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जैव अपशिष्ट प्रबंधन एवं क्रियान्वयन के लिए कार्यपालक निदेशक ने सिविल सर्जन को दिया आवश्यक दिशा निर्देश

जैव अपशिष्ट प्रबंधन एवं क्रियान्वयन के लिए कार्यपालक निदेशक ने सिविल सर्जन को दिया आवश्यक दिशा निर्देश.
-निर्देश के आलोक में सीएस ने सभी प्रभारी को जैव अपशिष्ट प्रबंधन क्रियान्वयन का जारी किया निर्देश


मधुबनी सरकारी अस्पतालों की परख जैव चिकित्सा अपशिष्ट (बायो मेडिकल वेस्ट) प्रबंधन के मानकों पर की जाएगी। जिसके मुताबिक उन्हें न सिर्फ इसका उचित इंतजाम करना होगा, साथ ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से प्रमाण पत्र भी लिया जाएगा। हर अस्पताल में जैव और चिकित्सकीय कचरा उत्पन्न होता है। जो अन्य लोगों के लिए खतरे का सबब बन सकता है। इसे देखते हुए इस कचरे का उचित प्रकार निस्तारण कराने का प्रावधान भी है। जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियमावली 2016 में पारित किए गए नियम में प्रावधानों को और कड़ा किया गया है। हर अस्पताल, अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र एवं स्वास्थ्य उपकेंद्र को 26 नवंबर तक प्राधिकार प्राप्त करने का अनुरोध किया गया है। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण में पारित आदेश के अनुसार पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के रूप में प्रतिमाह 1 करोड़ रुपए वसूला जा सकता है। कानून के मद्देनजर स्वास्थ्य विभाग के कार्यपालक निदेशक संजय कुमार सिंह ने सिविल सर्जन को पत्र जारी किया है। पत्र में साफ किया गया है कि सभी अस्पतालों के लिए एक नोडल अधिकारी नामित किया जाएगा। नोडल अधिकारियों की जिम्मेदारी होगी कि वह प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से लाइसेंस हासिल करें। साथ ही जैव चिकित्सा अपशिष्ट समिति का गठन कराया जाएगा। यही नहीं, अस्पताल के सभी अधिकारियों व कर्मचारियों को टीकाकरण के जरिए प्रतिरक्षित और जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन पर प्रशिक्षण भी मुहैया कराना होगा। सिविल सर्जन डॉ सुनील कुमार झा ने बताया कि नए आदेश के तहत कार्रवाई कराई जा रही है। सभी प्रभारी चिकित्साधिकारियों को निर्देश भेजे गए हैं।

बायो-मेडिकल वेस्ट का उचित प्रबंधन पर्यावरण को रखता है स्वच्छ:
सिविल सर्जन डॉ सुनील कुमार झा ने बताया जैव चिकित्सा अपशिष्ट से होने वाले संभावित खतरों एवं उसके उचित प्रबंधन जैसे- अपशिष्टों का सेग्रिगेशन, कलेक्शन भंडारण, परिवहन एवं बायो-मेडिकल वेस्ट का उचित प्रबंधन जरूरी है। इसके सही तरीके से निपटान नहीं होने से पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है। अगर इसका उचित प्रबंधन ना हो तो मनुष्य के साथ साथ पशु- पक्षियों को भी इससे खतरा है । इसलिए जैव चिकित्सा अपशिष्टों को उनके कलर-कोडिंग के अनुसार ही सेग्रिगेशन किया जाना चाहिए।

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