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53वें मिथिला विभूति पर्व समारोह का भव्य आयोजन 

53वें मिथिला विभूति पर्व समारोह का भव्य आयोजन

53वें मिथिला विभूति पर्व समारोह का उद्घाटन करते हुए कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो लक्ष्मीनिवास पांडेय ने कहा कि विद्यापति महान साहित्यकार थे। उनकी साहित्य को जिंदा रखने का कार्य विद्यापति सेवा संस्थान कर रही है। साथ ही संस्थान मिथिला-मैथिली को भी जिंदा रखने का कार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि भारतीय इतिहास में विद्यापति ऐसे सर्वमान्य व्यक्ति हैं जिनका सम्मान सिर्फ मिथिलावासी ही नहीं, संपूर्ण देश और विश्व‌ के लोग करते हैं। अपने संबोधन में उन्होंने किसी भी क्षेत्र के समुचित विकास के लिए विरासत के संरक्षण को जरूरी बताया।

बिहार सरकार भूमि विकास एवं राजस्व मंत्री संजय सरावगी ने कहा कि मिथिला के विकास में सभी मिथिलावासियों का अहम योगदान रहा है, लेकिन बैद्यनाथ चौधरी बैजू के योगदान की तुलना किसी से नहीं की जा सकती है। देश भर में मिथिला की सांस्कृतिक ललक जगाने में उनका अहम योगदान रहा है। उन्होंने कहा कि विद्यापति की कृति को कोई भी दुनिया भर में भूल नहीं सकता है। उन्होंने कहा कि पुनौरा धाम में जानकी मंदिर के शिलान्यास के साथ मिथिला की धिया सिया की अस्मिता के संरक्षण का श्रीगणेश हो चुका है।

 

प्रो दिलीप कुमार चौधरीने कहा कि आज पूरी दुनिया में विद्यापति के नाम पर कार्यक्रम हो रहे हैं और सभी मिथिलावासी एक जगह एकत्रित होते हैं। विद्यापति यह जीवंत प्रमाण है कि विद्यापति आज भी मिथिलावासियों को एकसूत्र में बांधने का कार्य कर रहे हैं। उद्घाटन सत्र का संचालन करते हुए मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पं कमला कांत झा ने कहा कि आम लोगों के सहयोग के कारण ही मिथिला विभूति पर्व समारोह लगातार 53 वर्षों से आयोजित हो रही है। इसके लिए सभी मिथिलावासी बधाई के पात्र हैं।

अध्यक्षता करते हुए

कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति सह संस्थान के अध्यक्ष प्रो शशिनाथ झा ने कहा कि मिथिला विद्यापति के कारण भारत की सांस्कृतिक विरासत और मानवीय मूल्यों के संवाहक के रूप में कार्य करती रही है। भारत के उत्ष्कृटता में भी मिथिला का अहम योगदान है। मैथिलीवासी अभी भी अपनी भाषा को जिंदा रखे हुए हैं। मिथिला भाषा उड़िया और बंगला को भी अपना योगदान है।

इससे पहले अतिथियों का स्वागत करते हुए विद्यापति सेवा संस्थान के महासचिव डॉ बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने मिथिला और मैथिली की यथा स्थिति की विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा यह अत्यंत खेद का विषय है कि मैथिली को भले ही संवैधानिक भाषा का दर्जा मिल गया है लेकिन वह राजनीतिक उपेक्षा का शिकार होकर अभी भी अपने अधिकार से वंचित है। कार्यक्रम में डॉ महेंद्र नारायण राम एवं प्रवीण कुमार झा के संपादन में प्रकाशित संस्थान की मुख्य पत्रिका अर्पण का लोकार्पण किया गया।

सोमवार को कुल 13 लोगों को मिथिला विभूति सम्मानोपाधि प्रदानकिया गया। जानकी उत्कर्ष के उन्नयन एवं धर्म क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए जानकी जन्मभूमि मंदिर, पुनौरा धाम के पीठाधीश्वर महंत कौशल किशोर दास, जानकी मंदिर जनकपुर के उत्तराधिकारी महंत राम रोशन दास श्री वैष्णव तथा प्रसिद्ध कथावाचक आचार्य धर्मेंद्र नाथ मिश्र के साथ प्रसिद्ध मखान वैज्ञानिक डॉ राजेश कुमार विश्वकर्मा, संस्कृत साहित्य के उद्भट विद्वान प्रो वशिष्ठ नारायण झा एवं डा गोविन्द झा, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ ब्रजेश पति त्रिपाठी, मुंगेर विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ घनश्याम राय, रीजनल सेकेंडरी स्कूल, मधुबनी के निदेशक डॉ राम श्रृंगार पांडे को शिक्षा क्षेत्र में इस साल का यह सम्मान प्रदान किया गया। मिथिला चित्रकला के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्मश्री शांति देवी, मैथिली साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के पीजी मैथिली विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो रमण झा तथा मैथिली प्रकाशन के क्षेत्र में उत्कृष्ट अवदान के लिए मुरलीधर प्रेस को मिथिला विभूति संस्थागत सम्मान प्रदान किया गया। सम्मान के रूप में मिथिला की गौरवशाली पारंपरा के अनुरूप मिथिला चित्रकला से सुसज्जित पाग, माला एवं चादर के साथ ताम्रपत्र एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया। कार्यक्रम में हजारों की संख्या में दर्शक मौजूद थे।

कवि कोकिल महाकवि बाबा विद्यापति एवं आचार्य सुरेंद्र झा सुमन की प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने के साथ शुरू हुए इस सालाना आयोजन में कवि सम्मेलन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम देर रात तक चलती रही। जिसमें नामचीन कवियों की प्रस्तुतियों के साथ मैथिली मंच के स्थापित कलाकारों की मनोहारी प्रस्तुतियां दर्शकों के विशेष आकर्षण के केंद्र में रहे।

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