दरभंगा मिथिला की संस्कृति नैसर्गिक रूप से निष्प्रयः संस्कृति रही है : श्रुतिधारी…
राजनीतिक विज्ञान के विशेषज्ञ और राज परिवार के सदस्य डॉ श्रुतिधारी सिंह ने कहा है कि मिथिला की संस्कृति नैसर्गिक रूप से निष्प्रयः संस्कृति रही है।
, जिसमें दार्शनिक तत्व हमेशा आर्थिक और राजनीतिक तत्वों को प्रभावित करते रहे हैं। यह स्थिति प्राचीन काल से मध्य काल तक अक्षुण बनि रही, लेकिन अंग्रजों के आने के बाद जो संकट पैदा हुआ वो किया जो अद्यतन जारी है।
शनिवार को स्थांनीय गांधी सदन में इसमाद फाउंडेशन की ओर से आयोजित आचार्य रमानाथ झा हैरिटेज सीरीज के तहत पद्मश्री जगदम्बा देवी स्मृति व्याख्यान देते हुए श्री सिंह ने कहा कि प्राचीन मिथिला की संस्कृति को एसके तीन आयाम पर समझा जा सकता है- आर्थिक, राजनीतिक और दार्शनिक। मुस्लिम आक्रमणों के बाद मिथिला की संस्कृति में एक संकट की स्थिति उत्पन्न हुई, किंतु इसकी संस्कृति का उद्दात भाव इस संकट को अपने मे समाहित कर लिया और इस्लामिक और मैथिल संस्कृति सह अस्तित्व के स्तर पर विकसित होने लगी। इस्लाम और सनातन संस्कृति के बीच जो संभाव उत्पन्न हुए उसे अंगेजो के बाद उसके अंदर एक संकट पुनः उत्पन्न हुई। खासकर विलियम बैंटिंग के नेतृव और मैकाले के कार्ययोजना ने यहाँ की सांस्कृतिक समरसता का मूल आधार शिक्षा पर प्रहार किया और उसे नष्ट करने का हर सम्भव प्रयास किया। राजदरभंगा के तत्कालीन शासक महाराजा छत्र सिंह ने अपने भर पूरा प्रयास किया की यहाँ की पारंपरिक शिक्षा संस्कृति पाठशालाओं और फ़ारसी मदरसों को अंग्रेजी शिक्षा के अत्याचार बचाया जा सके, किंतु कालान्तर में अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार ने मिथिला की संस्कृति में एक नई संकट पैदा की जो अद्यतन जारी है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ललित नारायण मिथिला विश्वंविद्यालय के कुलपति प्रो. एसके सिंह ने कहा कि लगातार इस 10वें व्याख्यान को आयोजित करने के लिए आयोजको को बधाई देता हूं। उन्होंंने मिथिला के दुर्लभ विषयों पर आयोजित इस व्याख्यान सरीज को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि जब एक टीम एक साथ मिलकर कार्य करती है तो एक अद्भुत परिणाम का प्रतिफल देखने को मिलता है। ऐसे कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए मैं आयोजकों खास करके संतोष कुमार को धन्यवाद देता हूं और आशा करता हूं कि अगर ऐसे युवा अपने क्षेत्र के लिए कार्य कर रहे हैं तो उस क्षेत्र की विरासत होती है वह कभी मिट नहीं सकती है और राज्य और देश ऐसे कार्यों से गौरवान्वित होगा। सभागार में बैठे सभी श्रोताओं को ऐसे कार्यों के लिए जागरूक करने हेतु अपना संदेश भी दिया और कहा कि जब तक ऐसे संस्थान ऐसे बहुमूल्य कार्य को करते रहेंगे तो हमारा इतिहास पौराणिक इतिहास कभी धूमिल नहीं हो सकता है।
