जल ग्यान शिखर सम्मेलन मे डा सुनील ने रचा इतिहास
मधुबनी जिला के खिरहर गाँव निवासी एवं पथ निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियंता डा सुनील कुमार चौधरी ने एन आइ टी पटना में 52वे इण्डियन वाटर वर्क्स कन्वेंशन के तत्वावधान में आयोजित जल ग्यान शिखर सम्मेलन
” बदलते परिवेश में जल संरक्षण और गुणवत्ता प्रबंधन में दक्षता और लचीलापन ” मे चार शोध पत्र प्रस्तुत कर राष्ट्रीय स्तर पर बिहार का परचम लहराने के साथ एक इतिहास रच डाला ।अभी तक इण्डियन वाटर वर्क्स कन्वेंशन के इतिहास में डा चौधरी के अलावा कोई और अभियंता तक सिन्गल औथरसिप में चार शोध पत्र प्रस्तुत नहीं कर सके हैं । वे जल ग्यान शिखर सम्मेलन में पानी, अपशिष्ट जल, स्वछता,ठोस अपशिष्ट और पर्यावरण प्रबंधन पर चार शोध पत्र प्रस्तुत करने वाले भारत, बिहार एवं पथ निर्माण विभाग के पहले अभियंता हैं।डा चौधरी के शोध पत्र का शीर्षक था- 1.वाटर रिसोर्स डेवलपमेंट एण्ड मैनेजमेन्ट इन इण्डिया 2.डिजास्टर रिस्क रिडक्सन थ्रू फ्लड रेजिलिएन्ट प्लानिंग स्ट्रेटजी इन फ्लड प्रोन् एरिया औफ बिहार 3.डिटेरियोरेसन औफ ग्राउन्ड वाटर क्वालिटी इन बिहार:इम्प्लिकेसन एण्ड मैनेजमेन्ट एवं 4.क्लाइमेट चेन्ज एडप्टेसन एण्ड ड्राउट रिस्क रिडक्सन-ए केस स्टडी औफ राजस्थान । पर्यावरण संरक्षण एवं जल संरक्षण कर सुरछित समाज के लिए कृतसंकल्पित तथा विज्ञान एवं तकनीक के विभिन्न पहलुओं को समाज के अन्तिम पंक्ति के लोगों तक पहुंचाने को कटिबद्ध डा चौधरी ने जल स्रोतों के विकास एवं प्रबंधन, जल स्रोतों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव वाटर गवरनेन्स, जल क्षेत्र की प्रमुख चुनौती एवं उनके रणनीतिक समाधान सहित आगे की राह पर विस्तार से चर्चा की ।जल संरक्षण एवं पर्यावरण संरक्षण एवं आपदा रोधी समाज निर्माण आन्दोलन के पर्याय बन चुके डा चौधरी ने जलवायु परिवर्तन जनित जल आपदा, भूमिगत जल स्रोतों के गिरते स्तर एवं प्रबंधन पर बड़े ही सहज-सरल एवं रोचक ढंग से प्रकाश डाला । डा चौधरी ने भूगर्भ जल के गिरते स्तर पर गंभीर चिंता जताते हुए इस गंभीर संकट से निपटने के नवोन्मेष उपाय सुझाये ।उन्होने बताया कि बिहार हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन जनित जल आपदा से जुझता रहा है जिससे निपटने के लिए जल साक्षरता अभियान चलाने की जरूरतहै। डा चौधरी ने बताया कि हाल के वर्षों में वर्षा के पैटर्न जो बदलाव हुआ है, वो चिंता का विषय है एवं जल संकट तथा जलवायु परिवर्तन के कारण अगले विश्व युद्ध की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता ।उन्होने आहार,पईन की पुनर्जीवित करने तधा मौजुदा तालाब एवं अन्य जल स्रोतों के डिसिल्टीन्ग की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होने उन्होने बताया कि भारत एक बहुआपदा प्रवण देश है जो बाढ एवं सुखाड़ की मार झेलता रहा है । भारत का 12% हिस्सा बाढ एवं 28% हिस्सा सुखाड़ से प्रभावित है जबकि बिहार का 73% हिस्सा बाढ एवं 48% हिस्सा सुखाड़ से प्रभावित है ।ऐसे में जरूरी है कि जल की मांग एवं आपूर्ति का प्रबंधन में नवाचार प्रयोग किये जाय।उन्होंनें सतही जल एवं भूगर्भ जल के प्रदूषण पर चिन्ता जताते हुए जल प्रदूषण के कारण और निदान पर विस्तार से चर्चा की ।उन्होने माइक्रो प्लास्टिक, मेडिकल वेस्ट एवं आर्सेनिक जनित जल प्रदूषण एवं उससे निपटने के अभिनव एवं सस्ते तरीकों के बारे में जानकारी दी ।उन्होने बाढ प्रभावित इलाकों मे में फ्लड रेजिलिएन्ट प्लानिंग के माध्यम से आपदा के खतरे को कम करने की वकालत की ।उन्होने डिजास्टर रेजिलिएन्ट बिलडिन्ग डिजाइन एवं इमरजेन्सी रिस्पांस डिजाइन की जोरदार वकालत की ।