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ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के तत्त्वावधान में  एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। ‘

 

हिंदी के अप्रतिम रचनाकार फणीश्वरनाथ रेणु के शतवार्षिक जन्मोत्सव के रूप में हिंदी-विभाग, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के तत्त्वावधान में  एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। ‘फणीश्वर नाथ रेणु के साहित्य का समकालीन संदर्भ’ विषयक इस संगोष्ठी की अध्यक्षता माननीय कुलपति प्रो सुरेंद्र प्रताप सिंह ने की कुलपति महोदय ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सर्वप्रथम फणीश्वरनाथ रेणु की स्मृतियों को स्मरण किया और उनके जन्मदिवस की शुभकामनाएं दी। उन्होंने बताया कि सेमिनार की गुणवत्ता के लिए न केवल स्तरीय वक्ताओं की आवश्यकता होती है, बल्कि उत्तम सेमिनार श्रोताओं की गंभीरता और ग्रहणशीलता पर निर्भर करती है। उन्होंने समाज से विशेष तौर से जुड़े रेणु की रचनात्मक विषयवस्तु के संदर्भ को स्पष्ट करने के लिए समाज-विज्ञान के चिंतन पर ध्यान दिलाया और बताया कि समाज की धड़कन को पहचानने से अनुभव का संसार सृजित होता है और यह अनुभव ही रचनाशीलता में परिणत होता है। कुलपति महोदय के पश्चात कुलसचिव डॉ मुस्ताक अहमद ने अपने अभिभाषण में रेणु को इंसानी जज्बात का रचनाकार बताया और कहा कि वे हकीकी फनकार हैं। इंकलाब, रोमांस और इंसानी हकीकी की त्रिवेणी से युक्त रेणु की रचनाओं को मानने वाले अहमद साहब ने रेणु को वास्तविक मानव पीड़ा का रचनाकार बताया। कुलसचिव के पश्चात प्रतिकुलपति का व्याख्यान हुआ। प्रतिकुलपति प्रो डॉली सिन्हा ने रेणु को बिहार की विभूति कहा और बताया कि कष्ट, दमन और शोषण के विरुद्ध ही उनकी लेखनी नहीं चली, बल्कि उनकी रचनाओं में संवेदना के अनेक स्तर भी विकसित हुए।
कार्यक्रम में स्वागत भाषण हिंदी-विभागाध्यक्ष प्रो राजेंद्र साह के द्वारा दिया गया, जिसमें उन्होंने कुलपति महोदय का स्वागत करते हुए उनके कर्मठ और प्रेरक व्यक्तित्व की चर्चा की| इसके अलावा उन्होंने कार्यक्रम के अन्य आगत-अतिथियों का स्वागत करने के पश्चात बताया कि मिथिलांचल की धरती के सर्वप्रमुख रचनाकार रेणु हैं, जो प्रेमचंद के बाद सबसे बड़े रचनाकार माने जा सकते हैं| कार्यक्रम में विषय-प्रवर्तन करते हुए पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो चन्द्रभानु प्रसाद सिंह ने रेणु के व्यक्तित्व और उनके जीवन-संघर्षों की विस्तृत चर्चा की| उन्होंने बताया कि व्यापक राजनीतिक-सामाजिक सक्रियता के साथ ही रेणु ने अपने लेखन-कर्म को अंजाम दिया| रचनात्मक गत्यावरोध को तोड़ने वाले रचनाकार के रूप में रेणु पर चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि रेणु समग्र मानवीय दृष्टि के रचनाकार हैं| उनके साहित्य ने हाशिए के लोगों को केंद्र में लाकर ,एक बड़ी रचनात्मक लड़ाई लड़ी है| डॉ सिंह ने रेणु द्वारा स्थापित मानदंड को आज तक दुर्लंघ्य बताते हुए कहा कि जातीय संघर्ष और गांव के बदलते संदर्भ से रेणु का साहित्य आंचलिकता के संदर्भ को जीवंत अभिव्यक्ति दे सका है और इस जीवंतता के कारण ही उनमें सार्वदेशिकता आ सकी है।
