दरभंगा बिहार में जन्मे देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 135 वीं जयंती के अवसर पर महाराजाधिराज लक्ष्मेश्वर सिंह संग्रहालय,
दरभंगा में संग्रहालय के तकनीकी सहायक चंद्रप्रकाश के संग सामाजिक कार्यकर्ता फवाद गज़ाली द्वारा जयंती मनाई गई। उल्लेखनीय है कि दरभंगा में जब डॉ. राजेन्द्र प्रसाद मिथिला संस्कृत शोध संस्थान की स्थापना के लिए सन 1951ई० में आए थे तब महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह ने उनका स्वागत सत्कार किया था और अपने महल नरगौना पैलेस के हैदराबाद सूट (वर्तमान में अंग्रेजी विभाग) में उन्हें हाथी दांत के सिंहासन पर आसीन कर सम्मानित किया गया था। श्री प्रकाश ने बताया कि उक्त हाथी दांत का सिंहासन वर्तमान समय में महाराजाधिराज लक्ष्मेश्वर सिंह संग्रहालय में संग्रहित है। जो कि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के आगमन की सुनहरी स्मृति के रूप में एक अनमोल धरोहर है। मौके पर मौजूद सामाजिक कार्यकर्ता श्री गज़ाली ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए बताया कि राजेन्द्र प्रसाद गांधीजी के मुख्य शिष्यों में से थे और उन्हें कई भाषाओं का ज्ञान भी था जिनमें से उन्हें फारसी और संस्कृत का विद्वान माना जाता था।