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मिथिला विश्वविद्यालय के एनएसएस कोषांग तथा वीगन आउटरीच के द्वारा ‘फूड-प्लानेट-हेल्थ’ पर वेबीनार आयोजित…  • वेबीनार में बेगूसराय, समस्तीपुर, दरभंगा एवं मधुबनी के 350 से अधिक शिक्षकों, स्वयंसेवकों एवं छात्र-छात्राओं की हुई सहभागिता… 

मिथिला विश्वविद्यालय के एनएसएस कोषांग तथा वीगन आउटरीच के द्वारा ‘फूड-प्लानेट-हेल्थ’ पर वेबीनार आयोजित…

 

• वेबीनार में बेगूसराय, समस्तीपुर, दरभंगा एवं मधुबनी के 350 से अधिक शिक्षकों, स्वयंसेवकों एवं छात्र-छात्राओं की हुई सहभागिता…

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा के एनएसएस कोषांग तथा वीगन आउटरीच के संयुक्त तत्वावधान में “फूड-प्लानेट-हेल्थ” विषय पर वेबीनार का आयोजन किया गया, जिसमें बेगूसराय, समस्तीपुर, दरभंगा एवं मधुबनी के 350 से अधिक कार्यक्रम पदाधिकारियों, शिक्षकों, स्वयंसेवकों एवं छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। वेबीनार में डॉ प्रेम कुमारी, डॉ उदय कुमार तथा अमित कुमार झा आदि ने सक्रिय सहयोग किया। कार्यक्रम समन्वयक डॉ आर एन चौरसिया की अध्यक्षता में आयोजित वेबीनार में मुख्य वक्ता के रूप में लखनऊ से वीगन आउटरीच के अभिषेक दुबे, मधुबनी से एनएसएस के जिला नोडल पदाधिकारी डॉ विभा कुमारी, दरभंगा के जिला नोडल पदाधिकारी डॉ सुनीता कुमारी, समस्तीपुर के जिला नोडल पदाधिकारी डॉ लक्ष्मण यादव तथा बेगूसराय के जिला नोडल पदाधिकारी डॉ सहर अफरोज आदि ने विचार व्यक्त किया, जबकि प्रश्नोत्तर सत्र में प्रतिभागियों ने अनेक तरह के प्रश्न पूछे, जिनका समुचित उत्तर मुख्य वक्ता ने दिया।

लखनऊ के अभिषेक दुबे ने वीगन आउटरीच संस्था का परिचय देते हुए कहा कि यह एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जो भोजन के पर्यावरण, प्राणियों और मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव और पौध आधारित भोजन से इनके संरक्षण से संबंधित कार्यक्रमों का आयोजन करती है। विगत 7-8 वर्षों से यह भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में वेबीनार के माध्यम से छात्र-छात्राओं को जागृत कर रही है। कहा कि हमारे खान-पान का प्रभाव जीव-जन्तु, पर्यावरण सहित पूरे धरती पर पड़ता है। 8 अरब से अधिक मानव अपनी जरूरत के लिए जीव-जन्तुओं एवं पेड़- पौधों का शोषण कर रहा है। अपनी जरूरत के लिए मानव प्रतिवर्ष 70 अरब जीव-जंतुओं को कृत्रिम रूप से उत्पन्न कर रहा है, जिनके लिए अधिक भोजन, पानी, जमीन आदि की जरूरत होती है, जिस कारण पशुओं के प्राकृतिक अधिकार छीने जा रहे हैं। अभी धरती का 83% कृषि भूमि पशुपालन में लगी हुई है। बढ़ते दबावों के कारण वन, बगीचे, जल स्रोत आदि प्राकृतिक क्षेत्र नष्ट किये जा रहे हैं, जिनसे कई दुर्लभ जीव-जन्तु विलुप्त हो रहे हैं। पशु-पक्षियों के दूध, मांस एवं अंडे बढ़ाने के लिए इंजेक्शन, एंटीबायोटिक दवाएं, ग्रोथ हार्मोस जैसे अप्राकृतिक तरीकों को अपनाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि पशु, पक्षियों एवं मछलियों के शरीर में प्लास्टिक एवं अन्य हानिकारक तत्त्व मिल रहे हैं, जिनके सेवन से मानव भी रोगग्रस्त हो रहा है। हम पेड़-पौधों के उत्पाद से ही अपनी जरूरत के सभी तत्त्व, प्रोटीन्स, मिनरल्स आदि प्राप्त कर सकते हैं। अभिषेक ने कहा कि हम पौध आधारित जीवन शैली को अपनाकर अधिक स्वस्थ एवं सुखी रह सकते हैं। फल-फूल, हरी सब्जियां, दालें, साग-पात आदि को भोजन में अपनाते हुए अपने जीवन में धीरे-धीरे बदलाव करें, जिनसे आधुनिक बीमारियां नियंत्रित रहेंगी। हमारा प्राचीन भोजन पद्धति ऋषि-मुनियों की तरह पेड़-पौधों पर ही आधारित रहा है।

अध्यक्षीय संबोधन में डॉ आर एन चौरसिया ने कहा कि दूध, मांस, अंडा आदि भोजन की बढ़ती मांगों ने पशुपालन को पूर्णतः व्यावसायिक एवं स्वार्थपूर्ण बना दिया है, जिससे पशुओं को सीमित स्थान पर रखने, रासायनिक भोजन खिलाने तथा हारमोंस एवं दवाएं का प्रयोग बढ़ता जा रहा है जो उनके साथ-साथ मानवों के स्वास्थ्य के लिए भी काफी हानिकारक है। खेती में प्रयुक्त रासायनिक खाद एवं उर्वरक मिट्टी एवं पानी को दूषित करते हैं। उन्होंने बताया कि जैविक खेती से पौधों एवं मिट्टी का स्वास्थ्य सुधर सकता है। स्थानीय एवं मौसम के अनुसार खेती से प्राकृतिक विविधता बढ़ती है। पौध आधारित आहार अपनाने से जीव-जंतुओं पर दबाव कम होगा। जैविक खेती, स्थानीय उत्पादन, रासायनिक खाद एवं उर्वरक मुक्त कृषि और पर्यावरण हितैषी भोजन की ओर बढ़ना समय की मांग है। डॉ लक्ष्मण यादव के संचालन में आयोजित वेबीनार में अतिथियों का स्वागत डॉ विभा कुमारी ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन करते हुए डॉ सुनीता कुमारी ने कहा कि पशुओं से निकलने वाली मीथेन गैस जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देती है जो पेड़-पौधों एवं जीव-जंतुओं के लिए अत्यधिक हानिकारक है। वहीं भोजन के पैकेजिंग में प्लास्टिक का उपयोग प्रदूषण एवं वन्य-जीवों के लिए खतरा बनता जा रहा है। प्रश्नोत्तर सत्र के बाद वेबीनार संपन्न हुआ।

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