सी एम कॉलेज, दरभंगा में “राष्ट्रभाषा की अधिकारी हिन्दी” विषयक राष्ट्रीय वेबीनार आयोजित
इग्नू अध्ययन केन्द्र तथा डा प्रभात दास फाउंडेशन के द्वारा ‘विश्व हिन्दी दिवस’ की पूर्व संध्या पर कार्यक्रम आयोजित
वेबीनार में डा फूलो पासवान, डा शंभू शरण सिंह, डा राजेन्द्र साह, डा रीता दुबे, डा मीनाक्षी राणा आदि ने रखें महत्वपूर्ण विचार हिन्दी सशक्त व सरल भाषा, विश्व का हर पांचवां व्यक्ति हिन्दी भाषी- डा शंभू शरण
हमारी अभिव्यक्ति व संप्रभुता की प्रतीक हिन्दी भारोपीय भाषा परिवार की प्रमुख भाषा- डा फूलो पासवान
हमारे स्वाभिमान का प्रतीक हिन्दी के राष्ट्रभाषा बनने में संकीर्णता व क्षेत्रीयता बड़ा बाधक- प्रो राजेन्द्र
सी एम कॉलेज, दरभंगा के इग्नू अध्ययन केन्द्र तथा डा प्रभात दास फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में ‘विश्व हिन्दी दिवस’ की पूर्व संध्या पर महाविद्यालय में “राष्ट्रभाषा की अधिकारी हिन्दी” विषयक वेबीनार का आयोजन प्रधानाचार्य डा फूलो पासवान की अध्यक्षता में किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में इग्नू क्षेत्रीय केन्द्र, दरभंगा के वरीय क्षेत्रीय निदेशक डा शंभू शरण सिंह, मुख्य वक्ता के रूप में विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो राजेन्द्र साह, विशिष्ट वक्ता के रूप में सी एम कॉलेज के प्राध्यापक डा रीता दुबे व हिन्दी प्राध्यापिका डा मीनाक्षी राणा, इग्नू समन्वयक डा आर एन चौरसिया, डा प्रभात दास फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा तथा इग्नू के सहायक समन्वयक शंभू मंडल आदि ने महत्वपूर्ण विचार रखे। वेबीनार में डा भक्तिनाथ झा, डा लक्ष्मण यादव, डा कुमारी स्मिता, डा विकास सिंह, डा बिन्दु चौहान, डा अनीता गुप्ता, डा शशि प्रकाश, प्रो बैजू बावरा, सुधांशु शेखर, डा कीर्ति चौरसिया, विपिन कुमार सिंह, ई सच्चिदानंद चौरसिया, सुभाष चंद्र, जूही झा, कारी चौपाल, तरुण मिश्रा, विवेक सिंह, तानिया पोद्दार, अनिल कुमार सिंह, आशीष रंजन, विजय पंडित, अजीत मिश्रा, अमरजीत कुमार, आर्य शंकर, दीपेश, बालकृष्ण, दीपक, निशीथचंद्र, विवेक सिंह, सत्यम, रश्मि शर्मा, रामसुंदर चौरसिया, डा प्रेम कुमारी, नित्यानंद, मोहित, राहुल, प्रभाकरण, पवन, फैजान आलम, रवीन्द्र, रमेश, गोपाल, प्रभात, गुंज बिहारे सहित 60 से अधिक व्यक्तियों ने भाग लिया।
प्रधानाचार्य डा फूलो पासवान ने कहा कि हिन्दी हमारी मातृभाषा एवं समर्थ भाषा है। हमारी अभिव्यक्ति व संप्रभुता का प्रतीक हिन्दी भारतीय भाषा परिवार की प्रमुख भाषा है। हिन्दी ने बहुत से उतार-चढ़ाव देखा है। यह भारत को एकता के सूत्र में बांधने की क्षमता रखती है और राष्ट्रभाषा बनने की अधिकारी भी है।
