दरभंगा महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउंडेशन के द्वारा महाराजा कामेश्वर सिंह का 112 वां जन्मदिवस कल्याणी निवास में मनाया गया। कार्यक्रम
की अध्यक्षता पटना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर भारती एस कुमार ने की। शुरुआत भगवती वंदना से हुई, तत्पश्चात महाराजा कामेश्वर सिंह के तैल चित्र पर आगत अतिथियों द्वारा माल्यार्पण किया गया। इस अवसर पर आयोजित महाराजा कामेश्वर सिंह मेमोरियल लेक्चर प्रोफेसर महेश रंगराजन, पूर्व निदेशक जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल संग्रहालय एवं पुस्तकालय, नयी दिल्ली ने “नेचर एण्ड नेशन : इकाॅलोजी, सोसाइटी एण्ड हिस्ट्री इन कंटेम्पररी इंडिया ” विषय पर दिया। प्रोफेसर महेश रंगराजन ने कहा कि ” प्रकृति और राष्ट्र के बीच का संबंध सर्वव्यापी है, किन्तु अवधारणा की दृष्टि से कम भी है। बहुत से राष्ट्र-राज्यों के अपने अपने राष्ट्रीय पशु, पक्षी, पर्वत या नदी उनके राष्ट्रीय पहचान के प्रतीक हैं। किन्तु जब ये राष्ट्रीय प्रतीक दूसरे लोगों या राष्ट्रों से बांटे जाते हैं तो इनमें काफी आपसी संघर्ष भी होते हैं। उदाहरण के लिए बाघ छः एशियाई देशों के राष्ट्रीय पशु है, अमरीकी इतिहास में “सेव बिशन मिशन” ने भी काफी गति पकड़ा । अमाजोन का क्षेत्र, जो कई लैटिन अमेरिकी देशों में फैला हुआ है, का ब्राजील के लिए विशेष महत्व है।
अब प्रश्नों पर गौर करें, क्या राष्ट्र-राज्य प्रकृति को शान्ति के समय सुरक्षित रखते हैं या उसे अपनी आवश्यकतानुसार घेरते जा रहे हैं। या फिर, प्रकृति को घेरने की साज़िश है। या फिर, राष्ट्र के लिए संरक्षित प्रकृति के संघर्ष में हारने वाले भी हैं। साथ ही प्रश्न उठता है कि दो सौ से अधिक ये राष्ट्र शांति के लिए कैसे कार्य करते हैं, न केवल एक दूसरे के लिए अपितु पूरे पृथ्वी ग्रह के लिए। इतिहास इन प्रश्नों का न तो कोई तैयार समुचित समाधान प्रस्तुत करता है और न ही कोई उदाहरण या पाठ प्रस्तुत करता है। किन्तु इतिहास यह समझने में जरूर सहायता करता है कि हम कहां से आये हैं और कैसे आये हैं। हमारे वर्तमान स्थिति के लिए कौन-कौन कारक कारण हैं और इनमें प्रकृति कैसे है। आज राष्ट्र और प्रकृति दोनों संक्रमण की दौड़ से गुजर रहे हैं। दोनों एक-दूसरे पर आज अधिक आश्रित हैं। इतिहास हमें यह संबंध समझने में इसके रहस्यों को सुलझाने में सहायक है। प्रर्यावरण प्रकृति के विज्ञान को समझने की कोशिश है। प्रकृति के लिए राष्ट्र की सीमा बेमानी होती है। बीस एशियाई देशों की मानसून की गति को समझने के लिए हिन्द महासागर एवं प्रशान्त महासागर की जलवायु को समझना होगा। राष्ट्र की सीमा हमें अलग करती है, किन्तु प्रकृति एक दूसरे से जोड़ती है। द्वितीय विश्व युद्ध में एशिया के तीन हजार हाथियों को भी झोंक दिया, हाथियों के अलावे असंख्य घोड़े एवं खच्चरों को भी झोंका गया। कुदरत को विकास का दुश्मन माना लिया गया और हरित क्रांति के दौर में सबसे ज्यादा जंगल और जानवर नष्ट हुए। अब यही विकास हमारे विनाश का कारण बनता जा रहा है।
कार्यक्रम के आरंभ में पद्मश्री मानस बिहारी वर्मा ने आगत अतिथियों का स्वागत किया। महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह बिहार हेरिटेज सीरीज के अधीन स्वर्गीय प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी की कालजई अप्रकाशित ग्रंथ “पोलिटिकल एण्ड कल्चरल हेरिटेज आॅफ मिथिला” का लोकार्पण किया गया और इस पुस्तक को समाज के समक्ष प्रोफेसर कृष्ण कुमार मंडल, इतिहास विभाग, भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर ने प्रस्तुत किया। प्रोफेसर मंडल ने कहा कि मिथिला का वैज्ञानिक इतिहास तब तक नहीं लिखा जा सकता है, जबतक कि हम प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी के इतिहास लेखन के पैमाने का अनुसरण नहीं करते हैं। इस पुस्तक ने मिथिला के इतिहास के कई विवादास्पद तिथियों को स्पष्ट किया है।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में पटना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर भारती एस कुमार ने दरभंगा राज के विस्तृत सांस्कृतिक और राजनीतिक आर्थिक अवदानों पर प्रकाश डाला। प्रोफेसर कुमार ने दिवंगत प्रोफेसर हेतुकर झा जी को याद किया और मिथिला के बौद्धिक एवं सांस्कृतिक इतिहास पर प्रकाश डाला। अध्यक्ष महोदया ने मंच से सरकार से मांग की कि मिथिला को धरोहर घोषित किया जाय।
आगत अतिथियों के प्रति आभार कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो रामचंद्र झाजी ने प्रकट किया।