मातृ- मृत्यू दर कम करने को ले अस्पतालों में प्रसव के दौरान रखनी होगी सावधानी
सही समय पर चिकित्यीय सुविधा दिलाने को ले वांडर ऐप का कार्यान्वयन जरूरी
लेबर रूम में मां को सही चिकित्सा उपलब्ध कराने पर मातृ- मृत्यू दर में आयेगी कमी
दरभंगा मेडिकल कॉलेज में दो दिवसीय लेबर रूम मैनेजमेंट प्रशिक्षण कार्याशल शुरू
दरभंगा. दरभंगा मेडिकल कॉलेज मे दो दिवसीय लेबर रूम मैनेजमेंट प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू की गयी. इस दौरान डीएमसीएच गायनी विभागाध्यक्ष डॉ आशा झा, केयर के डॉ नरेन्द्र ने लेबर रूम में सही चिकित्सीय सुविधा व अन्य पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला. डॉ झा ने बताया कि अस्पतालों में मां व नवजात को सही चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने पर उनके मृत्यू दर में कमी लायी जा सकती है. इसके लिये लेबर रूम में सटीक रूप से मां का चिकित्सयीय देख- रेख आवश्यक होता है. इससे मां व बच्चे को किसी प्रकार के इंफेक्शन से बचाया जा सकता है. इसके लिये लेबर- रूम में पुर्णत: र्स्टलाइज्ड उपकरण का प्रयोग किया जाता है. साथ ही आसपास स्वच्छता पर विशेष ध्यान रखना होगा. वक्ताओं ने बताया कि जब प्रसव पीड़ा को कृत्रित रूप से शुरु किया जाता है, तो इस प्रक्रिया को लेबर इंड्यसू करना यानि प्रसव प्रेरित करना कहा जाता है. अधिकांशत: प्रसव पीड़ा स्वत: शुरु होती है. आमतौर पर बेहतर भी यही है कि इसे प्राकृतिक तौर पर स्वयं ही शुरु होने दिया जाए. लेबर रूम में आने के बाद जच्चा का रेगुलर बीपी व अन्य जांच किया जाता है. जांच- रिर्पोट अनुकूल होने पर आगे की प्रक्रिया शुरू की जाती है.
लेबर रूम में बारिकी से गभर्वती का किया जाता अवलोकन
डॉ नरेन्द्र ने बताया कि लेबर रूम में चिकित्सक पारंपरिक प्रसव के लिये कई बार इंतजार करते हैं. गर्भ में बच्चे की गतिशिलता की जांच की जाती है. उसी आधार पर प्रसव की प्रक्रिया निर्भर करती है. साथ ही मां के दर्द पर भी सफल प्रसव निर्भर करता है. दर्द की स्थिति को देखकर चिकित्सक उपचार के लिये तैयार होते हैं. पारंपरिक प्रसव ही अच्छा प्रसव माना जाता है. लेकिन कभी- कभी गर्भ में बच्चे की स्थिति पर प्रतिकुल रहने पर ऑपरेशन करना पड़ता है. इस दौरान मरीजों पर चिकित्सकों की बारिकी से निगरानी की जाती है. इस दौरान सिनीयर चिकित्सक के सलाह से सभी चिकित्सयीय कार्रवाई की जाती है. ससमय सटीक चिकित्सा से सफल प्रसव होने के बाद मां के मृत्यू की संभवना नगन्य रहती है. वहीं प्रसव के बाद महिला मरीजों को 24 घंटे के लिये सघन चिकित्सा में रखा जाता है. सब कुछ सामान्य रहने पर उसे डिस्चार्ज कर दिया जाता है. इसके अलावा बच्चे को तुरंत चिकित्सक से जांच करानी चाहिये. स्तनपान व गर्म रखकर उसे सही रूप से देख- रेख किया जाता है. स्थिति अनुकुल नहीं रहने पर तुरंत चिकित्सक अन्य जांच व दवा को लेकर परिजनों को सलाह देते हैं. कार्यशाला में केयर के डॉ नरेन्द्र, डीएमसीएच गायनी विभागाध्यक्ष डॉ आशा झा, प्रखंड प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी, हैल्थ मैनेजर, आशा व एएनएम मौजूद थे.