इस संगोष्ठी का आयोजन ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों रूप में किया गया। संगोष्ठी में ऑनलाइन जुड़े अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कमलानंद झा ने अपने विशेष व्याख्यान में रेणु की किसान-चेतना की चर्चा करते हुए उन्हें सबसे बड़े रचनाकारों में एक माना और बताया कि रेणु का संपूर्ण साहित्य संपूर्ण तरह से राजनीतिक है। अपने व्याख्यान में उन्होंने रेणु की महत्वपूर्ण रचना ‘नेपाली क्रांति कथा’ को केंद्र में रखकर विमर्शात्मक बातें कीं डॉ झा ने कुदाल, बंदूक और कलम के लेखक के रूप में रेणु को याद किया। इस प्रसंग में उन्होंने खेती और लेखन के अंतर्संबंध के दृष्टिकोण और रेणु के विचार भी व्यक्त किए  रेणु के आंदोलनधर्मी चरित्र से उनके समकालीन संदर्भों को जोड़कर प्रो झा ने अपने व्याख्यान को विमर्श के कई पहलुओं से जोड़ा प्रो रविंद्र कुमार वर्मा ‘रवि’, बी.आर.ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर के पूर्व कुलपति ने अतिथि वक्ता के रूप में अपने विशेष व्याख्यान में सर्वप्रथम समकालीनता के संदर्भ को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया। उन्होंने समकालीनता में गतिशीलता और प्रासंगिकता के स्रोत को चिह्नित किया और बताया कि रचनाकार के प्रासंगिक होने का तात्पर्य तत्कालीन संदर्भों से जुड़कर शाश्वत होते जाने की प्रक्रिया से है। इसी क्रम में उन्होंने नकारात्मकता को भी मनुष्य की आस्था की ओर उन्मुख कर सकने की क्षमता से जोड़कर रचना की श्रेष्ठता की पहचान की बात की डॉ रवि ने अपनी चर्चा के दौरान रेणु को पूरी तरह से व्यवस्था के बरक्स खड़े लेखक के रूप में याद किया और बताया कि शोषण, अन्याय और भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए ही रेणु ने कलम चलायी रेणु में जो समानता का स्वप्न है उसे उन्होंने उनकी देश चिंता से जोड़ा समापन सत्र में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली के प्राध्यापक जगदेव कुमार शर्मा जी ने मैला आंचल उपन्यास पर विस्तारपूर्वक चर्चा की तथा इस उपन्यास के विभिन्न पक्षों को उन्होंने समकालीन संदर्भों से जोड़ा उन्होंने रेणु की रचनाओं में सत्य और तथ्य की वस्तुनिष्ठ स्थिति पर भी ध्यान दिलाया और रेणु के समकालीन राजनीतिक चिंतन से जुड़ाव एवं गतिविधियों में उनकी सहभागिता को भी अपने व्याख्यान में स्पष्ट किया इनका व्याख्यान ऑनलाइन माध्यम से प्रस्तुत किया गया एम. एल.एस.एम. कॉलेज, दरभंगा के डॉ अमरकांत एवं डॉ सतीश कुमार सिंह तथा जे.एम.डी.पी.एल, महिला कॉलेज, मधुबनी की डॉ निवेदिता ने भी रेणु के जीवन, उनके समकालीन संदर्भों और उनसे जुड़े विमर्शात्मक प्रश्नों पर गंभीरतापूर्वक चर्चा की| संगोष्ठी में कनीय शोधप्रज्ञ कृष्ण अनुराग ने अपने आलेख का पाठ किया जबकि डॉ. प्रिया कुमारी ने नाट्य मुद्रा में ‘लाल पान की बेगम’ कहानी के कुछ दृश्यों को प्रदर्शित किया।

कार्यक्रम का प्रारंभ आगत-अतिथियों को पाग, चादर एवं पुष्पगुच्छ के द्वारा सम्मानित करने से हुआ।  तत्पश्चात दीप-प्रज्वलन एवं स्नातकोत्तर हिंदी-विभाग की छात्राओं के द्वारा स्वागत गान किया गया। कार्यक्रम तीन सत्रों में आयोजित हुआ जिसके प्रथम सत्र में कार्यक्रम का संचालन विभाग के प्रोफेसर डॉ विजय कुमार ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन श्री अखिलेश कुमार ने किया। दूसरे सत्र में कार्यक्रम का संचालन हिंदी-विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ विजय कुमार के उद्बोधन से हुआ। समापन सत्र का संचालन हिंदी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ आनंद प्रकाश गुप्ता के द्वारा किया गया।

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