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मिथिला विभूति सम्मान से सम्मानित हुए मंत्री, विधान पार्षद एवं कुलपति

 

मिथिला विभूति सम्मान से सम्मानित हुए मंत्री, विधान पार्षद एवं कुलपति

मंत्री पद की शपथ मातृभाषा मैथिली में लेने वाले बिहार सरकार के जल संसाधन मंत्री संजय कुमार झा एवं कला संस्कृति मंत्री आलोक रंजन झा के साथ विधान पार्षद घनश्याम ठाकुर एवं ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो सुरेंद्र प्रताप सिंह को विद्यापति सेवा संस्थान के तत्वावधान में शुक्रवार को दो सत्रों में आयोजित अभिनंदन समारोह में मिथिला विभूति सम्मानोपाधि प्रदान की गई। कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो शशि नाथ झा की अध्यक्षता में आयोजित समारोह की विधिवत शुरुआत एमएलएसएम कॉलेज की छात्रा श्रुति, शालिनी एवं पन्नू द्वारा गाए विद्यापति रचित गोसाउनि गीत जय जय भैरवि… पर सृष्टि फाउंडेशन की छात्रा प्रियांशी मिश्रा द्वारा ओडीसी नृत्य की शैली में भावपूर्ण नृत्य की प्रस्तुति के साथ हुआ। मौके पर बतौर विशिष्ट अतिथि पीजी हिंदी विभाग के सेवानिवृत्त अध्यक्ष डॉ प्रभाकर पाठक एवं एमएलएसएम कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ विद्या नाथ झा उपस्थित हुए।
मौके पर अपने सम्मान से अभिभूत संजय कुमार झा ने कहा कि अपने घर में ऐसा सम्मान पाकर वे आज स्वयं में कई गुना अधिक ऊर्जा का संचार होता पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मैथिली में शपथ लेकर हमने अपने मैथिल होने का कर्तव्य निभाया है, लेकिन हमें मिथिला मैथिली के विकास में अटल बिहारी वाजपेयी के अवदानों को नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने साढे सात करोड़ में मैथिलों की भाषा मैथिली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के साथ ही मिथिला के विकास के अनेक दरवाजे खोले। उन्होंने इशारों-इशारों में कहा कि आज मैथिली विषय के साथ दूसरे राज्यों के छात्र भी सिविल सेवा में सफल हो रहे हैं यह मिथिला और मैथिली के लिए बहुत कुछ सीखने की बात है।
उन्होंने कहा कि प्राथमिक कक्षा तक की पढ़ाई मैथिली भाषा में होने को न सिर्फ स्वीकृति मिल चुकी है, बल्कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने इसके लिए व्यक्तिगत रुचि लेकर एनसीईआरटी के निदेशक से मैथिली भाषा में पढ़ाई की शुरुआत करने को लेकर मॉड्यूल बनाने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा कि यदि प्राथमिक शिक्षा की पढ़ाई मैथिली भाषा में कराए जाने का मॉड्यूल सफल हो गया, तो ऊपर की कक्षाओं की पढ़ाई मैथिली भाषा में होने से कोई रोक नहीं सकता। इसी तरह, उन्होंने मिथिला की धरोहर लिपि मिथिलाक्षर के संरक्षण व संवर्धन को लेकर केंद्र व राज्य सरकार कृतसंकल्प है और वह एक कमेटी बनाकर उसके द्वारा सुझाए गए प्रस्तावों के क्रियान्वयन में जुटा हुआ है। जिसके तहत जल्दी ही दरभंगा के किसी एक विश्वविद्यालय में मिथिलाक्षर प्रशिक्षण केंद्र खोला जाएगा। अपने संबोधन में उन्होंने सभी मैथिली भाषी लोगों खासकर मैथिली भाषा के शिक्षकों को यथाशीघ्र मिथिलाक्षर सीख लेने का अनुरोध किया।
दरभंगा एयरपोर्ट के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री की पहल पर विधानसभा एवं विधान परिषद से संकल्प पारित हो जाने के बाद यह निश्चित हो गया है कि दरभंगा एयरपोर्ट का नामकरण कवि कोकिल विद्यापति के नाम पर होगा। लेकिन एयरपोर्ट के निर्माण में दरभंगा महाराज के अमूल्य योगदान को भी नहीं भुलाया जा सकता । एयरपोर्ट से उनका भी जुड़ाव बना रहे इसके लिए उनका प्रयास होगा कि एयरपोर्ट पर दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह के मूर्ति का अनावरण कर उनके कृतित्व को प्रेरणादायी बनाई जा सके।
उन्होंने कहा कि बिहार को बाढ़ की आपदा से मुक्त कराना उनकी प्राथमिकता है और इसके लिए वे जी जान से जुटे हुए हैं। उन्होंने बाढ़ के आपदा की स्थिति के लिए सीधे तौर पर नेपाल को कसूरवार मानते हुए कहा कि अब पहले जैसी स्थिति नहीं रहने दी जाएगी। उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि पावर किसी एक का कभी भी गुलाम नहीं रहा है, लेकिन यदि किसी ने दूरदर्शिता के साथ अपनी क्षमताओं का इस्तेमाल किया है तो वह अपनी कृतियों में सदैव अमर हुए हैं। मिथिला की ऐसी ही एक शख्सियत थे ललित बाबू। उनका प्रयास होगा कि उनके सपनों को साकार कर विकसित मिथिला का निर्माण किया जाए। उन्होंने कहा कि मिथिला का इतिहास अभी भी अधूरा है और इसके लिए यहां बड़े पैमाने पर खुदाई की जरूरत है।

