बाबा सिद्धेश्वरनाथ महादेव मंदिर, बिशौल
पहले सोमवारी में जहाँ छायी थी वीरानी, दूसरे में दिखी खास चहल पहल
मंदिर प्रबंधन समिति ने व्यक्तिगत दूरी के लिए किया खास इंतजाम
मनीगाछी
प्रखंड के टटुआर पंचायत अंतर्गत बिशौल गांव में अवस्थित अति प्राचीन सिद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर परिसर में सावन के पहले सोमवार को कोरोना महामारी को लेकर प्रशासनिक चेतावनी के मद्देनजर जहाँ वीरानी छाई हुई थी वहीं, दूसरी सोमवारी को परिसर में भक्तों की खास चहल-पहल रही। कोरोना महामारी के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए मंदिर प्रबंधन समिति ने शिव पूजन के लिए पहुंचने वाले भक्तों को व्यक्तिगत दूरी का खास ख्याल रखते हुए पूजन कराया।
बता दें कि अति प्राचीन सिद्धेश्वर नाथ महादेव की महत्ता इस इलाके में काफी प्रचलित है। भक्तों का मानना है कि निर्मल मन से बाबा सिद्धेश्वर नाथ के दरबार में हाजिरी लगाने वालों के मन की मुराद निश्चय ही पूरी होती है। मंदिर में लगे शिलापट्ट के अनुसार नर्मदा कुंड से प्राप्त शिव व गणेश की मूर्ति के साथ शिवलिंग की स्थापना 1763 शाके की चैत्र शुक्ल दशमी को महान शिव उपासक व अपने समय के प्रकांड विद्वान सिद्धेश्वर नाथ मिश्र ने की। जानकार बताते हैं कि यहां स्थापित तीनों मूर्तियों में से दो मूर्तियां गिरजापति भगवान शिव की सायुज्य मुक्ति की प्राप्ति के लिए और तीसरी गणेश की मूर्ति के साथ शिवलिंग की स्थापना सकल अभिलाषित मनोकामना की शीघ्र प्राप्ति के लिए की गई है।
सिद्धेश्वर नाथ महादेव के प्रति बिशौल व टटुआर सहित आसपास के पड़ोसी गांव के लोगों में आस्था का भाव इस कदर है कि शिवरात्रि के अवसर पर सैकड़ों कावड़िया सिमरिया से पैदल गंगाजल लाकर यहां जलाभिषेक करते हैं जिसमें सभी जातियों के बच्चे, बूढ़े और महिलाएं शामिल होती हैं। बीते साल मंदिर परिसर में निर्मित पार्वती मंदिर व सिद्धेश्वरनाथ महादेव मंदिर के प्रवेश द्वार पर निर्मित ‘इन्द्र कांत झा स्मृति द्वार’ लोगों के विशेष आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।