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DARBHANGA मिथिला चेतना प्रज्ञा प्रवाह द्वारा व्याख्यानमाला के तहत राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका विषय पर आभासी माध्यम से संगोष्ठी रखा गया। अजित कुमार सिंह की रिपोर्ट

मिथिला चेतना प्रज्ञा प्रवाह द्वारा व्याख्यानमाला के तहत राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका विषय पर आभासी माध्यम से संगोष्ठी रखा गया था, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक माननीय रामदत्त चक्रधर जी का उद्बोधन हुआ ।
इस व्याख्यानमाला को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि रामदत्त चक्रधर ने कहा कि भारतवर्ष में सर्वाधिक युवा उर्जा मौजूद है, जिसमे जोश भी हैं लेकिन उनके अंदर विवेक, होश एवं संस्कार लाने का दायित्व सिर्फ और सिर्फ शिक्षकों पर ही है, जिनको अपने ध्येय की ओर जागना होगा क्योंकि आज की वर्तमान शिक्षा केवल वैभव, सामर्थ्य तो दे सकती है पर शांति, संस्कार, नैतिकता नहीं दे पाती है। आज समाज में कहने को तो लोग है परंतु लोग कैसे हैं यह सोचने का विषय है, दूसरे शब्दों में कहें तो बौने लोगों की आवश्यकता नहीं है सही अर्थों में अच्छे लोग चाहिए यानी जो अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर कार्य करने वाले मानसिकता वाले होने चाहिए अपने यहां की शिक्षा और संस्कार कितनी उत्कृष्ट थी इसका एक उदाहरण आशुतोष मुखर्जी नाम के अपने यहां के एक आम छात्र को जब लॉर्ड कर्जन ने विदेश में जाने के लिए कहा था तो आशुतोष मुखर्जी ने कहा कि मैं पहलेअपनी मां से बिना पूछे नहीं जाऊंगा, जिस पर लॉर्ड कर्जन ने कहा कि मैं वायसराय बोल रहा हूं मेरे आदेश से तुम्हारे मां का आदेश ज्यादा महत्वपूर्ण है। तो इस पर आशुतोष मुखर्जी ने कहा कि हां आप के आदेश से बढ़कर मेरी मां का आदेश है ,वही एक अन्य उदाहरण अपने जय प्रकाश बाबू के संदर्भ में है जो कि एक बार पीएचडी सिर्फ इसलिए छोड़ दिए थे कि उनको पता चला कि उनकी मां बीमार है जब इस संबंध में एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं आप पीएचडी की परीक्षा क्यो छोड़ रहे हैं इस पर उन्होंने कहा कि पीएचडी मैं बाद में भी कर सकता हूं लेकिन मेरी मां बाद में नहीं आ सकेगी। एक और अन्य उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि ऋषि अरविंद जो कि ₹600 की नौकरी बड़ौदा में करते थे जिन को छोड़कर मात्र ₹60 की मेहनताना पर शिक्षक बनना उन्होंने स्वीकार किया।
वही कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे संस्कृत के महान विद्वान श्रीपति त्रिपाठी जी ने कुछ संस्कृत के श्लोकों का उद्धरण देते हुए विद्या के 4 गुणों जैसे पहला अध्ययन दूसरा विद्या का ज्ञान प्राप्त करना तीसरा अपने आचरण में उसको समाहित करना उतारना फिर इनको समाहित कर गुरु की वास्तविक योग्यता प्राप्त करना। चौथा तब जाकर उसका प्रचार प्रसार करना चाहिए, क्योंकि उनका कोई भी प्रभाव नहीं रहता जो स्वंय विभूषित ना होते हुए स्वयं के आचरण में डाले बिना दूसरे को अभिवचन करते हैं ।

इस कार्यक्रम का संचालन सुमित सिंह ने किया।
तकनीकी देखरेख डॉ शंकर कुमार लाल ने किये।
मौके पर कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कार्यक्रम संयोजक डॉ कन्हैया चौधरी ने कहा कि आज इस कार्यक्रम में उपस्थित महान विद्वान दधीचि परंपरा के वाहक अपना सर्वस्व समर्पित कर राष्ट्र को परम वैभव पर लाने हेतु राष्ट्र यज्ञ में अपनी संपूर्ण जीवनाहुति देने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्रीय प्रचारक श्री रामदत्त चक्रधर जी और संस्कृत के महान विद्वान श्रीपति त्रिपाठी जी एवं चेतना प्रज्ञा प्रवाह के संयोजक विजय शाही जी सहित उपस्थित साक्षात मां जानकी के पुत्र पुत्री रूपी सभी आत्माजनों, जो भी इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए , सहयोग किए, एवं सफल संचालन किए हैं का हार्दिक अभिनंदन करते हैं ।
कार्यक्रम में स्वागत गान उज्जवला कुमारी, रमा कुमारी,मेघा कुमारी, अर्चना कुमारी ने गाया।
इस मौके पर विशेष रूप से स्थानीय कार्यालय पर डॉ विमलेश कुमार ,आशुतोष कुमार मनु, पिंटू भंडारी, प्रोफेसर उमेश झा ,विवेक जयसवाल, सुमन सिंघानिया, पूजा कश्यप ,प्रीति झा, अमन कुमार ,हेमंत मिश्रा, गोपाल जी, प्रोफेसर चक्रपाणि जी, पवन जी, अभिलाषा कुमारी ,मन्नू जी सहित सैकड़ों लोग उपस्थित थे।

 

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