अध्यक्षता कर रहे अवकाश प्राप्त आईएएस गजानंद मिश्र ने कहा कि पौराणिक मिथिला के इतिहास को शैक्षणिक दृष्टिकोण से अथवा पारंपरिक दृष्टिकोण से तो कभी भुलाया ही नहीं जा सकता है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि क्या कारण रहा कि मिथिला क्षेत्र में बीमारियां कम हुआ करती थी एवं जल फसल काफी शुद्ध मात्रा में हुआ करते थे, परंतु आज के दृष्टिकोण में देखें तो बहुत सारी नई बीमारियों ने मिथिला को घेरे रखा है। बहुत सारी संकटों ने जल फसल अथवा वातावरण के दृष्टिकोण से हमें चारों तरफ से घेर लिया है। आप अगर कम से कम 200 वर्ष पुराने मिथिला के इतिहास को देखते हैं यह क्षेत्र पूरे भारत में शिक्षा से लेकर फसल के दृष्टिकोण तक वैभवशाली रहा है उन्होंने जोर देकर कहा कि हमें जरूरत है अपने इस विराट संस्कृति को बचाना और ऐसे समृद्ध मिथिला के इतिहास को पढ़ना लिखना जिससे कि आज के नवयुवक और आने वाले जो हमारा जेनरेशन है इससे ज्ञान प्राप्त कर फिर से समृद्ध होने का प्रयास करें।
कार्यक्रम का संचालन इसमाद फाउंडेशन के न्या्सी संतोष कुमार ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन रमनदत्त झा ने किया। इससे पूर्व मुख्य अतिथि को अभय अमन सिंह ने वृक्ष देकर स्वांगत किया। मुख्य वक्ता को रमन दत्त झा और अध्यक्ष को मुकुंद मयंक ने वृक्ष देकर स्वानगत किया। वही मुख्य अतिथि माननीय कुलपति महोदय ने मुख्य वक्ता डॉक्टर श्रुतिधारी सिंह को मिथिला का विजय स्तंभ देकर सम्मानित किया।
कार्यक्रम में राज परिवार के बाबू गोपाल नंदन सिंह, राज परिवार के सदस्य सह राज पुस्तकालय के निदेशक डॉ. भवेश्वर सिंह, विश्वविद्यालय के कुलसचिव कर्नल निशीथ कुमार राय, डीएसडब्ल्यू डॉ. रतन कुमार चौधरी, सीएम महाविद्यालय, दरभंगा के विभागाध्यक्ष डॉ. विश्ववनाथ झा, इतिहास के विद्वान अवनींद्र कुमार झा, एमआरएसएम महाविद्यालय के प्रो राम लखन प्रसाद सिंह, डॉ. मित्रनाथ झा, पांडुलिपि संरक्षण के संतोष कुमार झा, पुरातत्वविद्व मुरारी कुमार झा, महाराज लक्षमेश्वरी संग्राहालय के चंद्र प्रकाश, अविनव सिन्हा, रवि राज मिथिला स्टूडेंट यूनियन के कार्यकर्ताओं सहित मिथिला पेंटिंग्स के कई कलाकार मौजूद थे।
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संरक्षण के लिए सौंपा गया पांडूलिपि……
ईसमाद फाउंडेशन की पहल पर पहली बार विश्व विद्यालय के पांडुलिपि संरक्षण लैब के लिए कुलपति को निजी पांडुलिपि संरक्षण हेतु सौंपा गया। रमन झा ने डेढ़ सौ साल पुरानी बाबू घरभरन झा की बेशकीमती पांडुलिपि कुलपति को संरंक्षण के लिए सौंपा। विश्वविद्यालय के पांडुलिपि संरक्षण लैब द्वारा संरक्षित कर पांडूलिपि को पुन: दाता को लौटा दिया जायेगा। रमन दत्त झा द्वारा पांडुलिपि सौंपे जाने पर कुलपति ने ईसमाद फाउंडेशन की भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए कहा कि यह महज विश्वविद्यालय के लिए ही नहीं, इस क्षेत्र के लिए भी गौरवान्वित करने वाला महत्वपूर्ण अध्याय है, जो इस संस्था के द्वारा पांडुलिपि संरक्षण लैब को पांडुलिपि हस्तगत करायी गयी है।