मुख्य अतिथि डा शंभू शरण सिंह ने कहा कि निःसंदेह हिन्दी राष्ट्रभाषा की अधिकारी है। यह सशक्त व सरल भाषा है जो राष्ट्र के विकास, स्वाभिमान एवं स्मिता का प्रतीक है। राजनीतिक कारणों से ही हिन्दी अब तक राष्ट्रभाषा नहीं बन पायी है। त्रिभाषा फॉर्मूला लागू होने, हिन्दी के लगातार विकास तथा तकनीकी रूप से कंप्यूटर की भाषा बनने से हिन्दी स्वतः राष्ट्रभाषा बन जाएगी।
मुख्य वक्ता प्रो राजेन्द्र साह ने कहा कि हमारे स्वाभिमान का प्रतीक हिन्दी के राष्ट्रभाषा बनने में संकीर्णयता व क्षेत्रीयता सर्वाधिक बाधक है। अभी हिन्दी भारत की राजभाषा है, जिसे बहुत पहले ही राष्ट्रभाषा बन जाना चाहिए था।क्योंकि यह आमजनों की सशक्त व आत्मा की भाषा है। हिन्दी अन्य भाषा की तुलना में अधिक बोधगम्य व संवेदनशील है। आज संपर्क भाषा के रूप में भी हिन्दी सर्वस्वीकृत है। आने वाले समय में सबके सहयोग एवं सहमति से हिन्दी सर्वभाषा के रूप में राष्ट्रभाषा अवश्य बनेगी।
विशिष्ट वक्ता डा रीता दुबे ने कहा कि हिन्दी के राष्ट्रभाषा बनने से किसी भी अन्य भाषा को कोई नुकसान नहीं होगा। इसमें सांस्कृतिक परंपरा, गौरव के तत्व व भारतीय स्मिता आदि मौजूद हैं। हिन्दी समावेशी भाषा है, जिसमें ग्रहण करने की काफी क्षमता है। यह तकनीकी रूप से भी समृद्ध है और उच्चारण में आसान है। हिन्दी लचीली भाषा है, जिसे सीखना आसान है। हिन्दी का भक्ति आंदोलन तथा स्वतंत्रताता संग्राम में काफी सहयोग रहा है। समृद्धशाली तथा बृहद् कोष वाली भाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग भारत की कुल आवादी का 70% लोग करते हैं।
विशिष्ट वक्ता के रूप में डा मीनाक्षी राणा ने कहा कि भारत की एकता व अखंडता के लिए हिंदी राष्ट्रभाषा होनी चाहिए। हिंदी विदेशों में भी काफी प्रचलित है, जिसके कारण ही भारत की पहचान बढ़ रही है। समृद्धता व तकनीकी दृष्टि से भी हिन्दी राष्ट्रभाषा होने की क्षमता रखती है।
विषय प्रवेश कराते हुए इग्नू समन्वयक डा आर एन चौरसिया ने कहा कि राष्ट्रभाषा राष्ट्र की वाणी व आत्मा होती है जो सरकारी कर्मियों एवं आमजनों के लिए सहज और सुगम हो। भारत में हिंदी सर्वाधिक लोगों द्वारा बोली- लिखी व पढी- समझे जाने वाली भाषा है जो दो-तीन माह के प्रयास से आसानी से सीखी जा सकती है। इसकी लिपि वैज्ञानिक एवं सुबोध है। यह जैसी बोली जाती है, वैसी ही लिखी भी जाती है। हिन्दी में शैक्षणिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक सभी प्रकार के कार्य- व्यवहारों के संचालन की पूर्ण क्षमता है। इन कारणों से हिन्दी को राष्ट्रभाषा तथा देवनागरी को राष्ट्रलिपि बनाया जाना चाहिए।
राजकुमार गणेशन के संचालन में आयोजित कार्यक्रम में डा प्रभात दास फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि 1975 में आयोजित प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन की वर्षगांठ पर प्रतिवर्ष 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत 10 जनवरी, 2006 को हुई थी। धन्यवाद ज्ञापन इग्नू के सहायक समन्वयक शंभू मंडल ने किया।