जलवायु परिवर्तन जनित आपदा विश्व की सबसे बड़ी समस्या-डा सुनील पथ निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियंता मधुबनी जिला के खिरहर गाँव निवासी डा सुनील कुमार चौधरी ने जापान के टोकियो शहर में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय नेचुरल हजार्ड कान्फ्रेस में वीडियो कांफ्रेंसिग के माध्यम से शोध पत्र प्रस्तु
त कर भारत,बिहार एवं पथ निर्माण विभाग का मान बढाया । वे जापान में नेचुरल हजार्ड कान्फ्रेस में शोध पत्र प्रस्तुत करने वाले भारत, बिहार एवं पथ निर्माण विभाग के पहले अभियंता हैं। डा चौधरी के शोध पत्र का शीर्षक था-“क्लाइमेट चेन्ज, डिजास्टर एण्ड सिक्योरिटी-इश्यू, कनसर्न एण्ड इम्प्लिकेसन फोर इण्डिया ” ।डा चौधरी ने बताया कि जलवायु परिवर्तन जनित प्राकृतिक आपद विश्व की सबसे बड़ी समस्या है ।जलवायु परिवर्तन जनित प्राकृतिक आपदा भारत जैसे विकासशील देश की सुरक्षा के लिए खतरा है ।हाल के दिनों में बाढ एवं सुखाड़ तथा इन प्राकृतिक आपदा जनित रोगों की विभीषिका विश्व समुदाय के लिए गंभीर चिंता का विषय है ।जलवायु परिवर्तन जनित प्राकृतिक आपदा की राजनीति अगला विश्व युद्ध का कारण बन सकता है ।इसके लिए बड़े पैमाने पर स्ट्रक्चरल एवं नन स्ट्रक्चरल मेजर अपनाने की जरूरत है ।उन्होने बताया कि भारत एक बहुआपदा प्रवण राज्य है जो बाढ एवं सुखाड़ की मार झेलता रहा है ।ऐसे में जरूरी है कि इन्फ्रास्टक्चर निर्माण एवं प्रबंधन में क्लाइमेट एवं डिजास्टर रेजिलिएन्ट एप्रोच अपनाया जाय। डिजास्टर रेजिलिएन्ट एप्रोच डिजास्टर के साथ जीने की कला है ।डा चौधरी ने जलवायु परिवर्तन जनित प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए इन्टिग्रेटेड एप्रोच अपनाने की जरूरत बताई । साथ ही क्लाइमेट चेन्ज की जगह क्लाइमेट अफेयर की जोरदार वकालत की ।इसके लिए समाज में लोगो को जागरूक करना होगा ।उन्होने बताया कि पिछले दशक में भारत में जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में अभूतपूर्व काम हुआ है।क्लाइमेट चेन्ज पर एक्सन प्लान एवं आपदा प्रबंधन पर डी आर आर रोड मैप बनाया गया है ।क्लाइमेट एवं डिजास्टर रेजिलिएन्ट निर्माण पर बड़े पैमाने पर काम हो रहा है । जलवायु परिवर्तन जनित आपदा के समय इन्फ्रास्टक्चर भारी संख्या में क्षति ग्रस्त हो जाते हैं एवं जान माल की काफ़ी क्षति होती है जिससे लोगों को भारी कष्ट उठाना पड़ता है।ऐसे में पारम्परिक निर्माण एवं प्रबंधन में बदलाव की जरूरत है ।डा चौधरी ने निर्माण कार्य में अभिकल्प एवं मटेरियल के विशिष्टयो एवं प्रबंधन नीतियों में बदलाव की जरूरत की जोरदार वकालत की एवं इस दिशा में शोध को बढ़ावा देने की जरूरत बताई ।उन्होने निर्माण कार्य में प्लास्टिक, जूट,भेटिभर ग्रास,फ्लाइ ऐश,सेल्फ क्यूरिन्ग एन्ड सेल्फ कम्पैक्टिन्ग कन्क्रीट के प्रयोग की आवश्यकता पर बल दिया ।उन्होने क्लाइमेट एवं डिजास्टर रेजिलिएन्ट निर्माण एवं प्रबंधन में बायोइन्जिनियरिन्ग की महत्ता पर विस्तार से प्रकाश डाला।उन्होने बताया कि ऐसे पौधों को लगाने की जरूरत है जो कार्बन डाई ऑक्साइड का शोषण कर सके। उन्होने बताया कि क्लाइमेट एवं डिजास्टर रेजिलिएन्ट निर्माण एवं प्रबंधन पर समाज के हर तबके को जागरूक करने के अभियान को एक आन्दोलन का रूप देकर पूरा देश में फैलाने की जरूरत है । डा चौधरी अन्तरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर के तकनीकी एवं सामाजिक संगठनों से जुड़कर जलवायु परिवर्तन जनित आपदा एवं उससे निपटने के लिए डिजास्टर रेजिलिएन्ट एवं कौस्ट इफेक्टिव टेक्नोलॉजी को समाज के अन्तिम पंक्ति के लोगों तक पहुंचाने का काम करते रहे हैं ।डा चौधरी बिहार राज्य अभियंत्रण सेवा संघ के पूर्व सचिव भी रह चुके हैं ।उन्होने निम्नलिखित पंक्तियों के साथ अपनी बात समाप्त की-
“बिहार के हम अभियंता, आसमां है हद हमारी ,
जानते हैं चान्द, सूरज जिद हमारी, जद हमारी ।
जलवायु परिवर्तन के असर को कम करके दम लेंगे हम,
हम हैं देशी, हम हैं देशी, हर देश में छाये है हम।
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