मेरा दोस्त अब मेरा दुश्मन बन रहा है : प्लास्टिक से जीवन खतरे में है:डा सुनील
प्लास्टिक
जो मानव मित्र बन गए थे, दिन की शुरुआत प्लास्टिक से हुई और प्लास्टिक हर वस्तु का सबसे अच्छा साथी बन गया है। प्लास्टिक के बिना हम किसी भी चीज को नहीं ले जा सकते हैं यहां तक कि गर्म चाय भी प्लास्टिक में पैक की जा रही है और अब यह प्लास्टिक जीवों और पर्यावरण का सबसे खतरनाक दुश्मन भी बन रहा है। मिट्टी और पानी का बंटाधार करने के अलावा वह हमारे लिए कई खतरनाक बीमारियां भी लेकर आ रहा है।
वर्तमान में प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर वैश्विक समस्या बन गया है। दुनिया भर में अरबों प्लास्टिक के बैग हर साल फेंके जाते हैं। ये प्लास्टिक बैग नालियों के प्रवाह को रोकते हैं और आगे बढ़ते हुए वे नदियों और महासागरों तक पहुंचते हैं। चूंकि प्लास्टिक स्वाभाविक रूप से विघटित नहीं होता है इसलिए यह प्रतिकूल तरीके से नदियों, महासागरों आदि के जीवन और पर्यावरण को प्रभावित करता है। प्लास्टिक प्रदूषण के कारण लाखों पशु और पक्षी वैश्विक स्तर पर मारे जाते हैं जो पर्यावरण संतुलन के मामले में एक अत्यंत चिंताजनक पहलू है। एशिया और अफ्रीकी देशों में प्लास्टिक प्रदूषण सबसे अधिक है। यहां कचरा एकत्रित करने की कोई प्रभावी प्रणाली नहीं है। तो वहीं विकसित देशों को भी प्लास्टिक कचरे को एकत्रित करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, जिस कारण प्लास्टिक कचरा लगातार बढ़ता जा रहा है। इसमें विशेष रूप से ‘‘सिंगल यूज प्लास्टिक’’ यानी ऐसा प्लास्टिक जिसे केवल एक ही बार उपयोग किया जा सकता है, जैसे प्लास्टिक की थैलियां, बिस्कुट, स्ट्राॅ, नमकीन, दूध, चिप्स, चाॅकलेट आदि के पैकेट। प्लास्टिक की बोतलें, जो कि काफी सहुलियतनुमा लगती हैं, वे भी शरीर और पर्यावरण के लिए भी खतरनाक हैं। इन्हीं प्लास्टिक का करोड़ों टन कूड़ा रोजाना समुद्र और खुले मैदानों आदि में फेंका जाता है। जिससे समुद्र में जलीय जीवन प्रभावित हो रहा है। समुद्री जीव मर रहे हैं। कई प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। जमीन की उर्वरता क्षमता निरंतर कम होती जा रही है। वहीं जहां-तहां फैला प्लास्टिक कचरा सीवर और नालियों को चोक करता है, जिससे बरसात में जलभराव का सामना करना पड़ता है। भारत जैसे देश में रोजाना सैंकड़ों आवारा पशुओं की प्लास्टिकयुक्त कचरा खाने से मौत हो रही है, तो वहीं इंसानों के लिए प्लास्टिक कैंसर का भी कारण बन रहा है। इसलिए प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के साथ ही ‘‘सिंगल यूज प्लास्टिक’’ पर प्रतिबंध लगाना अनिवार्य हो गया है।
प्लास्टिक थैलियां जल और जमीन दोनों को प्रदूषित करती हैंlप्लास्टिक जमीन, पानी और हवा तीनों को प्रभावित कर रहा है। सदियों तक नष्ट न होने वाला प्लास्टिक भूजल को प्रदूषित कर रहा है। प्लास्टिक के बहुत सूक्ष्म टुकड़े उसमें मिलकर उसे दूषित कर देते हैं। बोतलबंद पानी बेचने वाली कंपनियां इसी भूजल का इस्तेमाल करती हैं, लेकिन उनकी प्रॉसेसिंग में वे सूक्ष्म कण खत्म नहीं हो पाते। सालाना लाख से अधिक जलीय जीव प्लास्टिक प्रदूषण से मर रहे हैं।इसका सबसे ताजा उदाहरण पिछले दिनों थाईलैंड में देखने को मिला जहां एक व्हेल 80 से अधिक प्लास्टिक बैग निगलने के कारण मर गई। प्लास्टिक छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटता है पर सड़ता नहीं। दुनिया भर में केवल 1 से 3 फीसदी प्लास्टिक ही रीसाइकल हो पाता है। यह जलकर भी नष्ट नहीं होता और इसे जलाना खतरनाक है। प्लास्टिक का कचरा जलाने से ऐसी गैसें निकलती हैं, जो फेफड़ों के कैंसर का कारण बन सकती हैं।
