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भूकम्प सुरक्षा और हमारी तैयारी:डा सुनील अजित कुमार सिंह की रिपोर्ट

भूकम्प सुरक्षा और हमारी तैयारी:डा सुनील

यहाँ बिहार में हम भूकम्प के प्रति अत्यन्त संवेदनशील क्षेत्र में रहते हैं और यहाँ भूकम्प कभी भी आ सकता है। भूकम्प की भविष्यवाणी की नहीं जा सकती इसलिये भूकम्प से सुरक्षा के लिये तैयारी ही हमारे पास उपलब्ध एकमात्र विकल्प है और भूकम्प आने पर इससे निश्चित ही हमारी और हमारे अपनों की जान बच सकती है।आपदा रोधी समाज निर्माण को कृतसंकल्पित डा चौधरी जन जागरूकता सह आपदा रोधी भवन निर्माण प्रशिक्षण अभियान के तहत दरभंगा के जाले मे समाज के विभिन्न वर्गों के बड़े जनसमूह एवं राजमिस्त्री को संबोधित करते

 

हुए कहा कि सुनिश्चित करें कि परिवार का प्रत्येक सदस्य जानता है कि भूकम्प के समय क्या करना है।
उन्होने कहा कि न जाने क्यों, पर हम प्रायः इस प्रकार की जानकारी बच्चों के साथ साझा नहीं करते हैं। याद रखें भूकम्प के समय हर व्यक्ति को, चाहे वह जो भी हो, अपने आप ही सुरक्षा तलाशनी होगी।

भूकम्प आने के बाद हमारे ऊपर की छत कभी भी भरभरा कर गिर सकती है। ऐसे में कुछ भी करने के लिये उपलब्ध समय अत्यन्त ही सीमित होगा और ऐसे में कोई भी किसी और की चाह कर भी सहायता नहीं कर पायेगा। जो करना होगा स्वयं ही करना होगा। ऐसे में व्यक्ति द्वारा की गयी प्रतिक्रिया पर ही निर्भर होगा कि वह सुरक्षित रह पायेगा या नहीं।

याद रखें! बिना तैयारी और पर्याप्त अभ्यास के भूकम्प के समय सही प्रतिक्रिया कर पाना सम्भव नहीं होगा।

(क) अब तक हम जान गये हैं कि भवनों को भूकम्प सुरक्षित बनाना भूकम्प से होने वाली जान-माल की क्षति को कम करने का सबसे कारगर तरीका है। ऐसे में नया भवन बनाते समय भूकम्प सुरक्षा उपायों का पालन करें व अपने पुराने घर की भूकम्प सुरक्षा का आकलन करवाने के बाद उपयुक्त सुदृढ़ीकरण करवायें।

(ख) भूकम्प सुरक्षा के लिये आपके घर के साथ-साथ आपके पास-पड़ोस के घरों को भी भूकम्प सुरक्षित होना चाहिये। आखिर पड़ोस में गिरने वाला घर आपको भी तो नुकसान पहुँचा सकता है। अतः भवन निर्माण उप-विधियों में भूकम्प सुरक्षा मानकों का समावेश करने व इनका कड़ाई से अनुपालन करवाने के लिये अपने जन-प्रतिनिधियों पर दबाव बनाये। इसके लिये आप उन्हें बैंकों के द्वारा वित्त पोषित होने वाले सभी निर्माण कार्यों में भूकम्प सुरक्षा को अनिवार्य शर्त बनाने का सुझाव भी दे सकते हैं

(ग) आपके पास-पड़ोस की महत्त्वपूर्ण सुविधायें (जैसे विद्यालय, अस्पताल व थाना) तथा ऐसी अवसंरचनायें, जहाँ काफी ज्यादा लोग इकट्ठा होते हों (जैसे मॉल, सिनेमा हॉल व सम्मेलन गृह) निश्चित ही भूकम्प सुरक्षित होनी चाहिये। ऐसा सुनिश्चित करने के लिये जन-प्रतिनिधियों पर दबाव बनायें। इसके लिये आप उन्हें भूकम्प सुरक्षा को सार्वजनिक सुविधाओं के संचालन की अनुमति का अनिवार्य भाग बनाने का सुझाव भी दे सकते हैं।

