•कुष्ठ रोग एवं फाइलेरिया से प्रभावित मरीजों के लिए एक दिवसीय ट्रेनिंग आयोजित
•अमेरिकन लेप्रोसी मिशन, लेप्रा सोसायटी तथा जिला स्वास्थ्य समिति के तत्वावधान में चलाई जा रही जागृति परियोजना
समस्तीपुर जिले के कल्याणपुर प्रखंड के बासुदेवपुर ग्राम के मनरेगा भवन में कुष्ठ रोग एवं फाइलेरिया से प्रभावित मरीजों के लिए एक दिवसीय ट्रेनिंग का आयोजन किया गया। , जागृति परियोजना के तहत 20 कुष्ठ एवं फाइलेरिया से प्रभावित व्यक्तियों को जीविकोपार्जन हेतु 25000 रुपए की धनराशि तीन किस्तों में दी जानी है। ताकि वह अपने जीविका उपार्जन में इसका उपयोग कर सकें और स्वरोजगार को अपना सकें। ,कल्याणपुर प्रखंड के 130 गांव में जिला स्वास्थ्य समिति, अमेरिकन लेप्रोसी मिशन तथा लेप्रा सोसायटी के संयुक्त तत्वावधान में जागृति परियोजना चलाई जा रही है। इस परियोजना के अंतर्गत 9 रोगों से बचाव एवं स्वच्छता संबंधित जानकारी दी गई। , इस परियोजना के अंतर्गत 4434 फाइलेरिया एवं 314 कुष्ठ रोग से प्रभावित लोगों का रजिस्ट्रेशन किया जा चुका है। जागृति परियोजना के अंतर्गत अब तक 987 फाइलेरिया प्रभावित व्यक्ति व 77 कुष्ठ प्रभावित व्यक्ति को सुरक्षात्मक चप्पल एवं स्वयं सुरक्षा किट प्रदान किया जा चुका है। लेप्रा सोसायटी के स्टेट प्रोग्राम मैनेजर अमर सिंह ने ट्रेनिंग में मरीजों को संबोधित करते हुए बताया कि लेप्रोसी या कुष्ठ रोग एक जीर्ण संक्रमण है। , जिसका असर व्यक्ति की त्वचा, आंखों, श्वसन तंत्र एवं परिधीय तंत्रिकाओं पर पड़ता है। यह मायकोबैक्टीरियम लैप्री नामक जीवाणु के कारण होता है। हालांकि यह बीमारी बहुत ज्यादा संक्रामक नहीं है, लेकिन मरीज के साथ लगातार संपर्क में रहने से संक्रमण हो सकता है।
कुष्ठ रोग से संबंधित भ्रांतियां-
लोगों का मानना है कि कोढ़ की बीमारी वंशानुगत रोग है। लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है यह संक्रमण की चपेट में आने से होता है।
•कुष्ठ रोग कोई ईश्वरीय प्रकोप, पुराने जन्मों का पाप या अन्य कोई श्राप नहीं है बल्कि यह जीवाणु की चपेट में आने से होता है जो कि व्यक्ति को उम्र के किसी भी दौर में अपनी चपेट में ले सकता है।
•बहुत से लोगों का मानना है कि अगर माता या पिता को कुष्ठ रोग है तो बच्चे को भी यह बीमारी हो सकती है। लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है, क्योंकि यह बीमारी जीन में होती।
•लोगों का मानना है कि कुष्ठ रोग लाइलाज बीमारी है। लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है, कुष्ठ रोग से जुड़ी ऐसी बहुत सी दवाएं हैं जिनकी मदद से इससे हमेशा के लिए छुटकारा पाया जा सकता है।
लेप्रा सोसायटी के स्टेट प्रोग्राम मैनेजर अमर सिंह ने बताया कि लेप्रोसी पीड़ित व्यक्ति के खांसने या छींकने पर उसके श्वसन तंत्र से निकलने वाले पानी की बूंदों में लेप्रे बैक्टीरिया होते हैं। ये बैक्टीरिया हवा के साथ मिलकर दूसरे व्यक्ति के शरीर में पहुंच जाते हैं। स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में पहुंच कर इन बैक्टीरिया को पनपने में करीब 4-5 साल लग जाते हैं। कई मामलों में बैक्टीरिया को पनपने (इन्क्यूबेशन) में 20 साल तक लग जाते हैं। प्राइमरी स्टेज पर लेप्रोसी के लक्षणों की अनदेखी करने से व्यक्ति अपंगता का शिकार हो सकता है । यह संक्रामक है, पर यह लोगों को छूने, साथ खाना खाने या रहने से नहीं फैलता है। लंबे समय तक संक्रमित व्यक्ति के साथ रहने से इससे संक्रमण हो सकता है, पर मरीज़ को यदि नियमित रूप से दवा दी जाए, तो इसकी आशंका भी नहीं रहती है।
मौके पर जीविका के बृजेश कुमार, लेप्रा सोसाइटी के आकाश कुमार सिंह, मोबलाइजर मनीषा कुमारी ,लालबाबू पंडित ,सरिता कुमारी आदि उपस्थित थे.।