अब यह बड़ी चिंता और बहस का विषय बन गया है और इस पर गहरी सोच रखने का समय आ गया है। यह अनुमान है कि लगभग 1500 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा पृथ्वी ग्रह पर एकत्र हो गया है। और यह कचरा क्या करेगा, पृथ्वी के संपूर्ण प्राणियों को जोखिम देने वाला है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत से हर दिन करीब 26 हजार टन प्लास्टिक कूड़ा निकलता है, जिसमें से आधा कूड़ा यानी करीब 13 हजार टन अकेले दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और बेंगलुरु से ही निकलता है। इस प्लास्टिक कूड़े में से लगभग 10 हजार 376 टन कूड़ा एकत्रित नहीं हो पाता और खुले मैदानों में जहां-तहां फैला रहता है। हवा से उड़कर ये खेतों, नालों और नदियों में पहुंच जाता है तथा नदियों से समुद्र में। जहां लंबे समय से मौजूद प्लास्टिक पानी के साथ मिलकर समुद्री जीवों के शरीर में पहुंच रहा है। वर्ष 2015 में “साइंस जर्नल” में छपे आंकड़ों के अनुसार हर साल समुद्र में 5.8 से 12.7 मिलियन टन के करीब प्लास्टिक समुद्र में फेंका जाता है। उधर मैदानों और खेतों में फैला प्लास्टिक कुछ अंतराल के बाद धीरे-धीरे जमीन के अंदर दबता चला जाता है तथा जमीन में एक लेयर बना देता है। इससे वर्षा का पानी ठीक प्रकार से भूमि के अंदर नहीं पहुंच पा रहा है और जो पहुंच भी रहा है उमें माइक्रोप्लास्टिक के कण पाए जाने लगे हैं, जिससे भूमि की उर्वरता प्रभावित हो रही है। दरअसल अधिकांश प्लास्टिक लंबे समय तक नहीं टूटते हैं बल्कि ये छोटे छोटे टुकड़ों में बंट जाते हैं, जिनका आकार 5 मिलीमीटर या इससे छोटा होता है।
अधिकांश प्लास्टिक पाॅलीप्रोपाइलीन से बना होता है, जिसे पेट्रोलियम या प्राकृतिक गैस से बनाया जाता है। जो जलाने पर हाइड्रोक्लोरिक एसिड, सल्फर डाइऑक्साइड, डाइऑक्सिन, फ्यूरेन और भारी धातुओं जैसे खतरनाक रसायन छोड़ता है, जिस कारण सांस संबंधी बीमारियां, चक्कर आना और खांसी आने लगती है। साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता भी घटने लगती है। डाइऑक्सिन के लंबे समय तक संपर्क में रहने से कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। इससे ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचता है।पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन, पॉलीक्लोराइनेटेड बाइफिनाइल हार्मोन में बाधा डालते हैं। प्लास्टिक के इन दुष्प्रभावों को देखते हुए करीब 40 देशों में प्लास्टिक की थैलियां प्रतिबंधित हैं। चीन ने भी प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध लगाया था। प्रतिबंध के चार साल बाद ही फेंके गए प्लास्टिक थैलों की संख्या 40 बिलियन तक कम हो गई।
आज हर जगह प्लास्टिक दिखता है जो पर्यावरण को दूषित कर रहा है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में लगभग 10 से 15 हजार यूनिट पॉलीथीन का उत्पादन हो रहा है। 1990 के आंकड़ों के मुताबिक देश में इसकी खपत बीस हजार टन थी जो अब तीन से चार लाख टन तक पहुंच गई है – यह भविष्य के लिए एक अशुभ संकेत है। चूंकि पॉलीइथिलीन परिसंचरण में आया तो सभी पुराने पदार्थ अप्रचलित हो गए क्योंकि कपड़ा, जूट और पेपर को पॉलिथीन द्वारा बदल दिया गया था। पॉलीथीन निर्मित वस्तुओं का उपयोग करने के बाद फिर से इनका उपयोग नहीं किया जा सकता इसलिए उन्हें फेंक दिया जाना चाहिए। ये पाली-निर्मित वस्तुएं घुलनशील नहीं हैं यानी वे जीव-निष्पादित पदार्थ नहीं हैं।
