नैनो तकनीक आने वाले समय में मानव जीवन के लिए काफी उपयोगी : प्रति-कुलपति
शोधार्थियों और प्राध्यापकों को नैनो तकनीक पर शोध कार्य करने की आवश्यकता
– तकनीक दुनिया को दिखाती है नई रास्ता : कुलसचिव
– ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर भौतिकी विभाग में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फेंस की हुई शुरुआत
नैनो तकनीक आने वाले समय में मानव जीवन के लिए काफी उपयोगी होगी। इसके लिए शोधार्थियों एवं प्राध्यापकों को नैनो तकनीक पर शोध कार्य करने की आवश्यकता है। अब तक जो शोध कार्य नैनो तकनीक पर किए गए हैं उसका फायदा समाज को मिल रहा है। उक्त बाते मंगलवार को ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के विश्वविद्यालय भौतिकी विभाग की ओर से “रिसेंट एडवांस इन नैनोसाइंस, नैनोटेक्नोलॉजी एंड एडवांस फक्शनल मैटिरियल्स” (आरएएनएनएएफएम-2023) विषय पर विश्वविद्यालय परिसर स्थित जुबली हॉल में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस की शुरुआत करते हुए प्रति-कुलपति प्रो. डॉली सिन्हा ने कहीं। प्रति-कुलपति ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि नैनो तकनीक की खोज से कृषी, व्यवसाय, मानव के जीवन-यापन के साथ अन्य क्षेत्रों में काफी बदलाव आया है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण सिलिकॉन बेस्ट सिटी है। नैनो तकनीक ने ही कंप्यूटर फंक्शन का पूरा पावर स्मार्ट फोन में उपलब्ध करा दिया है। पहले तकनीक के उपयोग करने में काफी बिजली की खपत होती थी, लेकिन नैनो तकनीक के कारण बहुत कम अब बिजली की खपत हो रही है। वर्षों की मेहनत के बाद एक वैक्सीन तैयार की जाती थी, लेकिन नैनो तकनीक के कारण कुछ माह के अंदर ही प्रोयगशाला में कोरोना वैक्सीन विकसित कर लिया गया। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन और ऑफलाइन मोड में अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन करना और इतनी बड़ी संख्या में देश व दुनिया के जाने-माने प्राध्यापकों व रिसर्च स्कॉलरों को बुलाना भौतिकी विभाग के लिए बड़ी उपलब्धि है। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष प्रो. अरुण कुमार सिंह और उनकी टीम बधाई के पात्र हैं।
विश्वविद्यालय के विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो. एस.के. वर्मा ने अपने व्याख्यान में कहा कि माननीय कुलपति के कुशल नेतृत्व के कारण ही आजकल अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियाँ बार-बार आयोजित की जा रही हैं। आज के दौर में नैनो तकनीक एक लोकप्रिय शब्द बन गया है। पुरातन सभ्यता में भी नैनो तकनीक संबंधित चीजों का उल्लेख किया गया है। नैनो तकनीक अपने आपमें एक क्रांतिकारी तकनीक है, इसका परिणाम समाज को दिख रहा है। इस कॉन्फ्रेंस से जो निष्कर्ष निकलेगा, उससे शोधार्थियों को काफी लाभ होगा।
अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के सह-संरक्षक विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. मुश्ताक अहमद ने कहा कि तकनीक दुनिया को नई रास्ता दिखाती है। विश्वविद्यालय का कार्य केवल विद्यार्थियों को सिलेबस पढ़ाना नहीं है। विद्यार्थियों को यह भी अवगत कराना है कि बदलते समय के साथ कौनसी नई तकनीक आ रही है। नैनो तकनीक आज चिंतन का विषय है। मुझे इस बात की खुशी है कि विश्वविद्यालय भौतिकी विभाग ने आधुनिक समय के अनुसार, विषय का चयन करके अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन कर रहा है। इससे आने वाले दिनों में छात्रों को जरूर लाभ मिलेगा। कुलपति महोदय के नेतृत्व में विश्वविद्यालय में रिसर्च के लिए बेहतर रोडमैप तैयार हो रहा है। इसका उदहारण विश्वविद्यालय में स्थापित राज्य का पहला मल्टीपर्पस मीडिया लैब है। उन्होंने कहा कि मैं नये रिसर्च स्कॉलरों से आह्वान करना चाहता हूं कि वे नैनो तकनीक पर शोध करें, क्योंकि नैनो तकनीक मानव जीवन के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होने वाला है।
कॉन्फ्रेंस की संयोजिका पूजा अग्रवाल ने विषय-प्रवेश किया। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में नैनो तकनीक के सभी क्षेत्रों को कवर किया जायेगा, जिससे रिसर्च स्कॉलर्स को काफी लाभ मिलेगा।
उद्घाटन सत्र में आगत अतिथियों का स्वागत करते हुए विश्वविद्यालय भौतिकी विभागाध्यक्ष सह अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष प्रो. अरुण कुमार सिंह ने कहा कि आधुनिक समय में नैनो तकनीक की उपयोगिता को देखते हुए इस विषय पर कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई है। मुझे उम्मीद है कि कॉन्फ्रेंस के बाद विश्वविद्यालय और बाहर से आये रिसर्च स्कॉलर्स नैनो तकनीक के क्षेत्र में शोध कार्य करने के लिए प्रेरित होंगे। कॉन्फ्रेंस में ऑनलाइन और ऑफलाइन के माध्यम से जुड़े देश-दुनिया के विद्वानों और रिसर्च स्कॉलरों का स्वगात करता हूं।
उद्घाटन सत्र में अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के आयोजन सचिव प्रो. सुरेंद्र कुमार ने किया। राष्ट्रगान से उद्धाटन सत्र का समापन हुआ। उद्घाटन सत्र में दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. हरे कृष्ण सिंह, प्रो. अशोक कुमार मेहता, डॉ. दिवाकर झा, डॉ. मो. ज्या हैदर, डॉ. अवनि रंजन सिंह, डॉ. दमन कुमार झा, डॉ. अरविंद कुमार मिलन, डॉ. दीपक कुमार के साथ कई विभागों के विभागाध्यक्ष, प्राध्यापक, रिसर्च स्कॉलर्स व अन्य शामिल थे।