विटामिन्स, प्रोटीन एवं फाइबर युक्त मशरूम के सेवन से उच्च रक्तचाप, हृदयरोग, डायबिटीज तथा मोटापा आदि पर रोक संभव- डॉ ख्वाजा सलाहउद्दीन
10 दिवसीय मशरूम- प्रशिक्षण शिविर के प्रशिक्षुओं को दी गई मशरूम उत्पादन एवं व्यवसाय की सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक जानकारी
युवा, महिला तथा गरीब व्यक्ति द्वारा भी मशरूम की विभिन्न प्रजातियों का सतत उत्पादन कर सालों भर नियमित मुनाफा कमाना संभव- डॉ चौरसिया

मशरूम फ्रांसीसी शब्द मोसरीन से बना है जो एक प्रकार का फंगस है, जिसकी हज़ारों प्रजातियां हैं। मानवोपयोगी मशरूम स्वाद, स्वास्थ्य एवं औषधीय गुणों की दृष्टि से बेहतरीन खाद्य पदार्थ है। इसका उपयोग लगभग हर देश- क्षेत्र एवं धर्म- वर्ग के लोगों के द्वारा किया जाता है। उक्त बातें ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्राध्यापक डा ख्वाजा सलाहउद्दीन ने आर-सेटी, दरभंगा द्वारा बेलादुल्ला में चल रहे 10 दिवसीय निःशुल्क मशरूम- प्रशिक्षण शिविर के छठे दिन शिविर का शुभारंभ करते हुए कही। उन्होंने मशरूम में पाए जाने वाले विभिन्न उपयोगी तत्वों- पोटैशियम, मैग्नीशियम, सेलेनियम, फाइबर्स, विटामिन- बी कंपलेक्स तथा विटामिन- डी आदि की विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि इसके गुणों के कारण ही इसका अधिकाधिक उपयोग दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। मशरूम उत्पादन- घर की स्वच्छता का खास ध्यान रखते हुए चूहों से सुरक्षा आवश्यक है।
डॉ ख्वाजा ने बताया कि चीन में मशरूम का सर्वाधिक उत्पादन और खपत होता है, परंतु पोलैंड सबसे बड़ा निर्यातक देश है। भारत में हिमाचल प्रदेश के सोलन को ‘मशरूम सिटी’ कहा जाता है। उन्होंने आह्वान किया कि दरभंगा को ‘मशरूम- शहर’ के रूप में विकसित करें।
मशरूम की मास्टर ट्रेनर प्रतिभा झा ने मशरूम की विभिन्न प्रजातियों की जानकारी, उत्पादन का समय व तापमान, देखभाल एवं उनके उपयोग के लाभों की विस्तार से जानकारी देते हुए ओएस्टर्ड एवं मिल्की मशरूम की विशेष जानकारी दी। उन्होंने भूसों के निर्जीवीकरण, थैला पैकिंग तथा बीजारोपण आदि का प्रयोग भी कराया। समस्तीपुर जिला के मशरूम- प्रशिक्षक कुंदन कुमार झा ने मशरूम की सब्जी, भूजिया, सलाद, पकौड़ी, अचार, सूप, पापड़, पाउडर, सेव, खीर, बिस्किट, समोसा, नूडल्स, सॉस, ब्रेड, पेरा, चिप्स आदि बनाने की संक्षिप्त जानकारी देते हुए बताया कि पिछले कुछ वर्षों में यहां के किसानों की भी रुझान मशरूम- खेती की ओर तेजी से बढ़ी है। उन्होंने ग्रीष्मकालीन दूधिया मशरूम की जानकारी देते हुए बताया कि गर्मियों के दिनों में जब बाजार में कोई और ताजा मशरूम की किस्में उपलब्ध नहीं होती हैं, उसे समय दूधिया मशरूम की फसल से अधिक लाभ कमाया जा सकता है।
शिविर के संयोजक डॉ आर एन चौरसिया ने कहा कि यदि प्रशिक्षित व्यक्ति मशरूम की खेती करें तो लागत की तुलना में कई गुना अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। एक किलो मशरूम उत्पादन में करीब 15 रुपए लागत आता है, जिसका बाजार मूल्य 300 रुपए से भी अधिक होता है। विशेष रूप से युवा, महिला तथा गरीब व्यक्ति भी मशरूम की विभिन्न प्रजातियों का सतत उत्पादन कर सालों भर नियमित काफी मुनाफा कमा सकते हैं। मशरूम- उत्पादन लागत मूल्य का कम से कम 50% अनुदान राज्य सरकार देकर किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। उन्होंने कहा कि कम जमीन तथा कम पूंजी वाले व्यक्तियों के लिए भी मशरूम- उत्पादन आत्मनिर्भरता की दृष्टि से मील का पत्थर साबित हो सकता है।
शिविर में मोहम्मद चांद, प्रकाश झा, राजीव कुमार यादव, मदन कुमार चौधरी, अनिल कुमार चौपाल, रामाशीष कुमार साहनी, शशि कांत सदा, अंजली कुमारी, विनीता मिश्रा, प्रभात कुमार, अमित वत्स, कंचन कुमारी, भक्ति रानी, कीर्ति कुमारी, मुकेश कुमार झा, अरुण कुमार, अपराजिता, रिंकू देवी, लालबाबू ठाकुर, नीतीश कुमार चौधरी, किशन कुमार, हेबा अशरफ, जावेद अख्तर, मो नदीम सिद्दीकी, सिद्धि कुमारी तथा सुनील कुमार यादव आदि उपस्थित थे। संचालन मोहम्मद चांद ने किया।
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