जहां कहीं प्लास्टिक पाए जाते हैं वहां पृथ्वी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है और ज़मीन के नीचे दबे दाने वाले बीज अंकुरित नहीं होते हैं तो भूमि बंजर हो जाती है। प्लास्टिक नालियों को रोकता है और पॉलीथीन का ढेर वातावरण को प्रदूषित करता है। चूंकि हम बचे खाद्य पदार्थों को पॉलीथीन में लपेट कर फेंकते हैं तो पशु उन्हें ऐसे ही खा लेते हैं जिससे जानवरों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है यहां तक कि उनकी मौत का कारण भी।
जिस प्रकार इंसानों और वन्यजीवों तथा पक्षियों की दुनिया है, उसी प्रकार एक दुनिया समुद्र और नदियों में पाई जाती है, जिसमें मछली, कछुए आदि जलीय जीव रहते हैं। इसके अलावा कई औषधियों की प्रजातियां भी समुद्र के अंदर पाई जाती हैं लेकिन वन्यजीव भोजन समझकर या भूलवश इस प्लास्टिक का सेवन कर रहे हैं अथवा समुद्र में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक भोजन और सांस के साथ इनके पेट में पहुंच रहा है। जिस कारण लाखों जलीय जीवों की मौत हो चुकी हैं, जबकि कई तो रोजाना चोटिल भी होते हैं। कुछ महीने पहले फिलीपींस में एक विशालकाय मृत व्हेल के पेट से करीब 40 किलोग्राम प्लास्टिक निकली थी। माइक्रोप्लास्टिक पक्षियों के लिए भी मौत का सामान सिद्ध हो रहा है। जो ये प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि प्लास्टिक ने किस तरह जलीय जीवों के जीवन को प्रभावित कर दिया है।
सिंगल यूज प्लास्टिक का लाइफ इंसान के जीवन में केवल 10 से 20 मिनट की होती है। इसके बाद ये प्लास्टिक जीव जंतुओं और पर्यावरण के लिए मौत का सामान बन जाता है। तो वहीं अब भोजन में ही मिलकर इंसानों के पेट में भी पहुंचने लगा है, जिससे मानव जगत के उत्थान और सुविधा के लिए बनाया गया प्लास्टिक इंसान द्वारा इंसान और पृथ्वी के खिलाफ खड़ा किया गया एक हथियार बन गया है, जो धीरे-धीरे पृथ्वी में ज़हर घोल रहा है। इसलिए प्लास्टिक पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए और लोगों को ये समझना होगा कि प्लास्टिक के भी कई अन्य विकल्प हैं, लेकिन ये हम पर निर्भर करता है कि सहुलियत के लिए हम मौत की सामग्री (प्लास्टिक) चुनते हैं या जीवन के लिए पर्यावरण के अनुकूल कोई अन्य साधन।
प्लास्टिक अपशिष्ट जलाने से आमतौर पर कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड गैसों का उत्सर्जन होता है जो श्वसन नालिका या त्वचा की बीमारियों का कारण बन सकता है। इसके अलावा पॉलीस्टाइन प्लास्टिक के जलने से क्लोरो-फ्लोरो कार्बन का उत्पादन होता है जो वायुमंडल के ओजोन परत के लिए हानिकारक होता है। इसी तरह पोलिविनाइल क्लोराइड के जलने से क्लोरीन और नायलॉन का उत्पादन होता है और पॉलीयोरेथन नाइट्रिक ऑक्साइड जैसे विषाक्त गैसें निकलती हैं।
प्लास्टिक को फेंकने और जलाने दोनों से ही पर्यावरण को समान रूप से हानि पहुँचती है। प्लास्टिक जलने पर एक बड़ी मात्रा में रासायनिक उत्सर्जन होता है जो श्वसन प्रणाली पर इनफ़लिंग का कारण बनता है। चाहे प्लास्टिक को जमीन में डाल दें या पानी में फेंक दें इसके हानिकारक प्रभाव कम नहीं होते हैं।
स्वार्थी और उपभोक्तावादी मानव ने पर्यावरण को पॉलीथीन के अंधाधुंध उपयोग से क्षति पहुंचाई है। आज के भौतिकवादी युग में हमारा समाज, पॉलिथीन के दूरगामी प्रतिकूल प्रभावों और विषाक्तता से अनजान रह इसके प्रयोग से बहुत दूर हो गया है मानो कि जीवन इसके बिना अपूर्ण है।
यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि हम पॉलीथीन या प्लास्टिक के युग में रह रहे हैं। हर कोई जानबूझकर पॉलीथीन की दुष्प्रभावों से अनजान हो जाता है जो कि एक प्रकार का जहर है जो अंततः पर्यावरण को नष्ट कर देगा। अगर हम भविष्य में प्लास्टिक से छुटकारा चाहते हैं तो इससे पहले कि बहुत देर हो जाए तब तक पूरा वातावरण दूषित हो जाएगा। तो यह सही है जब हमें समय कदम उठाना होगा।
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