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो सुरेंद्र प्रताप सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि मिथिला की भूमि सदा सर्वदा से ऊर्जा की मुख्य स्रोत रही है और मुझे भी यहां से शायद कुछ विशेष ऊर्जा प्राप्त हो रही है, जिस कारण वे अपनी जवाबदेही का उद्देश्य पूर्ण निर्वहन करने में कामयाब हो रहे हैं। उन्होंने स्वयं को सम्मानित करने के प्रति आभार जताते हुए विद्यापति सेवा संस्थान के उत्तरोत्तर प्रगति की कामना की, ताकि हजारों करोड़ों लोगों को अपनी भाषा व संस्कृति के साथ साथ इस क्षेत्र के चतुर्दिक विकास के लिए ऊर्जा प्राप्त होता रहे। विधान पार्षद घनश्याम ठाकुर ने कहा कि वे मरते दम तक मिथिला मैथिली के सर्वांगीण विकास के लिए आवाज उठाते रहेंगे। समारोह में पीजी हिंदी विभाग के सेवानिवृत्त अध्यक्ष डॉ प्रभाकर पाठक ने भी अपने विचार रखे।
अध्यक्षीय संबोधन में कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो शशिनाथ झा ने मिथिला मैथिली के विकास के लिए सेवा करने वाले लोगों के सम्मान में इस तरह के आयोजन को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि इससे सेवा में लगे लोगों में उर्जा का संचार होने के साथ-साथ शेष लोगों में ऐसा करने का भाव जागृत होता है, जो अत्यंत शुभ दायक है।
मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पंडित कमलाकांत झा ने कार्यक्रम के संचालन के क्रम में मिथिला एवं मैथिली के विकास से जुड़े नेशनल एग्रो कोरिडोर की स्थापना सहित अनेक मुद्दों को अत्यंत सारगर्भित तरीके से उठाया। संस्थान के महासचिव डॉ बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने मिथिला विभूति सम्मान से सम्मानित होने वाले विभूतियो के कृतित्व एवं व्यक्तित्व को प्रमुखता से रेखांकित करते हुए मिथिला एवं मैथिली के सर्वांगीण विकास के लिए पृथक मिथिला राज्य के गठन की आवश्यकता पर बल दिया। धन्यवाद ज्ञापन प्रधानाचार्य डॉ विद्यानाथ झा ने किया। कार्यक्रम के दौरान महाविद्यालय की पत्रिका प्रतिबिंब एवं मणिकांत झा की लिखी पुस्तक लाॅकडाउनमणि का विमोचन भी किया गया। मौके पर डॉ महेंद्र नारायण राम, मणिकांत झा, प्रो विजय कांत झा, विनोद कुमार झा, प्रवीण कुमार झा, डॉ श्रीपति त्रिपाठी, डाॅ अनिल कुमार झा, डॉ रमेश झा, आशीष चौधरी चौधरी फूल कुमार राय, डाॅ राम सुभग चौधरी, डॉ राम मोहन झा, नवल किशोर झा, डाॅ सुषमा झा, दुर्गानंद झा, महानंद ठाकुर आदि की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।

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