(घ) घर के हर कमरे में सुरक्षित स्थान तय करें; दीवार के सहारे, दरवाजे की चौखट के नीचे या मेज के नीचे। सुनिश्चित करें कि इन स्थानों पर किसी भारी वस्तु के गिरने का खतरा नहीं है। भूकम्प के समय अलमारी व दीवार पर लटकते सामान के गिरने से प्रायः क्षति होती है।

(ङ) घर के अन्दर हर कमरे में खतरनाक स्थानों को चिन्हित करें; खिड़की, काँच, लटकते सामान व अलमारी के आस-पास। भूकम्प के समय स्वयं को इन स्थानों से यथासम्भव दूर रखें।

(च) भूकम्प में होने वाली ज्यादातर मौत सिर पर लगी चोट के कारण होती है और फिर भूकम्प में प्रतिक्रिया करने के लिये भी तो बहुत कम समय मिल पाता है। इसलिए बचने और सिर को बचाने के साथ ही सुरक्षित स्थान पर छुपने का अभ्यास करना बहुत जरूरी है। सच मानिये बिना अभ्यास के भूकम्प के समय आपके लिये यह कर पाना सरल नहीं होगा।

(छ) बाहर खुले में सुरक्षित स्थान तय करें। यह मकानों, पुलों, पेड़ों, बिजली के तारों व खम्भों से दूर होना चाहिये।

(ज) भूकम्प में होने वाली हलचलों के कारण दरवाजों की चौखटें प्रायः मुड़ जाती हैं जिससे बन्द दरवाजे बन्द और खुले दरवाजे खुले ही रह जाते हैं। ऐसा अन्दर कमरे की ओर खुलने वाले दरवाजों के साथ ज्यादा होता है। ऐसे में यदि भूकम्प रात के वक्त आया तो दिक्कत का सामना करना पड सकता है।

(झ) फ्लैट को छोड़ कर ज्यादातर अन्य घरों में प्रायः बाहर निकलने के एक से अधिक दरवाजे होते हैं। पता नहीं क्यों? शायद अपनी नैसर्गिक असुरक्षा के कारण हम एक को छोड़ कर अन्य सभी दरवाजों को कोई न कोई जुगाड़ कर के बन्द कर देते हैं; कहीं अलमारी से तो कहीं चारपाई से। ऐसे में यदि हम उसी एक दरवाजे को किसी कारण से न खोल पायें तो? सुनिश्चित करें कि घर से बाहर जाने के सभी दरवाजे अवरोध मुक्त हैं व आसानी से खुल सकते हैं।

ञ) घर छोड़ने के प्रत्येक रास्ते की सभी को जानकारी होनी चाहिये एवं इन रास्तों में किसी भी प्रकार का व्यवधान या अवरोध नहीं होना चाहिये।

(त) आपको व आपके परिवार के सभी सदस्यों को प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी होनी चाहिये और साथ ही कुछ जरूरी दवाईयाँ हमेशा ही साथ होनी चाहिये। इन दवाओं के उपयोग की सुरक्षित अवधि की जाँच समय-समय पर करनी चाहिये और खराब हो गयी दवाओं को बदलना चाहिये। हम में से ज्यादातर इस प्रकार की जानकारियाँ अपने बच्चों को नहीं देते हैं। हो सकता है आपदा के बाद वह ही सहायता के लिये उपलब्ध एकमात्र व्यक्ति हों।

(थ) हो सकता है भूकम्प या फिर अन्य किसी आपदा के समय परिवार के सभी सदस्य साथ न हो। बच्चे स्कूल में हो सकते हैं, पुरूष व महिलायें खेती-बाड़ी, चारे-पानी की व्यवस्था में लगे हो सकते हैं या फिर ऑफिस, बाजार या घर में हो सकते हैं। सभी को मालूम होना चाहिये कि किसी भी आपातकालीन स्थिति या आपदा के बाद परिवार के सभी सदस्यों को कहाँ मिलना है(द) जानवरों की इन्द्रियाँ कई बार भूकम्प के खतरे को अपेक्षाकृत काफी पहले भाँप लेती है इसलिए पालतू जानवरों के असंतुलित व्यवहार, बेचैनी व आक्रमकता को खतरे की पूर्वसूचना के रूप में लें एवं सतर्क रहें।

याद रखें भूकम्प के बाद मोबाइल या फोन या तो काम करना बन्द कर देगा या फिर ज्यादातर व्यस्त ही रहेगा क्योंकि हर कोई अपने परिजनों से सम्पर्क करने का प्रयास कर रहा होगा।

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