आइसा–आरवाईए एवं दरभंगा नागरिक मंच के तत्वावधान में हुआ ‘छात्र–युवा महासम्मेलन’

दरभंगा,
आइसा, आरवाईए एवं दरभंगा नागरिक मंच के तत्वावधान में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की वर्षी के अवसर पर 65 प्रतिशत आरक्षण को संविधान की नौवीं अनुसूची में डालने, वक्फ़ संशोधन कानून को वापस लेने तथा संवैधानिक संकट आदि के मुद्दे पर ‘छात्र–युवा महासम्मेलन’ का आयोजन प्रेक्षागृह में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता दिनेश साफी (नागरिक मंच), अशर्फी राम (नागरिक मंच), केसरी कुमार यादव (किसान महासभा), ओणम सिंह (आरवाईए), रंजीत राम, बिपिन कुमार एवं सबा रौशनी की सात सदस्यीय अध्यक्ष मंडली ने की। कार्यक्रम का संचालन RYA राज्य सह सचिव संदीप कुमार चौधरी ने किया।
कार्यक्रम के आरम्भ में आगत अतिथियों को बाबा नागार्जुन की सुप्रसिद्ध कृति ‘बलचनमा’ भेंट कर सम्मानित किया गया। तदोपरान्त आगत अतिथियों ने 1857 के अमर नायकों को पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि भाकपा–माले के राष्ट्रीय महासचिव का. दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि इस देश की राष्ट्रीय चेतना के निर्माण में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की बहुत बड़ी भूमिका है। सन 57 अंग्रेजों के लिए बिल्कुल आउट ऑफ सिलेबस प्रश्न था। उन्हें यह यकीन ही नहीं हुआ कि हिन्दू–मुस्लिम सभी मिलकर औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ लड़ सकते हैं। तभी से अंग्रेजों ने दोनों धर्मावलंबियों को धार्मिक स्तर पर बांटना शुरू कर दिया। जिसे आज हम इस्लामोफोबिया कहते हैं उसकी शुरुआत अंग्रेजों ने ही की थी। इसी धार्मिक विभाजन का असर था कि 1947 आते–आते धर्म के आधार पर देश का विभाजन हुआ। स्मरणीय है कि भारतीय संविधान उस दौर में लिखा गया जब विभाजन हो चुका था, देशभर में दंगे हो रहे थे; वैसे समय में संविधान के प्रियम्बल में यह वादा किया गया कि सबके लिए आजादी, समानता और बंधुता होगी। इसका वैचारिक आधार 1857 ही था। हालांकि बाबासाहब जो संविधान लिखना चाहते थे, उसका एक प्रारूप उनकी पुस्तक स्टेट एंड माइनॉरिटीज में देखने को मिलती है। वो दलितों को भी माइनोरिटी मानते थे। अगर वो बात होती तो दलित–मुस्लिम में स्वाभाविक एकता होती। लेकिन वह नहीं हो सका। संविधान का प्रियम्बल संपूर्ण आजादी, बराबरी की बात करता है। इसलिए वह हमारे आंदोलन का घोषणापत्र है।
उन्होंने आगे कहा कि इस देश ने विगत 22 अप्रैल से बहुत कुछ झेला है। पहलगाम में जो घटना घटी, जिन परिवारों ने अपना सबकुछ खो दिया उनके प्रति संवेदना है। ऐसे ही एक पीड़ित परिवार की पत्नी हिमांशी नरवाल ने कहा कि हम न्याय चाहते हैं लेकिन शान्ति भी। हम नहीं चाहते कि न्याय के नाम पर देश के मुस्लिमों और कश्मीरियों को टारगेट किया जाए। उस आवाज को दबाया गया। उन्हें गालियां दी गईं। ऐसे में ऐसे कई पीड़ित परिवार हैं, जिनके द्वारा ऐसी अपीलें की गईं। लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ। आज भी सबकुछ के बावजूद हमारे पास इस प्रश्न का उत्तर नहीं है कि आतंकवादी कहां से आए थे, कहां गए? कुछ पता नहीं। कश्मीर से राज्य का दर्जा छीन लिया गया है। रक्षामंत्री अमित शाह ने जब कश्मीर में बैठक की तो उसके बाद