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मिथिला के मखान की ब्रांडिंग को लेकर ओछी राजनीति पर विद्यापति सेवा संस्थान ने जताई कड़ी आपत्ति

मिथिला के मखान की ब्रांडिंग को लेकर ओछी राजनीति पर विद्यापति सेवा संस्थान ने जताई कड़ी आपत्ति

मिथिला के मखान की ब्रांडिंग को लेकर राज्य सरकार द्वारा एकबार फिर से ओछी राजनीति शुरू किए जाने पर विद्यापति सेवा संस्थान ने कड़ी आपत्ति जताई है। संस्थान ने कृषि विभाग के उद्यान निदेशालय द्वारा पटना के गांधी मैदान स्थित ज्ञान भवन में आगामी 3-4 अगस्त को प्रदेश में आयोजित किए जा रहे ‘मखाना महोत्सव 2024’ में मिथिला के मखान को ‘मिथिला मखाना’ के नाम से जीआई टैग मिलने के बाद भी इसे बिहार का मखाना के नाम से प्रचारित कर लोगों को दिग्भ्रमित किए जाने को लेकर कड़ी आपत्ति जताई है। संस्थान के महासचिव डा बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने कहा कि मिथिला की सांस्कृतिक पहचान के रूप में ‘पग पग पोखर, माछ, मखान… के सूक्ति वाक्य के साथ मखान का नाम जगजाहिर है। मिथिला देश में मखान का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र है। अब इसे ‘मिथिला मखाना’ के नाम से जीआई टैग भी मिल चुका है। बावजूद इसके मिथिला के मखान की ब्रांडिंग को लेकर राज्य सरकार द्वारा भ्रम की स्थिति उत्पन्न किया जाना निन्दनीय है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को ओछी राजनीति से परहेज करते हुए निश्चित रूप से मिथिला के सांस्कृतिक पहचान के प्रतीक मखान की ब्रांडिंग ‘मिथिला मखाना’ के रूप में करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मखाना महोत्सव में यदि ‘मिथिला मखाना’ नाम को यथोचित स्थान नहीं मिला तो आठ करोड़ मैथिल आन्दोलन को मजबूर होंगे।

मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पं कमलाकांत झा ने कहा कि मिथिला में मखान की खेती को युद्ध स्तर पर बढ़ावा देने के लिए इसकी ब्रांडिग मिथिला मखान के नाम से करते हुए इस उद्योग का विकास किया जाना चाहिए। ताकि, इससे होने वाली आय को न सिर्फ मिथिला क्षेत्र के विकास में लगाया जा सके। बल्कि, इससे मिथिला में रोजगार सृजन की संभावना भी मजबूत हो सकेगी। प्रो जीवकांत मिश्र ने कहा कि मखाना मिथिला में पाए जाने वाले दुर्लभ वनस्पतियों में से एक है। भारत में मखाना उत्पादन का 75 प्रतिशत भाग बिहार व उसमें से लगभग 50 प्रतिशत भाग मिथिला उत्पादन का केंद्र है। लेकिन, उचित संरक्षण के अभाव में इसका विकास नहीं हो रहा है। फिर राज्य सरकार द्वारा इसकी ब्रांडिंग को लेकर भ्रम की स्थिति बनाया जाना घोर निन्दा का विषय है।

वरिष्ठ साहित्यकार मणिकांत झा ने कहा कि यदि जीआई टैग के तहत मखाना को मिले नाम के अनुरूप इसकी ब्रांडिंग मिथिला मखाना के नाम से होगी, तो मखाना के विपणन की बेहतर सुविधा यहां के मखाना उत्पादकों को मिल सकेगी। मिथिला के मखान को दुनिया के 100 से अधिक देशों के लोग बड़े चाव से खाते हैं। यही कारण है कि दुनिया के मखाना उत्पादन में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी 85 से 90 फीसदी है। मीडिया संयोजक प्रवीण कुमार झा ने कहा कि मिथिला के मखाना की ब्रांडिंग जीआई टैग के तहत मिले नाम से होने से मखाना उद्योग में जान आना निश्चित है। लेकिन, इसके लिए किसी भी राजनीति से परहेज करते हुए इसकी ब्रांडिग मिथिला के नाम से किया जाना निहायत जरूरी है। वरना इसके संरक्षण व संवर्धन के लिए मिलने वाले फंड की बंदरबांट शुरू हो जाएगी। उन्होंने कहा कि मिथिला देश में मखान का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र है। लिहाजा, इसकी मिथिला मखाना के नाम से ब्रांडिंग होने से इस उद्योग के विकास का रास्ता प्रशस्त होगा। इससे इस क्षेत्र में रोजगार सृजन की संभावना मजबूत होने के साथ साथ मखाना उद्योग को विकसित किए जाने को लेकर मिलने वाले फंड की बंदरबांट पर रोक लग सकेगी। बिहार सरकार के कृषि विभाग अंतर्गत उद्यान निदेशालय द्वारा मिथिला के मखान की ब्रांडिंग को लेकर बार-बार भ्रम की स्थिति उत्पन्न किए जाने पर विनोद कुमार झा, प्रो विजय कांत झा, डा गणेश कांत झा, दुर्गा नन्द झा, डा महानंद ठाकुर, प्रो चंद्र शेखर झा बूढ़ा भाई, आशीष चौधरी, पुरुषोत्तम वत्स, मणिभूषण राजू आदि ने भी विरोध जताया है।

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