दरभंगा । ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा परिसर स्थित जुबिली हाल में आज आयोजित एक समारोह में प्रसिद्ध इतिहासकार, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त इतिहास विभागाध्यक्ष एवं प्रसिद्ध मैथिली समालोचक-अनुवादक प्रो. रत्नेश्वरमिश्र के सम्मान में आयोजित एक समारोह में उन्हें दो खंडों में प्रकाशित अभिनंदन-ग्रंथ समर्पित किया गया।

वैज्ञानिक पद्मश्री मानसबिहारी वर्मा की अध्यक्षता में आयोजित इस समारोह के सम्मानीय अतिथि प्रो. रत्नेश्वरमिश्र ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि आज समाज को दिशा निर्देशित करने की बड़ी जिम्मेदारी शिक्षकों और छात्रों के कंधों पर आ पड़ी है। उन्होंने कई पुराने संस्मरणों का उल्लेख करते हुए कि उनके सामने कितनी ही बार विपरीत परिस्थितियां आयीं तथापि उन्होंने विवेक से उसका सामना किया । भावुक होते हुए प्रो. मिश्र ने कहा कि दरभंगा उनकी कर्मभूमि रही और दरभंगा ने उन्हें बहुत ही सम्मान दिया । उन्होंने छात्रों का आह्वान किया कि वे अपनी ज्ञान पिपासा सदा जाग्रत बनाये रखें और अपने शोधों से समाज को प्रकाशित करते रहें।
समारोह के मुख्य अतिथि ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति डाक्टर एस. पी. सिंह ने इस प्रकार के आयोजनों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि जो जीवंत समाज होता है वह अपने विभूतियों का सम्मान करना जानता है और आज मैथिल समाज ने प्रो. मिश्र जैसे गुरु-मनीषी का सम्मान कर अपनी जीवंतता का परिचय दिया है । कुलपति प्रो. सिंह ने मिथिला के विद्वत्जनों का आह्वान किया कि वे निरंतर इस प्रकार के सारस्वत आयोजन आयोजित कर यहां की ज्ञान-गौरव परंपरा को अक्षुण्ण रखें।
समारोह के विशिष्ट अतिथि कामेश्वरसिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. शशिनाथझा ने कहा कि सम्मानित पुरुष प्रो. रत्नेश्वरमिश्र को सम्मानित कर हमलोग वास्तव में स्वयं को सम्मानित अनुभव कर रहे हैं। उन्होंने विस्तार से प्रो. मिश्र के अवदानों पर प्रकाश डाला ।
समारोह मे आगत अतिथियों का स्वागत करते हुए अभिनंदन समिति के संयोजक प्रो. अजीत कुमार वर्मा ने कहा कि जब कोई छात्र अपने अवदानों से गुरु को गौरवान्वित करता है तो उस स्थिति में वह अपने गुरु के लिए भी प्रणम्य हो जाता है । समारोह की प्रयोजनीयता पर प्रकाश डालते हुए मिथिला विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा मुश्ताक अहमद ने प्रो. मिश्र के अवदानों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वास्तव में विद्या और ज्ञान के महासागर हैं, हम उनसे कितना ले सकें वह हमारी क्षमता पर निर्भर करता है।
ज्ञातव्य हो कि प्रो. मिश्र के सम्मान में दो खंडों मे अभिनंदन-ग्रंथ का प्रकाशन किया गया है, इसमें अंग्रेजी खंड “पप्रीफेसिंग हिस्ट्री : टेक्स्ट एंड कंटेस्ट” का संपादन डा अवनीन्द्रकुमारझा एवं डा पंकजकुमारझा ने किया है जिसका प्रकाशन आथर्स प्रेस, नई दिल्ली ने किया है । वहीं हिंदी एवं मैथिली खंड “इतिहास : तथ्य और संदर्भ ” का संपादन डा अवनीन्द्रकुमारझा, डा पंकज कुमार झा एवं डा शंकरदेवझा ने किया है । आरंभ मे ग्रंथ द्वय के सम्पादकों द्वारा पुस्तकों की रूपरेखा पर संक्षेप में प्रकाश डाला गया । तत्पश्चात मंचस्थ अतिथियों द्वारा प्रो. मिश्र को पाग और चादर से सम्मानित करते हुए उन्हें अभिनंदन-ग्रंथ प्रदान किया गया । इस मौके पर मैथिली साहित्य संस्थान, पटना द्वारा प्रो. मिश्र को महर्षि धौम्य शिखर-शिक्षा-सम्मान से एवं ग्रंथ के संपादक त्रय को अन्तेवासि आरुणि शिक्षा सम्मान से सम्मानित किया गया । समारोह के अध्यक्ष डा मानस बिहारी वर्मा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में मिथिला की सारस्वत परंपरा पर प्रकाश डाला । धन्यवाद ज्ञापन प्रो. माधव चौधरी एवं संचालन डा अवनीन्द्रकुमारझा ने किया । समारोह का आरंभ वैदिक ॠचा के पाठ एवं गोसाउंनिक गीत से हुआ।
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