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दरभंगा / भारत की प्रतिष्ठा के लिए संस्कृत का विकास जरूरी कुलाधिपति पांडुलिपियों के संरक्षण व डिजिटाइजेशन पर दिया बल कहा- संस्कृत सर्वाधिक उपयुक्त भाषा कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में सातवें दीक्षांत समारोह की

भारत की प्रतिष्ठा के लिए संस्कृत का विकास जरूरी : कुलाधिपति

 

रिपोर्ट राजु सिंह अजित कुमार सिंह दरभंगा news24liveपांडुलिपियों के संरक्षण व डिजिटाइजेशन पर दिया बलकहा- संस्कृत सर्वाधिक उपयुक्त भाषा कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में सातवें दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करते हुए सूबे के महामहिम कुलाधिपति सह राज्यपाल माननीय फागू चौहान ने गुरुवार को कहा कि भारत को फिर से जगतगुरु के रूप में प्रतिष्ठा दिलानी है तो संस्कृत का विकास जरूरी है। यह समय की मांग भी है और भारतीय सांस्कृतिक नव-जागरण वास्ते एक गौरवशाली सार्थक अभियान भी । उन्होंने कहा कि आदिकाल से चरित्र-शिक्षा, शांति,सद्भाव एवम विश्वबन्धुत्व का पाठ संस्कृत साहित्य से ही हमने सीखा है। वेदों, उपनिषदों, दर्शनों, पुराणों एवम धर्मशास्त्रों ने जीवन यापन का ऐसा आदर्श मार्ग स्थापित किया है जिसपर चलकर हम मानवता का व्यापक कल्याण कर सकते हैं । संस्कृत ज्ञान के अभाव में हम न तो भारत की सांस्कृतिक सम्पन्नता और विपुल ज्ञान सम्पदा से परिचित हो पाएंगे और न ही अपने राष्ट्र की भावनात्मक एकता को सुरक्षित रख पाएंगे।

उक्त जानकारी देते हुए विश्वविद्यालय के पीआरओ निशिकांत ने बताया कि महामहिम ने संस्कृत के विकास के लिए और अधिक मार्ग प्रशस्त करने को कहा। साथ ही संस्कृत की संवृद्धि के लिए उसकी बहुमूल्य पांडुलिपियों के संरक्षण एवम उसके डिजिटाइजेशन पर बल दिया। इसी कड़ी में उन्होंने आगे कहा कि पूरी दुनिया के लोगों को अपने परिवार के ही सदस्य की भांति समझने का ज्ञान वसुधैव कुटुम्बकम हमे संस्कृत ही सिखाती है। आज के भूमंडलीकरण के दौर में जिस विश्वग्राम की परिकल्पना की गई है दरअसल इस अवधारणा के मूल में भी भारतीय चिंतन और दर्शन की महान परम्परा ही है जो संस्कृत से पुष्पित व पल्लवित होती है।
विश्वविद्यालय मुख्यालय के शिक्षाशास्त्र विभाग परिसर में बनाये गए भव्य पंडाल में खचाखच भरे छात्रों, शिक्षकों, गवेषकों व अन्य आमंत्रित अतिथियों के साथ सभी कर्मियों के समक्ष संस्कृत की प्रशंसा व उसकी महत्ता बताते हुए महामहिम ने कहा कि आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की उपयोगिता और सफलता, आर्यभट्ट द्वारा शून्य की खोज, अणु-परमाणु की परिकल्पना, शल्य चिकित्सा के जनक के रूप में सुश्रुत की प्रसिद्धि संस्कृत की महान परंपरा एवम विरासत का परिचय देती है। विश्व के ज्ञान विज्ञान के सम्पूर्ण विषय संस्कृत साहित्य में सुरक्षित है। उन्होंने संस्कृत को विश्व की सर्वश्रेष्ठ भाषा बताया।
अपने सम्बोधन के क्रम में महामहिम ने संस्कृत विश्वविद्यालय के संस्थापक महादानवीर महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह के प्रति श्रद्धा निवेदन किया और उनके संस्कृत शिक्षा प्रेम को भी नमन किया। साथ ही मिथिला की धरती पर आयोजित दीक्षांत समारोह में भाग लेने पर प्रसन्नता जताई।
उन्होंने कहा कि उपाधि ग्रहण करने वाले छत्रों के लिए आज का दिन उनके जीवन का स्वर्णिम अवसर है क्योंकि आज उन्हें अपनी साधना व परिश्रम का मधुर फल प्राप्त हुआ है। महामहिम ने सभी छात्रों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए आशा जताई कि विश्वविद्यालय से अर्जित ज्ञान व संस्कार का उपयोग वे अपने जीवन के साथ साथ सम्पूर्ण मानवता के व्यापक कल्याण के लिए करेंगे।
शैक्षणिक सत्र के समय पर संचालन, राजभवन के निर्देशों के पालन में तत्परता एवम विकास कार्यो के लिए उन्होंने विश्वविद्यालय की प्रशंसा की। साथ ही उन्होंने आशा जताई कि यह संस्कृत विश्वविद्यालय कुलपति के नेतृत्व में एक उत्कृष्ट अध्ययन केंद्र के रूप में अपनी पहचान बनाएगा।
सभी सुखी हों, सबका जीवन कल्याणमय हो, सभी उन्नति के शिखर को छुएं ऐसी ही मंगल कामनाओं के साथ महामहिम ने अपने सम्बोधन को पूरा किया।

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