सी एम कॉलेज के संस्कृत विभाग द्वारा आयोजित संस्कृत सप्ताह का समापन
संस्कृत-विद्या भारतवर्ष को सर्वश्रेष्ठ तथा विश्वगुरु बनाने में सक्षम- प्रो देवनारायण
संस्कृत के माध्यम से ही वास्तविक रूप से भारतवर्ष को जानना संभव- डॉ मुश्ताक
*संस्कृत की महत्ता वेदकाल से आधुनिक काल तक बढ़ती रही है- प्रो नागेंद्र
*संस्कृत अपनी प्राचीनता एवं व्यापकता के कारण देश-विदेश में प्रतिष्ठित- प्रो जीवानंद*
*”आधुनिक परिप्रेक्ष्य में संस्कृत” विषयक वेबीनार में सहभागी बने 65 से अधिक शिक्षक,शोधार्थी एवं विद्यार्थी*
*संस्कृत प्राचीन,समृद्धि, ज्ञान-विज्ञान की जीवंत भाषा- डॉ सच्चिदानंद*
*बृहद् क्षेत्र वाले संस्कृत के अध्ययन से बढ़ती है कार्यकुशलता- प्रो रामनाथ*
संस्कृत मातृभाषा ही नहीं, बल्कि वह अमर विद्या है जो धार्मिक-आध्यात्मिक भाव से युक्त सर्वकल्याणकारी है। जरूरत है कि हम समाज से जोड़कर इसका लाभ हर व्यक्ति तक पहुंचाएं।आज नासा के वैज्ञानिक वेद-मंत्रों का अध्ययन कर रहे हैं। उक्त बातें सी एम कॉलेज,दरभंगा के संस्कृत विभाग द्वारा मनाए जा रहे ‘संस्कृत सप्ताह’ के समापन समारोह में “आधुनिक संदर्भ में संस्कृत” विषयक वेबीनार में मुख्य वक्ता के रूप में संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो देवनारायण झा ने कहा। उन्होंने कहा कि संस्कृत का अध्ययन- अध्यापन प्रथम कक्षा से ही उच्च कक्षा तक होना चाहिए। श्रेष्ठ संस्कृत-विद्या ही भारत को सर्वश्रेष्ठ एवं विश्वगुरु बनाने में सक्षम है।
समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रधानाचार्य डॉ मुश्ताक अहमद ने कहा कि संस्कृत के माध्यम से ही भारत को वास्तविक रूप से जानना संभव है।तमाम ज्ञान-विज्ञान का स्रोत संस्कृत किसी धर्म- जाति की भाषा नहीं है। प्राचीन भारत की तरह ही आधुनिक भारत भी संस्कृत की बदौलत विकसित होगा। सामाजिक सरोकार की भाषा संस्कृत को पढ़े बिना शुद्ध रूप से हम दूसरी भाषाएं आसानी से नहीं समझ सकते हैं।बीएचयू ,वाराणसी की प्राध्यापिका डा प्रीति त्रिपाठी ने कहा कि हमारे जीवन का कोई भी क्षेत्र संस्कृत के बिना अधूरा है। इसके अध्ययन से समाज में खुशहाली तथा राष्ट्र की समृद्धि संभव है। वेबीनार में असम से मृणाल कांति सरकार,समस्तीपुर से डा ममता सिंह व प्रेमलता आर्या, मुजफ्फरपुर से डा दीनानाथ साह व डा बालकृष्ण शर्मा, पटना से डा गौरीनाथ राय, बेगूसराय से ज्योति कुमारी, मंटू यादव व गुरु आनंद, दिल्ली से प्रो नागेंद्र झा, मुंगेर से डा नंदकिशोर ठाकुर, मधुबनी से भोला दास, डा शंभू मंडल, बेगूसराय से डा मोना शर्मा,उत्तराखंड से डा सच्चिदानंद स्नेही,राजस्थान से डा ममता स्नेही,बनारस से डा प्रीति त्रिपाठी,समस्तीपुर से प्रो रागिनी रंजन,डा अंजना कुमारी,चंदीर पासवान, सीतामढ़ी से डा ज्ञानरंजन गंगेश,अरबाज खान,मधुबनी से विनोद राम, डा जयशंकर झा,वैशाली से प्रो रामनाथ सिंह सहित 65 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।
विशिष्ट वक्ता के रूप में श्री लाल बहादुर शास्त्री केंद्रीय विद्यापीठ,दिल्ली के शिक्षाशास्त्र के प्राध्यापक प्रो नागेंद्र झा ने कहा कि संस्कृत में शुद्ध उच्चारण की काफी महत्ता है जो योग्य गुरु के माध्यम से ही संभव है। वेदकाल से आज तक संस्कृत की उपयोगिता दृष्टिगोचर होती है।नई शिक्षा नीति से संस्कृत का विकास बहुत अधिक होगा,परंतु इसके लिए हम शिक्षकों को भी आगे आना होगा। विषय प्रवर्तक के रूप में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, देवप्रयाग,उतराखंड के न्याय विभाग के प्राध्यापक डा सच्चिदानंद स्नेही ने कहा कि संस्कृत समृद्ध एवं जीवन्त भाषा है,जिसमें मानव के उत्थान की सारी बातें वर्णित हैं। यह हमारे ज्ञान-विज्ञान का आधार है। संस्कृत को मातृभाषा बनाकर कंप्यूटर व कौशल से युक्त करना समायोजित है।
वेबीनार का उद्घाटन करते हुए विश्वविद्यालय संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो जीवानंद झा ने कहा कि संस्कृत अपनी व्यापकता एवं श्रेष्ठता के कारण देश-विदेश में प्रतिष्ठित हो रहा है। इसमें आधुनिक जीवनोपयोगी सभी बातें विद्यमान हैं। संस्कृत को समयानुसार अन्य भाषाओं एवं आवश्यकतानुसार समाज से जोड़कर आमजन कल्याणार्थ बनाना आवश्यक है। सम्मानित अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो रामनाथ सिंह ने कहा कि संस्कृत की वर्तमान महत्ता अधिक बढ़ गई है। हमें पश्चिमी संस्कृति को छोड़कर भोग की जगह योग को अपनाना होगा। संस्कृत का क्षेत्र अत्यंत ही विस्तृत है,जिसके अध्येता को रोजी-रोटी की कोई समस्या नहीं होती है। इसके अध्ययन-अध्यापन द्वारा हम किसी भी क्षेत्र में बेहतर कार्य कर सकते हैं।
कार्यक्रम का प्रारम्भ सुंदरपुर मध्य विद्यालय,दरभंगा के शिक्षक डा नंदकिशोर ठाकुर के संस्कृत में गाये स्वागत गान से हुआ। संस्कृत विभाग के प्राध्यापक सह संयोजक डा संजीत कुमार झा के कुशल संचालन में आयोजित कार्यक्रम में अतिथि स्वागत संस्कृत विभागाध्यक्ष डा आर एन चौरसिया ने किया,जबकि धन्यवाद ज्ञापन मारवाड़ी महाविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा विकास कुमार ने किया।