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विरोध के फूटे स्वर, आंदोलन का रूख करेगा विद्यापति सेवा संस्थान 

विरोध के फूटे स्वर, आंदोलन का रूख करेगा विद्यापति सेवा संस्थान

केंद्र सरकार द्वारा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल मैथिली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा नहीं दिए जाने पर विद्यापति सेवा संस्थान ने आपत्ति जताई है। संस्थान की ओर से जारी सोमवार को प्रेस नोट में संस्थान के अध्यक्ष-सह-केंद्र सरकार द्वारा गठित मैथिली के विद्वानों की विशेषज्ञ समिति के सदस्य प्रो शशि नाथ झा ने कहा है कि शास्त्रीय भाषा के रूप में मैथिली को दर्जा दिए जाने संबंधी सभी आवश्यक पहलुओं से संबंधित विस्तृत रिपोर्ट केंद्र सरकार के समक्ष समर्पित होने के बावजूद मैथिली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा नहीं दिया जाना आश्चर्यजनक है। बिहार सरकार को करोड़ों लोगों की अस्मिता और मैथिली भाषा साहित्य के उत्तरोत्तर विकास से जुड़े इस मामले में त्वरित संज्ञान लेना चाहिए।

संस्थान के महासचिव डा बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा शास्त्रीय भाषा के रूप में शामिल किए जाने की सभी जरूरी अर्हताओं को पूरा करने के बाद भी मैथिली भाषा को शास्त्रीय भाषा के रूप में शामिल नहीं किया जाना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे आम मैथिली भाषी लोगों में आक्रोश की भावना पनपी है। उन्होंने कहा कि शास्त्रीय भाषा भारत की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत के संरक्षक के रूप में कार्य करती है तथा प्रत्येक समुदाय के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सार को प्रस्तुत करती है। मैथिली का अति प्राचीन साहित्य और अपनी स्वतंत्र लिपि होने के साथ ही भाषा अकादमी में सक्रिय भूमिका निभाने वाली इस भाषा को बोलने वालों की करोड़ों की संख्या होने के बाद भी इसे नजर अंदाज किए जाने से मैथिली को लेकर राजनीतिक रूप से असंवेदनशील व्यवहार एक बार फिर से खुलकर सामने आया है। विद्यापति सेवा संस्थान मिथिला-मैथिली से जुड़े विभिन्न संगठनों को इस मसले पर एक मंच पर लाकर इसके विरोध में आंदोलन का रूख अख्तियार करेगा।

मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पं कमला कांत झा ने कहा कि जनक, जानकी और कवि कोकिल विद्यापति की भाषा मैथिली को शास्त्रीय भाषा के रूप में शामिल नहीं किया जाना निंदाजनक है। सरकार का यह फैसला उनके कथनी और करनी में अंतर को दर्शाता है। कार्यकारी अध्यक्ष डा बुचरू पासवान ने कहा कि कहने को तो केंद्र और राज्य में डबल इंजन की प्रगतिशील सरकार है। लेकिन भारत के पुरातन संस्कृति की भाषा मैथिली को लेकर दोनों सरकारों की निष्क्रिय भूमिका ने सातों कोटि के करोड़ों मैथिली भाषी लोगों की मनोभावना को ठेस पहुंचाने का काम किया है। उनकी इस निष्क्रियता के कारण मैथिली के प्रति उनकी उदासीनता की पोल एक बार फिर खुलकर सामने आ गई है। अपनी मातृभाषा के सम्मान के लिए विद्यापति सेवा संस्थान सबके साथ मिलकर एक बार फिर सड़क से सदन तक विरोध प्रदर्शन करेगा। वरिष्ठ साहित्यकार एवं अंतर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन के अध्यक्ष डा महेंद्र नारायण राम ने कहा कि मैथिली साहित्य का विकास अद्ययन कभी किसी अनुकंपा का मोहताज नहीं रहा है। लेकिन संस्कार और संस्कृति के साथ भाषा साहित्य के विकास की बात करने वाली सरकारों के कृत्य से जब इस तरह की असंवेदनशीलता जाहिर होती है तो जबरदस्त आक्रोश के स्वर फूटते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को इस मामले पर त्वरित कार्यवाही कर मैथिली को शास्त्रीय भाषा की सूची में शामिल कर उसे उसका वाजिब हक प्रदान करना चाहिए।

मीडिया संयोजक प्रवीण कुमार झा ने इस मसले पर विधायक डा मुरारी मोहन झा एवं राज्यसभा सांसद संजय झा द्वारा उठाए गए कदम का स्वागत करते हुए बिहार प्रदेश, खासकर मिथिला क्षेत्र के जन प्रतिनिधियों से अपील की है कि संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल बिहार की एकमात्र भाषा मैथिली को शास्त्रीय भाषा की सूची में शामिल करने के लिए दलगत राजनीति से ऊपर उठकर जानकी, गार्गी, मैत्रेयी, भारती, विद्यापति, मंडन, अयाची, गौतम, कनाद, याज्ञवल्क्य, अष्टावक्र, दीनाभद्,री लोरिक, सल्हेश आदि की मातृभाषा मैथिली को शास्त्रीय भाषा के रूप में यथोचित अधिकार दिलाने के लिए आगे आना चाहिए। इस मामले पर डा महानंद ठाकुर, विनोद कुमार झा, प्रो चंद्रशेखर झा बूढ़ा भाई, डा गणेश कांत झा, डा बाबू साहेब चौधरी, डा उदय कांत मिश्र, आशीष चौधरी, पुरुषोत्तम वत्स, मणि भूषण राजू आदि ने भी विरोध जताया है।

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