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‘मिथिला लोक मंथन’ का तीन दिवसीय आयोजन 8, 9 एवं 10 मई 2020 को होगा।

दरभंगा : भारतीय मनीषा समय-समय पर सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना जगाने का कार्य करती आ रही है। इसी व्यापक तथ्य को ध्यान में रखते हुए मिथिला की संस्कृति का राष्ट्र निर्माण में भूमिका के पुनः स्मरण के उद्देश्य से ‘मिथिला लोक मंथन’ का तीन दिवसीय आयोजन 8, 9 एवं 10 मई 2020 को होगा।

रिपोर्ट गुड्डू कुमार ठाकुर

इसके माध्यम से मिथिला की साहित्य सांस्कृतिक सामाजिक अब दानों को रेखांकित किया जाएगा यह बात ‘प्रज्ञा प्रवाह’ के सात जिलों के संयोजक रामाशीष जी ने कहीं। वे गुरुवार को कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर स्थित ‘मिथिला लोकमंथन कार्यालय’ में मीडिया से मुखातिब थे । उन्होंने जानकारी दी कि इसका उद्घाटन महामहिम उपराष्ट्रपति अथवा शंकराचार्य से कराने का प्रयास चल रहा है। कहा कि मिथिला की ज्ञान परंपरा जगत विख्यात रही है। यहां का अपना संगीत परिचय रहा है। वहीं कला के माध्यम से भी मिथिला अपनी उपस्थिति विश्व एवं राष्ट्रीय मंच पर दर्ज करती रही है। भारत के छह दर्शनों में चार की उत्पत्ति भूमि मिथिला ही रही है। यहां की शास्त्रार्थ परंपरा का दुनिया भर में नाम रहा है। ‘मिथिला लोकमंथन’ का आयोजन मिथिला की इन प्राचीन गौरवशाली परंपराओं को फिर से उपस्थित कर वर्तमान को सुव्यवस्थित करने का प्रयास होगा। उन्होंने कहा कि इस मौके पर एक ग्रंथ का भी प्रकाशन किया जाएगा जिसमें मिथिला के उन विद्वान मनीषियों की का परिचय होगा जिन्होंने इस भूमि का गौरव राष्ट्रीय क्षितिज पर बढ़ाया है और संसार भर में जिन्हें आज भी आदर के साथ स्मरण किया जाता है। इनमें विभिन्न भाषाओं के साहित्य महारथियों को भी शामिल किया जाएगा जिन्होंने अपने अवदान से मिथिला को गौरवान्वित किया। उन्होंने जानकारी दी की ‘प्रज्ञा प्रवाह’ की उत्तर बिहार प्रांत इकाई चेतना के साथ ही ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय एवं कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में यह आयोजन होगा। इसमें मिथिला की विविध प्राचीन परंपराओं गायन, वादन, ललित कला, लोक पर्व, शास्त्रार्थ परंपरा, शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच हुए शास्त्रार्थ आदि को समाज के सामने लाने का प्रयास होगा। प्रदर्शनी के माध्यम से भारती, गार्गी, उदयनाचार्य आदि विदुषी-विद्वानों के अलावा विद्यापति, नागार्जुन, आचार्य सुरेंद्र झा सुमन, लक्ष्मीनाथ गोसाई, राजा सलहेश, मोदलता आदि के अवदान को दिखाया जाएगा। मिथिला के प्राचीन गायन पराती सरीखी विलुप्त हो रही परंपरा को भी मूल रूप में रखने की योजना है। कार्यक्रम में कई सत्र होंगे जिसमें मिथिला की दृष्टि में भारत,भारत की दृष्टि में मिथिला,मिथिला की शास्त्रार्थ परंपरा, मिथिला की लोक संस्कृति एवं जीवन दर्शन, अवध-मिथिला का पारस्परिक संबंध वैश्विक परिप्रेक्ष्य में, भारत- नेपाल संबंध,भारतीय चिंतन की वैश्विक मान्यता,भारतीय ज्ञान परंपरा : मिथिला प्रतिदर्श पर विमर्श होगा इस मौके पर चेतना के उत्तर बिहार प्रांत संयोजक विजय शाही, मिथिला लोकमंथन के संयोजक डॉक्टर कन्हैया चौधरी, संस्कृत विश्वविद्यालय के डॉक्टर श्रीपति त्रिपाठी, डाक्टर अमलेंदू शेखर पाठक आदि मौजूद थे।
इधर आयोजन को लेकर क्षेत्रीय संयोजक के नेतृत्व में बैठक हुई। इसमें ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के डॉ रतन कुमार चौधरी, डॉ अजीत कुमार चौधरी, विद्यार्थी परिषद के विश्वविद्यालय प्रमुख डॉक्टर विमलेश कुमार, आशुतोष कुमार मनु ने शिरकत की उधर संस्कृत विश्वविद्यालय में कुलपति डॉ सर्व नारायण झा वैदिक मंगलाचरण के बीच क्षेत्रीय संयोजक का मिथिला की परंपरा के अनुरूप पाग चादर से अभिनंदन किया।

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