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नासा ने भी स्वीकार किया है कि संस्कृत सबसे वैज्ञानिक और प्राचीन भाषा है।

नासा ने भी स्वीकार किया है कि संस्कृत सबसे वैज्ञानिक और प्राचीन भाषा है। संस्कृत की शिक्षा आपको केवल कर्मकांडों तक ही सीमित नहीं रखती बल्कि पारंपरिक ज्ञान के आधार को विस्तृत करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वर्तमान समय में ऐसे युवाओं की संख्या फिर से बढ़ रही है, जो संस्कृत भाषा के जरिए अपने करियर को गढ़ने का प्रयास कर रहे हैं। उक्त बातें संस्कृत विश्वविद्यालय के दरबार हॉल में चिति बिहार प्रांत द्वारा स्वीकृत व मिथिला लोकमंथन द्वारा आयोजित सर्जना कौशल विकास शिविर के पांचवे दिन बौद्धिक संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित भारत सरकार के पूर्व मंत्री व वर्तमान विधान पार्षद श्री संजय पासवान ने कही। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा और भारतीय संस्कृति का बड़ा गहरा संबंध है। भारत की सैकड़ों – हजारों पीढि़यों का अनुभव संस्कृत भाषा में सुरक्षित है। इस प्राचीन ज्ञान को सहेजने के लिए भारत सरकार ने नेशनल ट्रेडिशनल डिजिटल लाइब्रेरी का निर्माण किया है।
वहीं अपने अध्यक्षीय संबोधन में संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं धर्मशास्त्र व दर्शन के विद्वान विभागाध्यक्ष श्रीपति त्रिपाठी ने कहा कि समाज में पूर्वाग्रह के कारण आमतौर पर यह माना जाता है कि संस्कृत भाषा का अध्ययन करने के बाद रोजगार की बहुत कम संभावनाएं शेष रहती है। यह धारणा तथ्यहीन होने के साथ-साथ समाज की अपरिपकृता का उदाहरण भी है। संस्कृत भाषा एंव विषय के अध्ययन के पश्चात युवाओं के लिए रोजगार के अनेक अवसर उपलब्ध है, जिसके बार में विद्यार्थियों और अभिभावओं को जानकारी होना अति आवश्यक है। तभी वे संस्कृत भाषा के अध्ययन की ओर अभिमुख होंगे। साथ ही उन्होंने संस्कृत में रोजगार के विभिन्न क्षेत्रों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि भारत को विश्व गुरु बनाने में संस्कृत का अमूल्य योगदान रहा है।
विशिष्ट वक्ता के रूप में उपस्थित ज्योतिष के प्रकांड अलौकिक विद्वान डॉ० कुलानंद झा ने कहा कि पश्चिमी परिवेश में पले-बढे़ कुछ तथाकथित विद्वान समय-समय पर इस बात की घोषणा करते रहते हैं कि संस्कृत एक मृत भाषा है। यह आकलन बहुत भ्रामक है। भारत का बढ़ता मध्यमवर्ग जहां उपभोक्तावादी जीवनशैली को अपना रहा है, वहीं दूसरी तरफ पारंपरिक संस्कारों के प्रति भी उसकी आस्था बढ़ रही है। ज्योतिष की लोकप्रियता में तो काफी वृद्धि हुई है। इस कारण संस्कृत को एक नया जीवन मिला है और वह करियर के लिहाज से एक सक्षम विषय बनकर उभरी है।
विशिष्ट वक्ता के रूप में उपस्थित कर्मकांड के विद्वान विभागाध्यक्ष प्रो० विदेश्वर जाने कहा कि क्षेत्र में करियर की भरपूर संभावनाएं हैं। संस्कृत संस्थानों से पढ़ाई करके आप बेहतरीन करियर बना सकते हैं। कर्मकांडों को कराने के अलावा संस्कृत भाषा के अनुवादक के रूप में भी काम किया जा सकता है। बड़े-बड़े मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर पुजारी का कार्य भी कर सकते हैं। इसके अलावा शासकीय नौकरियों में भी शास्त्री और आचार्यों की भर्ती की जाती है। सेना में भी आप इसकी पढ़ाई करके सेवारत हो सकते हैं।
वहीं विशिष्ट वक्ता के रूप में उपस्थित व्याकरण के विद्वान प्रो० साधना शर्मा ने कहा कि संस्कृत से जुड़ी हुई सर्वाधिक रोचक बात यह है कि इसका पठन-पाठन करने वाले विद्यार्थियों को रोजगार के लिए सरकार का मुंह नहीं ताकना पड़ता। संस्कृत का ज्ञान पूजा-पाठ, कुंडली मिलान, सोलह संस्कारों का संपादन, विद्यार्थियों के लिए स्वरोजगार के व्यापक अवसर उपलब्ध कराता है। इन सब कारणों से संस्कृत दिन- प्रतिदिन का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। वर्तमान समय में संस्कृत भाषा में लोगों की रुचि पैदा हो, संस्कृत की तरफ अधिक से अधिक विद्यार्थी आकर्षित हों, इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए इस प्रकार कार्यक्रम निश्चित रूप से लाभान्वित होंगे।
वहीं कार्यक्रम में विषय प्रवेश व स्वागत भाषण में मिथिला लोकमंथन के कार्यक्रम संयोजक डॉ० कन्हैया चौधरी ने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रम का आयोजन निश्चित रूप से संस्कृत भाषा एवं इससे जुड़े हुए व्यक्तियों के लिए लाभदायक साबित होगा। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रम का आयोजन का मुख्य उद्देश संस्कृत भाषा के प्रति लोगों में गिरती रुचि को पुनः उत्थान करने का है।
इस कार्यक्रम में अजीत चौधरी,उमेश झा ने भी संबोधित किया।
कार्यक्रम की उद्घाटन विधिवत दीप प्रज्ज्वलित कर व मंगलाचरण से की गई तथा अतिथियों का स्वागत पाग व अंगवस्त्र से किया गया तथा मेनका,सुनैना,अंजलि,रीना एवं संध्या ने स्वागत गान गाकर किया।
कार्यक्रम का संचालन सुष्मिता कुमारी व धन्यवाद ज्ञापन मुकेश कुमार झा ने किया।
कार्यक्रम में दामिनी गुप्ता,संध्या,मेनका,सुनैना,पूजा,डॉली, मणिकांत ठाकुर,पिंटू भंडारी,सूरज मिश्रा,राजेश कुमार व विवेक कुमार,आनंद मोहन सहित कई युवा युवती उपस्थित थे।

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