है.

अंतिम बात यह कि फ़ौजदारी मामलों का जबरदस्त बैकलॉग (3.4 करोड़ मुकदमें लंबित) है, उसके बीच में इन तीन क़ानूनों को लागू करना, दो समानांतर कानूनी व्यवस्थाएं उत्पन्न करेगा, जिससे और बैकलॉग बढ़ेगा तथा पहले से अत्याधिक बोझ झेल रहे न्यायिक तंत्र पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा.

 

भाकपा(माले) नेताओ ने मांग किया की इस तीनो काला कानून पर संसद में पुन बहस हो और इसे बहस के बाद रद्द करने का प्रस्ताव पास हो। अन्यथा आंदोलन को और तेज किया जायेगा।

 

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