अरुण अपनी नसबंदी करा कर दूसरों के लिए बने प्रेरणा स्रोत
•अपने साथ चार अन्य लोगों की कराई नसबंदी
•अब लोगों को कर रहे नसबंदी के प्रति जागरूक
•नसबंदी के प्रति पुरुषों की बदल रही सोच
मधुबनी परिवार नियोजन में हमेशा महिलाओं की पुरुषों की तुलना में अधिक भागीदारी दिखती है। महिला नसबंदी के मुकाबले पुरुष नसबंदी की संख्या नगण्य होना पुरुषों में जागरूकता के अभाव को प्रदर्शित करता है। लेकिन जिले के लौकही प्रखंड के, जरौली कुशमाही ग्राम के अरुण राम ने इस मिथक को तोड़ कर नया कीर्तिमान स्थापित किया है। उन्होंने न केवल अपनी नसबंदी कराई बल्कि अपने साथ चार अन्य लोगों का भी नसबंदी करवाई है।
अरुण राम कहते हैं उनके मन में यह दूर दूर तक सोच नहीं थी कि पुरुष अपनी नसबंदी भी करा सकते हैं। अगर परिवार में नियोजन की बात आती है तो यह जिम्मेदारी सिर्फ महिलाओं की ही होती है। लेकिन आज उन्हें यह यकीन हो गया कि पुरुष नसबंदी महिला नसबंदी की तुलना में न सिर्फ सरल होती है पर अधिक सुरक्षित भी होती है। उन्होंने बताया स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों तथा केयर इंडिया के कर्मियों के द्वारा उन्हें पुरुष नसबंदी को लेकर विस्तार से जानकारी दी गई। इससे उनके मन में पुरुष नसबंदी को लेकर जो भ्रांति थी वह दूर हो गई यही कारण था कि वह स्वेक्षा से अपनी नसबंदी कराने को तैयार भी हो गए।
जिम्मेदारियों ने परिवार नियोजन के साधनों को अपनाने को किया प्रेरित:
अरुण राम ने बताया वह जिस माहौल में रहे हैं वहां किसी पुरुष को आज तक नसबंदी कराते उन्होंने नहीं देखा और ना ही अपने मित्रों के बीच इस पर कभी चर्चा ही हुई। आसपास जब भी परिवार नियोजन की बातें होती थी तो केवल महिला बंध्याकरण की ही चर्चा होती थी। यही कारण है कि समुदाय में लोग पुरुष नसबंदी के प्रति कम जागरूक होते हैं। उन्होंने बताया उनकी शादी अट्ठारह की उम्र में हो गई थी। कम उम्र में शादी होने के कारण उन्हें कुछ सालों में 4 बच्चे भी हो गए लेकिन किसी कारण बस उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई। उन्होंने बताया पत्नी की मृत्यु के बाद उन्होंने दूसरी शादी की और उससे भी उन्हें एक संतान हुआ इस तरह परिवार में सदस्यों की संख्या काफी बढ़ गई। वह कहते हैं, मैं चाय की दुकान चला कर अपना तथा परिवार का भरण पोषण करता हूं मेरे ऊपर इतने बड़े परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी आ गई। मैंने सोचा पत्नी का बंध्याकरण करा दिया जाए। परंतु फिर स्वास्थ्य विभाग के लोगों के द्वारा समझाने पर मुझे पुरुष नसबंदी बेहतर लगा और मैंने नसबंदी कराई उन्होंने बताया उन्हें यह पूरा भरोसा हो गया। कि पुरुष नसबंदी सुरक्षित और आसान है साथ ही नसबंदी के बाद सरकार की तरफ से 3000 रुपए की प्रोत्साहन राशि भी मिलती है। इसलिए उन्होंने इसके बारे में अपने दो संबंधी तथा दो अन्य गांव के लोगों को इसके विषय में समझाया उनके समझाने से सभी नसबंदी कराने के लिए राजी हो गए इस तरह सब ने मिलकर नसबंदी का रास्ता चुना।
भ्रम से मिली मुक्ति:
अरुण राम के संबंधी (बहनोई) चंदेश्वर राम ने बताया उन्होंने अरुण राम से प्रेरित होकर अपनी नसबंदी कराई पहले उन्हें इस बात का डर था कि कहीं नसबंदी के बाद शारीरिक क्षमताओं में किसी तरह की कमी नहीं आ जाए लेकिन नसबंदी के बाद वह पहले की तरह स्वस्थ हैं। इससे शारीरिक एवं यौन क्षमता में कोई कमी नहीं आई है। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि पुरुषों को पत्नी का ऑपरेशन कराने के बजाय खुद का ऑपरेशन कराना चाहिए। महिला का ऑपरेशन चीरा लगाकर किया जाता है। इससे उन्हें असहनीय पीड़ा तो होती ही है साथ ही भविष्य में परेशानियां होने की संभावना रहती है लेकिन पुरुषों ऑपरेशन बिना चीरा लगाए दूरबीन से किया जाता है। ऑपरेशन के बाद पुरुष हर तरह के काम कर सकते हैं। इसलिए पुरुषों को नसबंदी कराने के लिए आगे आना चाहिए।
धीरे-धीरे लोग होंगे जागरूक:
गांव के मुखिया राज नारायण प्रसाद ने बताया सरकार भी चाहती है पुरुष नसबंदी को बढ़ावा मिले गांव के लोग जागरूक हो रहे हैं वह भी अपने स्तर से प्रयास करते रहते हैं। धीरे-धीरे ही सही आने वाले समय में समाज में पुरुष भी परिवार नियोजन जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करने लगे हैं उन्होंने कहा लोगों को यह समझना होगा कि परिवार नियोजन से सिर्फ जनसंख्या स्थिरीकरण नहीं होता बल्कि इससे परिवार में खुशी और खुशहाली भी बढ़ती है।