उन्होंने कहा कि यहां सब ठीक है लेकिन प्रधानमंत्री के होने वाले कार्यक्रम को किसी आशंकावश रद्द कर दिया गया। इस आशंका के बावजूद हजारों पर्यटकों के लिए कोई सुरक्षा नहीं? प्राइवेट फंक्शन के लिए सुरक्षा, भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के लिए सुरक्षा के लिए आम लोगों के लिए कोई सुरक्षा नहीं। यह मोदी सरकार का वास्तविक चेहरा है। आज ऑपरेशन सिंदूर के बाद लोग इंदिरा जी को याद कर रहे हैं। यह समझना होगा कि 1971 केवल भारत–पाकिस्तान युद्ध नहीं था। वह बांग्लादेश का मुक्ति–संग्राम था। आपको लग सकता है कि भारत की अर्थव्यवथा, सेना पाकिस्तान से बेहतर है तो भारत को युद्ध से पीछे नहीं हटना चाहिए लेकिन यह समझना होगा कि दोनों देशों के पास परमाणु हथियार हैं। अगर उसका इस्तेमाल हुआ तो तबाही होगी। जिनका जंग से कोई लेना–देना नहीं है, वो जंग को आईपीएल समझते हैं। इसलिए जंग को लेकर कोई हल्की बात देश के लिए खतरनाक है। हमें इंसाफ जरूर चाहिए। जो इंसाफ आप देखना चाहते हैं, वो तो कुछ भी नहीं हुआ। युद्ध विराम हो, तनाव शिथिल किया जाए। वार्ता हो। कल जब सीजफायर हुआ तो इसकी घोषणा ट्रंप कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर किसी न्यूटल जगह पर बातचीत होगी। जबकि शिमला समझौते के मुताबिक कोई तीसरा पक्ष भारत–पाकिस्तान के बीच दखल नहीं दे सकता था लेकिन अब अमेरिका सीधे दखल दे रहा। यह मोदी सरकार की विदेश नीति की असफलता है।
माले महासचिव ने आगे कहा कि आज हमारे सामने सवाल है कि 1857 के जो साम्राज्यवाद विरोधी मूल्य हैं, जिनसे हमारे राष्ट्रीय चेतना निर्मित हुई थी, उनके बरक्स अमेरिकी साम्राज्यवाद से कैसे मुकाबला किया जाए! ट्रंप और उसकी नीतियों का विरोध किए बगैर कोई राष्ट्रवाद नहीं हो सकता।
उन्होंने यह भी कहा कि जब जाति जनगणना के लिए बिहार के मुख्यमंत्री के नेतृत्व में शिष्टमंडल प्रधानमंत्री से मिला था तो उन्होंने इससे साफ मना किया था लेकिन बिहार में चुनाव को देखते हुए वही भाजपा जाति जनगणना करने की बात कह रही है। इसका मतलब है दाल में बहुत कुछ काला है। नीतीश कुमार ने चुनाव के समय भूमि सुधार का वादा किया था लेकिन जीतने के बाद उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। वही हाल मोदी सरकार जाति जनगणना का भी करेगी। इस एजेंडे को लागू करवाने के लिए बिहार में भाजपा को निश्चित रूप से रोकना होगा। तभी जातीय जनगणना सच में संभव हो सकेगी।
दीपांकर जी ने कहा कि जिस प्रकार चार लेबर कोड गुलामी के कानून हैं, उसी तरह वक्फ संशोधन बिल भी गुलामी का दस्तावेज है। हमें मिलकर इसका विरोध करना होगा।
वहीं भाकपा माले की विधान परिषद सदस्या शशि यादव ने कहा कि महिलाओं को जबतक बराबरी का अधिकार नहीं मिलेगा तबतक लोकतंत्र मजबूत नहीं होगा। आज जो सत्ता पक्ष है उसके भीतर पितृसत्ता कूट–कूट कर भरी हुई है। जब महिलाएं सदन में कुछ बोलने को खड़ी होती हैं तो सीधे कहते हैं महिलाओं को कुछ आता है। इन्हीं प्रश्नों के साथ जब हम आगे बढ़ते हैं तो कहते हैं कि हमने 35 प्रतिशत महिला आरक्षण दिया आदि–इत्यादि लेकिन इस कड़वी सच्चाई को बिहार सरकार छुपा ले जाती है कि बिहार में महिलाओं को सबसे सस्ते श्रम के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। आज आजादी के इतने वर्षों बाद भी महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक माना जा रहा है।
