धवल चाँदनी में झिलमिल झिझिया का आयोजन
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” द स्पौटलाइट थियेटर” द्वारा पिछले साल की भाँति इस बार भी शरद पूर्णिमा के अवसर पर मिथिला के पार लोकनृत्य झिझिया का सफल आयोजन किया गया।
इस टीम द्वारा परम्परा पोषित लोकोत्सव का एक आनुष्ठानिक नृत्य गीतात्मक रूप है झिझिया। धवल चाँदनी में झिलमिल झिझिया का आयोजन
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” द स्पौटलाइट थियेटर” द्वारा पिछले साल की भाँति इस बार भी शरद पूर्णिमा के अवसर पर मिथिला के पार लोकनृत्य झिझिया का सफल आयोजन किया गया।
इस टीम द्वारा परम्परा पोषित लोकोत्सव का एक आनुष्ठानिक नृत्य गीतात्मक रूप है झिझिया। यह भारतीय जन जीवन के कुरीतियों के विरुद्ध तंत्र मंत्र के माध्यम से आश्विन शुक्ल पक्ष के नवरात्र में अपने आनुष्ठानिक ताम झाम के साथ प्रस्तुत किया जाता है। यह मिथिला सहित सम्पूर्ण बिहार,आसाम और नेपाल में अत्यधिक लोकप्रिय है। इस नृत्य में छिद्र युक्त घड़े के भीतर जलता दीपक रखा जाता है। जिसे देवी माँ का प्रतीक माना जाता है और इस घड़े के साथ महिलाएं कई प्रकार के गीत और नृत्य पेश करती हैं। वे ऐसी कामना करती है कि हमारा समाज सभी प्रकार की बुरी नजरों से सुरक्षित रहे। इस नृत्य को करते समय कुछ सावधानियां भी रखी जाती है। महिलाएं इतनी तेज गति से नृत्य करती है कि घड़े के छिद्र को गिना नहीं जा सके अन्यथा अमंगल की आशंका रहती है। रात भर नृत्य के बाद सूर्योदय से पूर्व घड़े को लाल कपड़े से ढक कर पूजा स्थल पर रख दिया जाता है पुनः दूसरे रात दीप जलाकर झिझिया के लिए उस घड़े को निकाला जाता है।इस प्रकार नौ रात तक झिझिया का आयोजन किया जाता है। प्रचार प्रसार के लिए अन्य दिन मे इसका आयोजन किया जा रहा है।
विजयादशमी की सुबह पूजा अनुष्ठान के बाद यह लोकोत्सव सम्पन्न हो जाता है। झिझिया निर्विघ्न सम्पन्न होना उस वर्ष के जनजीवन और कृषि के लिए मंगलकारी और समृद्धि सूचक माना जाता है। डॉ० लावण्य कीर्ति सिंह काव्य,विभागाध्यक्ष, संगीत एवं नाट्य विभाग, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, डॉ० जय शंकर झा, प्राचार्य संस्कृत विभाग,ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय एवं डॉ० सत्यवान कुमार,सहप्राचार्य, वेद विभाग, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा उद्धघाटन कराया गया। शाम्भवी द्वारा भैरवी गायन एवं सोनी नृत्यांगना संस्थान, डांस फीवर एवं स्पॉटलाइट थिएटर की झिझिया प्रस्तुति हुई।मंच संचालन श्री अखिलेश कुमार झा ने किया।अंत मे धन्यवाद ज्ञापन संस्था के उपाध्यक्ष डॉ० सत्येंद्र कुमार झा ने किया।यह भारतीय जन जीवन के कुरीतियों के विरुद्ध तंत्र मंत्र के माध्यम से आश्विन शुक्ल पक्ष के नवरात्र में अपने आनुष्ठानिक ताम झाम के साथ प्रस्तुत किया जाता है। यह मिथिला सहित सम्पूर्ण बिहार,आसाम और नेपाल में अत्यधिक लोकप्रिय है। इस नृत्य में छिद्र युक्त घड़े के भीतर जलता दीपक रखा जाता है। जिसे देवी माँ का प्रतीक माना जाता है और इस घड़े के साथ महिलाएं कई प्रकार के गीत और नृत्य पेश करती हैं। वे ऐसी कामना करती है कि हमारा समाज सभी प्रकार की बुरी नजरों से सुरक्षित रहे। इस नृत्य को करते समय कुछ सावधानियां भी रखी जाती है। महिलाएं इतनी तेज गति से नृत्य करती है कि घड़े के छिद्र को गिना नहीं जा सके अन्यथा अमंगल की आशंका रहती है। रात भर नृत्य के बाद सूर्योदय से पूर्व घड़े को लाल कपड़े से ढक कर पूजा स्थल पर रख दिया जाता है पुनः दूसरे रात दीप जलाकर झिझिया के लिए उस घड़े को निकाला जाता है।इस प्रकार नौ रात तक झिझिया का आयोजन किया जाता है। प्रचार प्रसार के लिए अन्य दिन मे इसका आयोजन किया जा रहा है।
विजयादशमी की सुबह पूजा अनुष्ठान के बाद यह लोकोत्सव सम्पन्न हो जाता है। झिझिया निर्विघ्न सम्पन्न होना उस वर्ष के जनजीवन और कृषि के लिए मंगलकारी और समृद्धि सूचक माना जाता है। डॉ० लावण्य कीर्ति सिंह काव्य,विभागाध्यक्ष, संगीत एवं नाट्य विभाग, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, डॉ० जय शंकर झा, प्राचार्य संस्कृत विभाग,ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय एवं डॉ० सत्यवान कुमार,सहप्राचार्य, वेद विभाग, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा उद्धघाटन कराया गया। शाम्भवी द्वारा भैरवी गायन एवं सोनी नृत्यांगना संस्थान, डांस फीवर एवं स्पॉटलाइट थिएटर की झिझिया प्रस्तुति हुई।मंच संचालन श्री अखिलेश कुमार झा ने किया।अंत मे धन्यवाद ज्ञापन संस्था के उपाध्यक्ष डॉ० सत्येंद्र कुमार झा ने किया।
संपादक ajit kumar singh दरभंगा news 24 live