उन्होंनें बताया कि बाढ प्रभावित इलाकों मे घर के निर्माण एवं प्रबंधन में सेल्फ़ सस्टनेबल, इनवरान्मेन्टल सस्टनेबल, क्लाइमेट एवं डिजास्टर रेजिलिएन्ट एप्रोच अपनाया जाय। डा चौधरी ने भारत में जलवायु परिवर्तन जनित आपदा सुखाड़ के सम्बन्ध में राजस्थान पर एक केस स्टडी प्रस्तुत किया जिसके माध्यम से सुखाड़ के प्रभाव, चुनौती, समाधान पर प्रकाश डाला रेन वाटर हार्वेस्टिंग के महत्व को समझाते हुए स्थानीय लोगों द्वारा जल संरक्षण एवं प्रबंधन क सक्सेस स्टोरी को बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया । उन्होने बताया कि माननीय मुख्यमन्त्री श्री नीतीश कुमार के गतिशील नेतृत्व में “जल जीवन हरियाली “अभियान जलवायु परिवर्तन जनित आपदा से समाज को सुरछित करने की दिशा में एक अभिनव प्रयोग है ।उन्होने बताया कि जिस तरह से जनसंख्या वृद्धि हो रही है एवं प्रदूषण, अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन बढ रहा है जल प्रबंधन में इन्ट्रीगेट एप्रोच को बढ़ावा देने की नितांत जरूरत है।उन्होने बताया कि अगर श्री नीतीश कुमार ,माननीय मुख्यमंत्री के सपना”सुरछित बिहार विकसित बिहार “को साकार करना है तो “जल जीवन हरियाली “अभियान को समाजयोपयोगी आ्दोलन का रूप देकर जन जन तक पहुंचाने का काम करना होगा, आहार पईन ,तालाब को पुनर्जीवित करना होगा, जल के नये श्रोत तलाशने होगे ,जल उपयोग को औप्टोमाइज करना होगा, कार्बन डाई ऑक्साइड अवशोषित करने वाला वृक्षारोपण करना होगा एवं डिजास्टर रेजिलिएन्ट निर्माण एवं प्रबंधन को बढ़ावा देना होगा ।।उन्होने बताया कि विकास ऐसा हो जो विनाश से बचाये ,विकास ऐसा हो जो पर्यावरण को बचाये तथा विकास ऐसा हो जो सतत प्रगति की राह को दिखाये। ज्ञातव्य हो कि इस सम्मेलन में सिन्गापुर,कनाडा, जर्मनी,70 संस्थान समेत देश विदेश के 700 अभियंता भाग ले रहे हैं एवं करीब 119 शोध पत्र प्रस्तुत किये जा रहे हैं । डा चौधरी ने इस शिखर सम्मेलन में अभियंताओ् से आह्वान किया कि जल संरक्षण, जल प्रदूषण, जल प्रबंधन तथा डिजास्टर रेजिलिएन्ट निर्माण एवं प्रबंधन अभिनव में सस्ते, ग्रीन एवं क्लीन टेक्नोलॉजी अपनाये , साथ ही पॉलिसी एवं गवरनेन्स में आमूल-चूल परिवर्तन लाकर लागू करने की हिम्मत दिखाये। इसके लिए समाज में लोगो को जागरूक करना होगा ।पिछले वर्षों में बिहार में जल संरक्षण, प्रबंधन तथा डिजास्टर रेजिलिएन्ट निर्माण एवं प्रबंधन के क्षेत्र में अभूतपूर्व काम हुआ है।पर्यावरण प्रबंधन एवं डी आर आर रोड मैप बनाया गया है ।क्लाइमेट एवं डिजास्टर रेजिलिएन्ट निर्माण पर बड़े पैमाने पर काम हो रहा है । ऐसे में पारम्परिक निर्माण एवं प्रबंधन में बदलाव की जरूरत है ।डा चौधरी ने निर्माण कार्य में अभिकल्प एवं मटेरियल के विशिष्टयो एवं प्रबंधन नीतियों में बदलाव की जरूरत की जोरदार वकालत की एवं इस दिशा में शोध को बढ़ावा देने की जरूरत बताई ।उन्होने निर्माण कार्य में प्लास्टिक, जूट,भेटिभर ग्रास,फ्लाइ ऐश के उपयोग पर बल दिया ।।उन्होने बताया कि ऐसे पौधों को लगाने की जरूरत है जो कार्बन डाई ऑक्साइड का शोषण कर सके। उन्होने बताया कि इनवरान्मेन्टल सस्टनेबल एवं सेल्फ़ सस्टनेबल डिजास्टर रेजिलिएन्ट निर्माण एवं प्रबंधन पर समाज के हर तबके को जागरूक करने के अभियान को एक आन्दोलन का रूप देकर पूरा देश में फैलाने की जरूरत है । डा चौधरी अन्तरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर के तकनीकी एवं सामाजिक संगठनों से जुड़कर जलवायु परिवर्तन जनित आपदा एवं उससे निपटने के लिए डिजास्टर रेजिलिएन्ट एवं कौस्ट इफेक्टिव टेक्नोलॉजी को समाज के अन्तिम पंक्ति के लोगों तक पहुंचाने का काम करते रहे हैं ।हाल के वर्षों में जिस तरह से विज्ञान एवं तकनीक के विभिन्न पहलुओं पर शोध कार्य को विभिन्न प्लेटफार्म पर प्रस्तुत करते रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि उनका शोध किसी खास विषय की सीमा में बाधा हुआ नहीं है ।ऐसे बहुमुखी प्रतिभा के धनी डा चौधरी पर बिहार को गर्व है ।डा चौधरी बिहार राज्य अभियंत्रण सेवा संघ के पूर्व सचिव भी रह चुके हैं ।उन्होने निम्नलिखित पंक्तियों के साथ अपनी बात समाप्त की-
हो गयी है जल प्रदूषित, स्वछ होनी चाहिए,
राज्य को बाढ सुखाड़ से मुक्ति मिलनी चाहिए ।
शोध पत्र प्रस्तुत करना ही हमारा मकसद नहीं ,
सारी कोशिश है कि ए सूरत बदलनी चाहिए ।
अन्त मे उन्हें स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया ।