प्रो चंद्रिका प्रसाद सिंह लिखित श्रीदुर्गासप्तशती- चंद्रिका का इग्नू क्षेत्रीय केन्द्र, दरभंगा में हुआ लोकार्पण
लोककल्याण की कामना से हिंदी में काव्यानुवाद शक्तिपीठ मिथिला में चंद्रिका प्रसाद रचित ग्रंथ होगी काफी लोकप्रिय- प्रो प्रभाकर
सनातन धर्मावलंबी तथा संस्कृत न जानने वालों के बीच हिन्दी में रचित श्रीदुर्गासप्तशती- चंद्रिका लाभदायक- डा शंभू शरण
संस्कृत में रचित श्रीदुर्गा सप्तशती का हिंदी में भावानुवाद सरल, मनोहर एवं लेखक का स्तुत्य प्रयास- प्रो जीवानंद
ज्ञान, कर्म और भक्ति की त्रिविध धारा युक्त हिन्दी ग्रन्थ भक्तों के लिए कल्पतरू- डा चौरसिया
गेयतायुक्त 13अध्यायों के इस ग्रंथ में संस्कृतनिष्ठ एवं हिन्दीनिष्ठ शब्दों का पूर्णतः प्रयोग- प्रो चंद्रिका
प्रो चंद्रिका प्रसाद सिंह ‘विभाकर’ लिखित श्रीदुर्गासप्तशती- चंद्रिका पुस्तक का लोकार्पण समारोह इग्नू क्षेत्रीय केंद्र, दरभंगा के सभागार में आयोजित किया गया। इग्नू के वरीय क्षेत्रीय निदेशक डा शंभू शरण सिंह की अध्यक्षता में आयोजित उक्त कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में मिथिला विश्वविद्यालय के पूर्व मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो प्रभाकर पाठक, विशिष्ट अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो जीवानंद झा तथा सी एम कॉलेज, दरभंगा के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा आर एन चौरसिया सहित लेखक प्रो चंद्रिका प्रसाद सिंह ‘दिवाकर’, डा मुकेश कुमार निराला, संजीव कुमार, डा रामबाबू आर्य,डा पल्लवी मरवाहा, डा बिंदु चौहान, राजकुमार गणेशन, राजीव कुमार, इला सिंह, शैलेंद्र नाथ तिवारी, मोमित लाल, अनिल कुमार सिंह, मदन मोहन ठाकुर, शिक्षक विनोद कुमार, अशोक कुमार यादव, डा हरे कृष्ण झा सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
अपने संबोधन में प्रो प्रभाकर पाठक ने कहा कि लोककल्याण की कामना से हिंदी में काव्यानुवाद शक्तिपीठ मिथिला में काफी लोकप्रिय सिद्ध होगा। इस ग्रंथ की लोकप्रियता असंदिग्ध है, क्योंकि यह जनभाषा हिंदी में लिखित है। काव्य का प्रथम धर्म लोककल्याण होता है। यह ग्रंथ अधिकांश लोगों के लिए बोधगम्य एवं प्रेरक है जो मातृभक्ति एवं संवेदना प्रधान है। यह मूल ग्रंथ की अनुकृति है।
अध्यक्षीय संबोधन में डा शंभू शरण सिंह ने कहा कि सनातन धर्मावलंबियों व संस्कृत न जानने वालों के बीच हिंदी में रचित यह ग्रंथ काफी लाभदायक सिद्ध होगा। साधारण जन भी इसका पाठ कर देवी दुर्गा की कृपा से लाभान्वित हो सकेंगे। काव्य शब्द प्रधान नहीं, वरन् भाव प्रधान होता है। मेरे मित्र लेखक ने काफी परिश्रम कर इस ग्रंथ की रचना की है, जिसमें मूल ग्रंथ का अर्थ और भाव दोनों सुरक्षित है।
प्रो जीवानंद झा ने कहा कि संस्कृत में रचित श्रीदुर्गासप्तशती का हिंदी में भावानुवाद सरल, मनोहर है जो लेखक का स्तुत्य प्रयास है। देवी- देवता भाव के भूखे होते हैं, जिसका ध्यान लेखक ने काव्य में रखा है। स्तुति, पूजा आदि की दृष्टि से यह ग्रंथ महानतम प्रयास है। इसके शब्द सरस, मनोहर एवं संस्कृतनिष्ठ हैं।
ग्रंथ के लेखक प्रो चंद्रिका प्रसाद ‘विभाकर’ ने कहा कि गेयतायुक्त 13 अध्यायों के इस ग्रंथ में संस्कृतनिष्ठ एवं हिंदीनिष्ठ शब्दों का पूर्णतः प्रयोग हुआ है, जिसमें देवी दुर्गा के स्वरूप एवं महत्त्व वर्णित हैं। मंगलाचरण तथा स्तुति के साथ ही सारे मंत्र हिंदी में उपलब्ध हैं। मां भगवती की कृपा से सहजता पूर्वक मेरे द्वारा इस ग्रंथ का लेखन हुआ जो जनकल्याण हेतु समर्पित है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में डा आर एन चौरसिया ने कहा कि ज्ञान, कर्म और भक्ति की त्रिविध धारा युक्त हिंदी में लिखित श्रीदुर्गा सप्तशती- चंद्रिका भक्तों के लिए कल्पतरू है। इसमें लेखक का प्रयास सार्थक, सराहनीय एवं अनुकरणीय है। ग्रंथ अपने उद्देश्य में पूर्णतः सफल सिद्ध होगा। इसके पारायण से भक्त देवी की कृपा से मनोवांछित वस्तु एवं इच्छा पूर्ण कर सकेंगे। इससे इहलौकिक एवं पारलौकिक सारे सुख- भोग प्राप्त होंगे।
आगत अतिथियों का स्वागत एवं समारोह का विद्वतापूर्ण संचालन इग्नू के सहायक निदेशक डा राजीव कुमार ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन सहायक कुलसचिव राजेश कुमार शर्मा ने किया।