बतौर मुख्य अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व अतिथि प्राध्यापक डॉ.लक्ष्मण यादव ने कहा कि जो दुनिया में युद्ध रुकवाने का दावा करते हैं उनसे अपने देश का सीमा तनाव सम्भल नहीं रहा है। सरकार ने 24 अप्रैल को गाइडलाइन जारी किया कि युद्ध संवेदनशील मसला है इसलिए इस पर गैर जिम्मेदाराना लाइव टेलीकास्ट आदि न करें लेकिन गोदी मीडिया क्या कर रही है? इसके साथ ही सीमा पर नागरिकों की जानें गईं, उनकी चिताएं ठंडी भी नहीं हुईं थीं और प्रधानमंत्री मधुबनी में चुनाव प्रचार के लिए आए। उत्तर प्रदेश में बड़े–बड़े होर्डिंग लगवा दिए गए, पुलवामा हमले के समय भी शहीदों की लाशों पर वोट मांगे गए थे। इस तरह की चुनावी राजनीति शर्मनाक है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भी प्रधानमंत्री का चुनाव प्रचार स्थगित नहीं होता। इससे बिहार चुनाव की अहमियत समझिए। ये वही बिहार है जहां दलितों–वंचितों को वोट डालने, खटिया पर बैठने का अधिकार नहीं था। इस देश में जाति पूछने के लिए किसी को सीमा पार से आने की आवश्यकता नहीं पड़ी। हजारों साल से जाति पूछी गई। इस देश में नब्बे प्रतिशत जनता को मनुष्य नहीं समझा गया। ये किस आधार पर था? आज जब जाति जनगणना की बात हम करते हैं तो भाजपा कहती थी कि इससे सामाजिक विभाजन बढ़ेगा। याद करिए इसी असमानता के खिलाफ त्रिवेणी संघ, अर्जक संघ और कम्युनिस्ट आंदोलनों के संघर्ष का इतिहास रहा है। हम सामाजिक न्याय की बात करते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि बिहार में चुनाव प्रचार के लिए भाजपा ने धर्म प्रचारकों, बाबाओं के रूप में अपने स्टार प्रचारकों को काम पर लगा दिया है। ये बाबा और धर्म प्रचारक सीधे–सीधे हिन्दू राष्ट्र की बात करते हैं। बाबासाहब ने हिन्दू राष्ट्र को भारत के लिए सबसे बड़ी विपत्ति बताया था। भाजपा जैसी साम्प्रदायिक शक्तियां धार्मिक उन्माद फैला कर दलितों–बहुजनों के वास्तविक मुद्दों को दबाना चाहती है। ताकि जातिगत शोषण और वर्चस्व को वे ढंक सकें। जबकि सच्चाई यह है कि 2025 के भारत में भी एक दलित जज नहीं बन सकता, उसे समाज के विरोध के कारण अपदस्थ होना पड़ सकता है। यह कर्पूरी की धरती है। मेरा सवाल है कि कर्पूरी को गाली देने वाले कौन लोग थे? क्या वो मुस्लिम थे क्या? अपने आपको ओबीसी प्रधानमंत्री बताने वाले मंडल कमीशन की बची हुई सिफारिशों को लागू क्यों नहीं करवाते? इसलिए शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ को अपना प्राथमिक मुद्दा बनाइए। और समाज में सांप्रदायिकता का जहर घोलने वालों को पहचानिए।
पूर्व सांसद अली अनवर अंसारी ने कहा कि हुक्मरानों ने देश के नौजवानों के भविष्य को संकटों में डाल दिया है। बेरोजगारों की इतनी लंबी फौज खड़ी हो चुकी है जिसकी गिनती नहीं की जा सकती। अनेक नौजवान बेरोजगारी के कारण खुदकुशी की कगार पर हैं। ऐसे समय में देश के अंदर जो माहौल है, निर्दोष लोगों की जानें जा रही हैं, ड्रोन से हमले हो रहे हैं, थल सेना के लोग संघर्षरत हैं। पहलगाम में 26 लोगों को धर्म पूछ कर मारा गया। मेरा सवाल है कि मोदी जी ने सऊदी अरब से लौट कर कश्मीर नहीं गए, शहीदों के परिजनों से मिलने नहीं गए लेकिन मधुबनी चुनाव