स्कूल व कॉलेज खुलने से युवाओं व किशोरों के मानसिक स्थिति में होगा बदलाव
सामाज़िक व मानसिक स्तर पर प्रोत्साहन ज़रूरी- डॉ सुरेश
कोरोना के तीसरे चक्र की सम्भावना को लेकर सतर्कता ज़रूरी
दरभंगा कोरोना महामारी ने आम आदमी को जितना प्रभावित किया है, उससे कहीं अधिक युवा पीढ़ी, किशोर-किशोरियों और स्कूली बच्चों को प्रभावित किया है। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि युवा पीढ़ी और किशोर-किशोरियों को सामाजिक और मानसिक स्तर पर प्रोत्साहित किया जाए। फिलहाल सरकारी निर्देश के बाद स्कूल व कॉलेज खुल चुके हैं। बहुत दिनों के बाद युवाओं एवं किशोरों को अपने मनःस्थिति के बारे में दोस्तों के साथ चर्चा करने को मिलेगा एक दूसरे से अपनी मन की बातों को बताने की आजादी होगी। खुलकर एक दूसरे के सामने होंगे। इससे मानसिक स्थिति में निश्चित रूप से बदलाव देखने को मिलेगा। डीएमसीएच के मनोरोग विभाग के चिकित्सक डॉ सुरेश ने पुनर्वास और किशोर मनोविज्ञान के बारे में जानकारी देते हुए बताया संक्रमण के दूसरे दौर के बाद स्थिति में सकारात्मक बदलाव आया है। लोग एक दूसरे से मिल रहे हैं लेकिन अभी भी कोरोना के तीसरे चक्र को लेकर संभावना बनी हुई है। इसके मद्देनजर कोरोना प्रोटोकॉल का अनुपालन हर हाल में करना होगा। ताकि हम फिर से कोरोनावायरस के संक्रमण से खुद को व दूसरों की रक्षा कर सकें।
युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर महामारी का प्रभाव पड़ा
डॉ सुरेश ने कहा शताब्दी की सबसे बड़ी त्रासदी में सबका समय मुश्किल भरा गुजर रहा है। ऐसे में युवा पीढ़ी अछूती नहीं है। वे समय के साथ खुद को ढाल नहीं पा रहे। उनकी दिनचर्या बिगड़ गई है। घर बैठे वे या तो अधिक खा रहे थे या कुछ बिल्कुल नहीं खाते।कुछ किशोर आक्रामक और चिड़चिड़े हो गए थे, तो कुछ के व्यवहार में गंभीरता यानी ओसीडी (अब्सेसिव कंपलसिव डिसआर्डर) का असर अभी भी दिख रहा है।. इसकी वजह यह है कि पाबंदियों के दौरान घर से निकलना मना है। ज्यादातर समय मोबाइल पर बीतता है। ऐसे में उनकी एकाग्रता घटी है। अपने संबंधियों को खोने वाले परिवारों में समस्या विकट हो गई है।
इसकी मनोवैज्ञानिक जांच क्या है
मनोवैज्ञानिक परीक्षण किसी भी व्यक्ति की मानसिक, व्यावहारिक और भावनात्मक स्थिति का मूल्यांकन है। किशोर अक्सर अनचाहे फैसले थोप जाने के भय से अपनी भावनाओं को बताने में हिचकते हैं। उनके व्यवहार से उनकी भावना का पता लगाना मुश्किल होता है कि वह तनाव की किस स्थिति से गुजर रहे हैं या उनके ग्रुप के बदलाव का क्या व्यवहार है। किशोर भावनात्मक अनुभवों को अधिक तीव्रता से स्वीकार करते हैं और मजबूती से भावनात्मक स्थिति पर प्रतिक्रिया भी देते हैं। कम ही समय में उनके मन में कई तरह की भावनाएं पैदा होती हैं। बावजूद इसके कुछ विशेष तरह लक्षणों से किशोरों के तनाव की पहचान की जा सकती है, जैसे कि बिना वजह का गुस्सा या चिड़चिड़ापन, आक्रामक और हिंसात्मक व्यवहार, सामाजिक दूरी बनाना, बहुत अधिक नकारात्मकता, किसी भी शौक या चीज में रुचि नहीं लेना, किसी भी तरह की नियमित दिनचर्या को फॉलो नहीं करना, बहुत अधिक खाना या बिल्कुल भी नहीं खाना, खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करना और अधिक गंभीर स्थिति में आत्महत्या का प्रयास करना आदि लक्षणों से उनकी भावनाओं का पता लगाया जा सकता है।
किशोरों के मानसिक तनाव को ऐसे दूर करें
डॉ सुरेश ने बताया अभिभावकों को यह समझना होगा कि किशोर इस समय सबसे अधिक मुश्किल समय से गुजर रहे हैं। कोविड की वजह से लगाई गईं पाबंदियों के कारण बच्चे बाहर की गतिविधियों में भाग नहीं ले पा रहे हैं। धीरे धीरे स्कूल और कॉलेज खुले हैं। इससे पहले बच्चे कैंपस लाइफ और दोस्तों को मिस कर रहे हैं, जिनसे अक्सर वह अपने मन की बातें साझा करते थे। इन सभी परिस्थितियों के बीच सामंजस्य बनाना बेहद मुश्किल है। किशोरों की समस्याओं को धैर्यपूर्वक समझें। यह जानने की जरूरत है कि किशोरों की ऊर्जा को पारिवारिक कार्यक्रम और ऐसी रचनात्मक कार्यों में लगाएं, जिससे वह खुद को उदासीन न महसूस करें। इस समय उनका दोस्त बनें, उनकी सराहना करें, कार्य के लिए प्रोत्साहित करें। माता-पिता को भी अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित करने की कोशिश करनी चाहिए। वह भी कोशिश करें कि दिनभर में उनका स्क्रीन टाइम कम हो, लेकिन इस बात का निर्णय भी बच्चों से बात करने के बाद ही लें।
किशोरों की मानसिक स्थिति को समझा जा सकता है
बिल्कुल सही, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता की कमी के कारण लोग तनाव को लेकर खुलकर बात नहीं करते हैं। मानसिक स्वास्थ्य को दूर करने के लिए संसाधनों की कमी है। इसके साथ ही, इस संदर्भ में की गई बातों को लोग नकारात्मक अर्थ अधिक निकालते हैं, लेकिन अब समय बदल रहा है, युवा वर्ग मानसिक तनाव को लेकर अधिक सजग है। युवा सामाजिक और व्यवहारिक मुद्दों पर बात करने की जरूरत को अच्छे से समझते हैं।युवा तनाव के विषय को लेकर आगे आ रहे हैं, और इसे कैसे दूर किया जाएं इसका भी समर्थन कर रहे हैं। इस सभी के बावजूद मानसिक स्वास्थ्य के लिए ऑनलाइन काउंसलिंग को अधिक विस्तृत किया जाना चाहिए, जिससे जरूरत पड़ने पर युवा आपात स्थिति में भी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से सीधे संपर्क कर सकें।