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सैकड़ों कांवरियों ने गंगाजल से बाबा सिद्धेश्वरनाथ का किया जलाभिषेक दरभंगा News 24 live -ajit kumar singh

सैकड़ों कांवरियों ने गंगाजल से बाबा सिद्धेश्वरनाथ का किया जलाभिषेक

मनीगाछी प्रखंड के टटुआर पंचायत अंतर्गत विशौल गांव स्थित प्राचीन श्री श्री 108 बाबा सिद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर में सिमरिया से पैदल गंगाजल लाकर टटुआर एवं विशौल सहित आसपास के पड़ोसी गांव के सैकड़ों कमरथुओं ने बृहस्पतिवार को जलाभिषेक किया। वहीं मोटरसाइकिल एवं अन्य वाहनों से गंगाजल लाकर जलाभिषेक करने वाले भक्तों की कतार देर शाम तक लगी रही।
इससे पहले गांव के मध्य विद्यालय के समीप स्थित पोखर से भव्य कलश यात्रा की शक्ल में कच्चा जल लाकर 108 कुंवारी कन्याओं ने बाबा पर अर्पित किया। मंदिर प्रबंधन समिति के सदस्यों ने रंग- बिरंगी झांकियों एवं ढोल-नगाड़े के साथ पैदल कांवर यात्रियों का गांव की सीमा पर अगवानी की और हर हर महादेव के जयघोष के साथ मंदिर के प्रांगण में पहुंचे। मंदिर प्रबंधन कमेटी के अध्यक्ष प्रो जीवकांत मिश्र ने बताया कि परंपरा के अनुसार शिवरात्रि के अवसर पर रात्रि में चारों पहर शिव विवाह की पूजन रस्म की अदायगी की जाएगी। साथ ही, महाशिवरात्रि महोत्सव के दौरान देवी कथा वाचन यज्ञ के साथ ही सांस्कृतिक व साहित्यिक रसधार बहेगी।
उधर, देवी भागवत कथा वाचन यज्ञ के तीसरे दिन महाशिवरात्रि के अवसर पर कथावाचक आचार्य भोगी झा ने भक्तों को बताया कि मिथिला की बेटियां गौरी को क्यों पूजती हैं। उन्होंने कहा कि मिथिला की हर बेटी सीता के बजाय गौरी जैसा भाग्य चाहती हैं। जबकि जनक नंदिनी जानकी ने भी शिव जैसे पति की ही चाहत की थी। जिसके पास ना राज था, ना सत्ता थी और ना ही कोई घर-बार। क्योंकि वह जानती थी कि शिव के पास जो है वह सब कुछ गौरी का है और शिव गौरी के हैं। उन्होंने कहा कि शिव के जीवन में गौरी का महत्व हर स्त्री के लिए आज भी मानक के रूप में प्रचलित है। जिस शिव के क्रोध से समस्त सृष्टि डरती है वह गौरी के गुस्से से डरते रहे। उन्होंने उदाहरण देकर भक्तों को समझाया कि किस प्रकार गौरी और शिव के बीच का अनोखा सामंजस्य एक पति पत्नी के बीच का सर्वोत्तम रूप है। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि सदियों से शिव का यह पारिवारिक रूप किसी भी ईश्वर के अवतार या मानव से कहीं अधिक लोकप्रिय हैं।
कथा वाचन के क्रम में उन्होंने महाशिवरात्रि के महत्व की भी विस्तार से चर्चा की और कहा कि चूंकि शिव और गौरी का विवाह अर्धरात्रि लग्न में हुआ था। इसलिए आज भी मिथिला में बेटी की शादी उचित शादी के लिए कुछ अलग नहीं मिलने पर अर्धरात्रि के लग्न को शुभ लग्न मान कर विवाह यज्ञ को संपन्न करते हैं।

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