प्रचार करने चले आए। ट्रंप के सामने मोदी जी ने जिस तरह देश की नाक कटा दी है और ट्रंप ने बड़बोली मोदी सरकार और देश की जनता से जैसा क्रूर मजाक किया है, वह असहनीय है। सीजफायर का सीज तो भारत को पकड़ा दिया लेकिन फायर पाकिस्तान को सौंप दिया तभी तो सीजफायर के कुछ घंटे बाद ही उसका उल्लंघन किया गया उधर से। यह भी यहां देखना होगा कि जब देश में सेना के जवान मारे जा रहे थे, बीजेपी के अनुषांगिक संगठन गोदी मीडिया के साथ मिलकर समाज में नफरत फैलाने का काम कर रहे थे। हिंदुस्तान ने आजादी के बाद से भारत–पाकिस्तान के मामले में किसी की पंचायती नहीं मानी थी लेकिन मोदी की विदेश नीति की यह बड़ी विफलता है कि अब अमेरिका इसमें दखल दे रहा।
उन्होंने जाति जनगणना के प्रति अपना समर्थन जताया।
पूर्व विधायक मनोज मंजिल ने कहा कि आज राष्ट्र का, दलित–बहुजन, महिला, बाबासाहब आंबेडकर आदि किसी का भी सम्मान सुरक्षित नहीं है। संसद में कहा जाता है कि आंबेडकर –आंबेडकर रटने से कुछ नहीं होगा। लेकिन यह बताना जरूरी है कि इस देश के करोड़ों दलित–बहुजन जब आंबेडकर का नाम लेते हैं तो उन्हें शक्ति मिलती है, प्रेरणा मिलती है।
उन्होंने आगे कहा कि जब राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनजनगणना होगी तब सच्चाई सामने आएगी कि किसके पास पूंजी है, किसके पास नौकरी है, कौन भूमिहीन है। भारत की सेना इस देश की मेहनतकश आबादी से बनती है। यह भी याद रखना होगा कि इसी भाजपा सरकार ने दो लाख सैन्य पदों को कम कर दिया, अग्निवीर जैसी योजनाएं लेकर आई। हमलोग 1857 की विरासत को याद करते हुए देश की फासीवादी निजाम से कह देना चाहते हैं कि संविधान हमारे लिए महज पुस्तक नहीं है। यह सवाल लोकतंत्र और हक–अधिकार बचाने का है।
आइसा के राष्ट्रीय महासचिव प्रसेनजीत ने कहा कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को इस दौर में याद करना बहुत जरूरी है। आज जब संविधान की मूल भावना पर लगातार हमला किया जा रहा है। यूसीसी से लेकर वक्फ संशोधन बिल लाकर मुस्लिम समाज पर हमला किया जा रहा है तो 57 की साझा विरासत संविधान और लोकतंत्र की मूल चेतना की रक्षा के पक्ष में बड़ी प्रेरक भूमिका अदा करती है। 1857 की विरासत बहादुर शाह जफर, मंगल पांडे और रानी लक्ष्मीबाई जैसे अमर बलिदानियों की साझी शहादत की उपलब्धि है।
आज आरक्षण पर हमले किए जा रहे हैं, दलितों–अल्पसंख्यकों के स्कॉलरशिफ्स को खत्म किया जा रहा है। आरक्षित पदों पर नॉट फाउंड सूटेबल कर योग्य अभ्यर्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा। बिहार सरकार में लगभग 10 लाख सरकारी नौकरियों के लिए पद रिक्त हैं जबकि केंद्र सरकार में 30 लाख से अधिक पद रिक्त हैं लेकिन कहीं कोई बहाली नहीं लाई जा रही। जब नौकरी की बात की जाती है ठेके–पट्टे पर बहाली की जाती है। दलित–बहुजन और महिला आबादी को शिक्षा और रोजगार से वंचित करने की बहुत बड़ी साजिश भाजपा द्वारा की जा रही है, इसे समझने और इसके खिलाफ व्यापक संघर्ष करने की जरूरत है।
मौके पर पोलित ब्यूरो सदस्य धीरेन्द्र झा, रंजीत राम, जिला सचिव बैद्यनाथ यादव सहित कई लोगों ने संबोधित किया। इस अवसर पर भीम आर्मी के द्वारा अम्बेडकर की प्रतिमा के साथ वक्ताओं का स्वागत किया।
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