विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग के तत्वावधान में आयोजित द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न
संवेदना हमारी आंतरिक चेतना,जिसका परिचय देने वाला ही सच्चा मानव- प्रो विद्याधर
सभी वैज्ञानिक तथ्यों का उल्लेख एवं समस्याओं का निदान संस्कृत साहित्य में विद्यमान- प्रो विद्यानाथ
सेमिनार में नेपाल,श्रीलंका, मंगोलिया,थाईलैंड,सोमनाथ,जेएनयू व दिल्ली विश्वविद्यालय, आदि से जुड़े संस्कृतप्रेमी
संवेदनशीलता नर को नारायण बनाने में सक्षम- डा वीर सनातन
चेतनशील लोग ही संवेदनशील भी होते हैं। संवेदना हमारी आंतरिक चेतना है,जिसका परिचय देने वाला ही सच्चा मानव हो सकता है। अतः हमें सदा संवेदनशीलता का परिचय देना चाहिए। मिथिला ज्ञान-विज्ञान तथा संवेदनशीलता की भूमि रही है,जहां हम जड़ मिट्टी-पानी से बने देवी-देवताओं को चेतनशील मानकर उनकी पूजा करते हैं।उक्त बातें संस्कृत विश्वविद्यालय की वेद विभागाध्यक्ष प्रो विदेश्वर झा ने मिथिला विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के तत्वावधान में “संवेदनशील समाज के निर्माण में संस्कृत की भूमिका” विषयक द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए कहा।उन्होंने सेमिनार के विषय को महत्वपूर्ण एवं आधुनिक संदर्भ में काफी प्रासंगिक बता हुए आयोजकों को बधाई एवं साधुवाद दिया।
मुख्य अतिथि के रूप में एमएलएसएम कॉलेज,दरभंगा के प्रधानाचार्य प्रो विद्यानाथ झा ने कहा कि सभी वैज्ञानिक तथ्यों का उल्लेख एवं मानवीय समस्याओं का निदान संस्कृत साहित्य में विद्यमान है।संस्कृत साहित्य में उद्धृत सभी लोकसूक्तियों की वैज्ञानिकता एवं प्रासंगिकता है।संस्कृत और विज्ञान में घनिष्ठ एवं अटूट संबंध है।
केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, सोमनाथ के कुलपति प्रो गोपबंधु मिश्र ने कहा कि ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ तथा ‘अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः –‘ जैसी सूक्तियां संस्कृत साहित्य की संवेदनशीलता को दर्शाती है जो ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’ हेतु उपयोगी हैं। कोरोना काल में संवेदनशील मानव की अधिक आवश्यकता समाज को हो रही है, जिसका लोग परिचय भी दे रहे हैं। संस्कृत साहित्य में सर्वत्र त्याग, संवेदनशीलता व संस्कार-भाव दिखता है।उन्होंने सेमिनार के विषय को महत्वपूर्ण एवं प्रासंगिक बताते हुए कहा कि संस्कृत साहित्य में वर्णित संवेदनशीलता को अपनाकर ही हम समाज का सर्वविद्ध कल्याण कर सकते हैं।
अतिथियों का स्वागत पाग-चादर एवं फूल-माला से किया गया, जबकि समापन समारोह का प्रारंभ दीपक कुमार झा के काली वंदना.. मंगलाचरण से हुआ। डा संजीत कुमार झा के संचालन में आयोजित समापन समारोह में अतिथियों का स्वागत संस्कृत विभागाध्यक्ष डा जीवानंद ने किया,जबकि धन्यवाद ज्ञापन डा कृष्णकांत झा ने किया।
आयोजन सचिव डा आर एन चौरसिया की अध्यक्षता में आयोजित तकनीकी सत्र का संचालन मारवाड़ी महाविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा विकास सिंह ने किया,जिसमें सेंट स्टीफन कॉलेज,दिल्ली के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा पंकज कुमार मिश्र,छोई लुवसन्जव यूनिवर्सिटी ऑफ मंगोलिया के कुलपति प्रो उल्जीत लुवसन्जव, महाचूलंगकरण विश्वविद्यालय,थाईलैंड के बुद्धिस्ट विभाग के डा भिक्खु दीयरतन, अनुराधापुर विश्वविद्यालय, श्रीलंका के प्रसिद्ध चित्रकार एवं पाली की प्राध्यापिका उपासिका चामिनी वीरसूरिया,शोधार्थी बालकृष्ण प्रसाद सिंह,बंगाल की नजमा हसन व मोसमी आकूली,सुधाकर तिवारी,रवि झा आदि ने पत्र वाचन किया।वहीं समापन समारोह में संस्कृत विभाग के पूर्व प्राध्यापक डा जयशंकर झा,नेपाल संस्कृत विश्वविद्यालय,काठमांडू के प्रो गोविंद चौधरी,डा कल्पना कुमारी, डा ममता स्नेही,डा राजेश्वर पासवान,डा दिलीप झा,डा अंजू नारायण,डा जीवछ यादव,प्रो संजीव कुमार,उज्जवल कुमार,डा राजीव कुमार,डा सुजीत कुमार मिश्र,डा राम शप्रीत सिंह,डा भारत कुमार मंडल,डा भारती कुमारी,अंशु कुमारी,सचिन कुमार, अजय कुमार,रवि झा व यागवल्क्य लक्ष्मी नारायण महाविद्यालय,जलेश्वर,नेपाल की संस्कृत प्राध्यापिका डा कल्पना कुमारी सहित अनेक शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी ऑनलाइन एवं ऑफलाइन भाग लिया।