प्राथमिक शिक्षा में मैथिली का स्वागत, लेकिन तुष्टिकरण की राजनीति बर्दाश्त नहीं: डॉ बैजू
पाठशाला
की प्राथमिक कक्षाओं में मैथिली माध्यम से पढ़ाई शुरू किए जाने संबंधी विधानसभा में शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी द्वारा बुधवार को की गई घोषणा का विद्यापति सेवा संस्थान ने स्वागत किया है, लेकिन इसके साथ ही सरकार द्वारा मातृभाषा के नाम पर अपनाई जा रही तुष्टिकरण की राजनीति का विरोध भी किया है। बृहस्पतिवार को संस्थान के महासचिव डॉ बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने कहा कि नौनिहालों में विभिन्न विषयों के प्रति सहजता पूर्वक समझ विकसित करने को लेकर राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा में शिक्षा को लेकर स्पष्ट निर्णय है। बावजूद इसके बिहार सरकार द्वारा वोट की राजनीति को पल्लवित एवं पुष्पित करने की मंशा से मातृभाषा के नाम पर की जा रही तुष्टिकरण की राजनीति की वे निंदा करते हैं।
उन्होंने कहा कि पहले अष्टम अनुसूची में शामिल मैथिली की धरोहर लिपि मिथिलाक्षर को लेकर अनाप-शनाप बयानबाजी करना और अब मातृभाषा के नाम पर मिथिला क्षेत्र को अंग-भंग करने की सरकार की मंशा उजागर हो चुकी है। इसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि जिस फणीश्वर नाथ रेनू की जन्म शताब्दी का हवाला देते हुए शिक्षा मंत्री ने प्राथमिक कक्षाओं में मातृभाषा में पढ़ाई शुरू किए जाने की घोषणा की है, उन्हें जानना चाहिए कि उनकी भी मातृभाषा मैथिली ही रही है। साथ ही, रामवृक्ष बेनीपुरी, जन कवि बाबा नागार्जुन, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर , आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री, आरसी प्रसाद सिंह आदि की भी मातृभाषा मैथिली ही रही है, भले ही उन्होंने अपनी रचना का माध्यम अन्य किसी भाषा को बनाया हो।
उन्होंने कहा कि मिथिला की धरोहर लिपि मिथिलाक्षर को वे कभी भी खारिज नहीं कर सकते। क्योंकि मिथिला के जन-जन में अपनी धरोहर लिपि के प्रति अब न सिर्फ चेतना जाग चुकी है, बल्कि लाखों की संख्या में लोगों ने अपनी इस लिपि को सीखकर अपनी विरासत को पुनर्जीवित कर लिया है।
मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पं कमलाकांत झा ने कहा कि संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल मैथिली भाषा न सिर्फ भाषाई रूप से काफी समृद्ध है बल्कि, इसका वैज्ञानिक आधार होने के साथ ही इसकी स्वतंत्र लिपि मिथिलाक्षर आज संरक्षित, संवर्धित, व्यवहृत और कंप्यूटर फाॅन्ट की सुविधा से संपन्न है। बावजूद इसके तुष्टिकरण की राजनीति के तहत इसे आघात पहुँचाया जाना समझ से परे है।
सरकार के निर्णय पर आपत्ति जताते हुए संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ बुचरू पासवान ने कहा कि सरकार के इस निर्णय से वर्षो से उपेक्षित मैथिली, एक बार फिर से उपेक्षा की शिकार हुई जान पड़ती है और इसके लिए सभी राजनीतिक एवं सामाजिक संगठनों को एक प्लेटफार्म पर आकर अपनी मातृभाषा की अस्मिता की रक्षा के लिए आवाज बुलंद किया जाना समय की मांग है।
महात्मा गांधी शिक्षण संस्थान के निदेशक हीरा कुमार झा ने प्राथमिक कक्षाओं में शिक्षा का अनिवार्य आधार मातृभाषा को बनाए जाने का स्वागत करते हुए आम लोगों से अपने मां की भाषा को अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित करने की अपील की।
साहित्यकार डॉ महेंद्र नारायण राम ने कहा कि संविधान की आठवीं सूची में शामिल मैथिली भाषा को यदि और उपेक्षित किया गया तो अब प्रलाप नहीं, तांडव होगा। उन्होंने स्थानीय जनप्रतिनिधियों से आम मैथिलों के आत्मसम्मान और भाषायी विकास से जुड़े इस मामले को संज्ञान में लेने के लिए धन्यवाद देते कहा कि अब मातृभाषा के प्रति संवेदनशीलता को इसके विकास का आधार बनाने के लिए और अधिक प्रयास करने का समय आ गया है।
मैथिली भाषा के सम्मान की रक्षा के लिए जन आंदोलन को समय की मांग बताते हुए संस्थान की मीडिया संयोजक प्रवीण कुमार झा ने जनप्रतिनिधियों एवं सामाजिक संगठनों के साथ ही उच्च शिक्षा के विभिन्न विभागों में कार्यरत मैथिलीभाषी लोगों से भी अपनी मातृभाषा के समुचित सम्मान व विकास के लिए आगे आने का आह्वान किया।
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