वेतन में 25 प्रतिशत कटौती का आदेश अविलंब वापस ले सरकार: डॉ बैजू
कोरोना

संकट में आर्थिक तंगहाली का शिकार हो रहे विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय के शिक्षकेतर कर्मचारियों को 25 प्रतिशत कटौती कर मार्च, अप्रैल एवं मई माह का वेतन भुगतान करने के सरकार के तुगलकी फरमान को विद्यापति सेवा संस्थान के महासचिव एवं ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के सिंडिकेट सदस्य डॉ बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। शुक्रवार को जारी अपने बयान में उन्होंने सभी शिक्षकेतर कर्मियों को सप्तम वेतनमान में पूर्ण वेतन के साथ भुगतान करने की बिहार सरकार, कुलाधिपति एवं कुलपति से मांग की है।
उन्होंने कहा है कि शिक्षकेतर कर्मियों का वेतन सत्यापन अब तक नहीं हो पाया है, जिसके लिए बिहार सरकार एवं उसका वेतन सत्यापन कोषांग दोषी है। जबकि इस में हो रही देरी का ठीकरा शिक्षकेतर कर्मियों के माथे फोड़ा जा रहा है, जो नैसर्गिक न्याय के बिल्कुल विपरीत है। उन्होंने सरकार के फरमान को हास्यास्पद बताते हुए कहा है कि सप्तम वेतनमान में किसी भी कर्मचारी का 25 फीसदी वेतन नहीं बढ़ रहा जबकि सप्तम वेतनमान में यदि 25 प्रतिशत की कटौती की जाती है, तो यह छठे वेतनमान में मिल रहे वेतन से भी कम होगा। ऐसे में भगवान ही ऐसे सिस्टम और प्रभावित होने वाले कर्मियों के मालिक हैं।
उन्होंने सरकारी फरमान पर हैरत जताते कहा है कि विश्वविद्यालय एवं विभिन्न महाविद्यालयों द्वारा वेतन सत्यापन प्रपत्र कई वर्षों पूर्व कोषांग को उपलब्ध करा दिया गया और इस बाबत समय-समय पर कुलाधिपति को भी इसकी सूचना प्रेषित की गई। बावजूद इसके लगभग 90 फ़ीसदी वेतन सत्यापन के मामले अद्यतन लंबित है और अब अपनी गलती छिपाने के लिए इसका दंड अल्प वेतनभोगी कर्मचारियों को दिए जाने की कुत्सित चाल चली जा रही है।
डॉ बैजू ने कहा है कि राजकीय अंकेक्षक वर्ष 2006 से ही विश्वविद्यालय के कर्मियों के वेतन की जांच करते आ रहे हैं एवं उसके अनुरूप ही कर्मियों को वेतन भुगतान किया जा रहा है। बावजूद इसके जब देश में कोरोना संक्रमण अपने चरम पर है एवं राज्य सरकार द्वारा महासंकट की स्थिति में अनेक तरह की सहायता प्रदान की जा रही है, अल्प वेतनभोगी तृतीय एवं चतुर्थ वर्गीय कर्मियों पर 25 प्रतिशत वेतन कटौती का निर्देश जारी किया जाना पूर्णतः अमानवीय है। इसी तरह, उन्होंने प्रयोग प्रदर्शकों के मूल वेतन में ₹14500 की कटौती किए जाने को भी की भी घोर निंदा करते हुए उन्होंने इस आदेश को अविलंब वापस लेने की बिहार सरकार, कुलाधिपति एवं कुलपति से मांग की है।
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