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जीविका दीदियों की मछलीपालन से आत्मनिर्भरता की उड़ान

मछलीपालन में आत्मनिर्भरता की मिसाल बनीं जीविका दीदियां, डीपीएम ने सराहा प्रयास

बघेला मत्स्य उत्पादक समूह की सफलता देख उत्साहित हुईं डीपीएम ऋचा गार्गी

दरभंगा जिला,  जो पग-पग पोखर, पान और मखाना के लिए प्रसिद्ध रहा  है, अब मत्स्य पालन के क्षेत्र में भी महिलाओं की भागीदारी के लिए चर्चा में है।

अलीनगर प्रखंड के बघेला पंचायत में बघेला मत्स्य उत्पादक समूह की सात जीविका दीदियां मछलीपालन के माध्यम से न सिर्फ अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधार रही हैं, बल्कि आत्मनिर्भरता की मिसाल भी कायम कर रही हैं।

शुक्रवार को जीविका की जिला परियोजना प्रबंधक (डीपीएम) डॉ. ऋचा गार्गी ने अलीनगर प्रखंड के बघेला पंचायत स्थित बघेला मत्स्य उत्पादक समूह के मछली हार्वेस्टिंग कार्यक्रम में भाग लिया। इस अवसर पर उन्होंने तालाब में तैयार हुई मछलियों का अवलोकन किया और पूरी विपणन प्रक्रिया की निगरानी की।

डीपीएम ने मछली निकालने की प्रक्रिया, तौल, ग्रेडिंग, पैकिंग और बाजार भेजने तक की प्रत्येक गतिविधि को बारीकी से देखा और समूह की दीदियों को आवश्यक सलाह भी दी। इस मौके पर उत्पादक समूह की सदस्यों ने डीपीएम को बताया कि इस बार उत्पादन पहले से अधिक हुआ है और बाज़ार में भी मछली की मांग अच्छी बनी हुई है।

डीपीएम ने समूह को आगे और बेहतर कार्य करने हेतु प्रोत्साहित किया और आगामी सीजन के लिए बतख पालन, मत्स्य बीज उत्पादन जैसी गतिविधियों पर भी चर्चा की। साथ ही, उन्होंने तालाब की साफ-सफाई, समय पर दवा छिड़काव, और विपणन में पारदर्शिता बनाए रखने के निर्देश दिए।

जिला परियोजना प्रबंधक डा० ऋचा गार्गी ने बताया कि, “दरभंगा जिले में मछलीपालन जीविका दीदियों की आजीविका का सशक्त माध्यम बन चुका है। उन्हें तकनीकी प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता और उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित कर स्वरोजगार से जोड़ा जा रहा है।” डीपीएम ने आगामी योजना बताते हुए कहा अब इन महिलाओं को तालाब में बत्तख पालन (Duck Rearing) से जोड़ने की योजना बना रही है। इससे तालाब में जैविक सफाई होगी और दीदियों की आमदनी और अधिक बढ़ेगी।

पशुधन प्रबंधक श्रेया शर्मा ने जानकारी दी कि तालाब की देखरेख के लिए मत्स्य सखी की नियुक्ति की गई है, जो तालाब की सफाई करवाने, बैठकें आयोजित करना और रिकॉर्ड संधारण जैसे कार्यों को अंजाम देती हैं। इसके अलावा, दीदियों को फिशरीज एक्सपर्ट के माध्यम से प्रशिक्षण दिया जाता है, साथ ही बोरबेल, जाल, पीएच मीटर, फिश सीड, दवाएं और अन्य जरूरी सामग्री भी प्रदान की गयी है।

दीदियों ने बताया कि मछलीपालन से अब उन्हें प्रतिमाह ₹4,000 से ₹6,000 तक की आमदनी हो रही है। इससे न केवल परिवार की जरूरतें पूरी हो रही हैं, बल्कि बच्चों की पढ़ाई, घर की मरम्मत जैसे कार्य भी संभव हो पा रहे हैं।

मत्स्य सखी सबीला खातून ने बताया, “मुझे मेरे पति ने तीन बच्चों के साथ अकेला छोड़कर दूसरा निकाह कर लिया। उस समय जीवन में घना अंधेरा था। कोई सहारा नहीं था। लेकिन जीविका से जुड़कर मत्स्य सखी बनने का अवसर मिला, जिसने मेरी जिंदगी बदल दी।”

संचार प्रबंधक राजा सागर ने कहा

पहले मत्स्य पालन जैसे व्यवसाय पुरुषों का क्षेत्र माना जाता था, लेकिन अब जीविका दीदियां इस धारणा को तोड़ते हुए इस क्षेत्र में मजबूती से काम कर रही हैं। दरभंगा जिले में जीविका के सहयोग से महिलाओं के लिए स्वरोजगार के नए अवसर तेजी से विकसित हो रहे हैं। मछलीपालन के ज़रिए महिलाएं न केवल अपने परिवारों को संबल दे रही हैं, बल्कि समाज को भी यह दिखा रही हैं कि सशक्तिकरण का रास्ता तालाब से भी होकर गुजर सकता है।

इस कार्यक्रम में पशुधन प्रबंधक श्रेया शर्मा, बीपीएम राजेश कुमार, क्षेत्रीय समन्वयक उदय प्रताप सिंह, शंकर दयाल यादव एवं अन्य जीविका कर्मी भी उपस्थित थे।

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