नवजात शिशु को स्तनपान कराने के दौरान सतर्कता है जरुरी इन बातों का रखे ध्यान
प्रिमेच्योर बेबी के स्तनपान में अधिक देखरेख की ज़रूरत

दरभंगा हर महिला के लिए मां बनना मुश्किल, लेकिन एक सबसे खूबसूरत अनुभव होता है। खासतौर पर तब जब वह पहली बार मां बनने वाली होती हैं। हालांकि, इस दौरान महिलाओं को कई भ्रांतियों से भी जूझना पड़ता है। गर्भावस्था से जुड़ी बातों का पता तो फिर भी प्रेग्नेंट गर्भवती महिलाओं को होती है लेकिन उन्हें पोस्ट प्रेग्नेंसी व ब्रेस्ट फीडिंग से जुड़ी हर बात की जानकारी नहीं होती है। ऐसे में स्तनपान के दौरान छोटी सी दिक्कत भी नई माताओं को परेशान कर देती है। शिशु अगर समय से पहले हो जाए तो स्तनपान कराने वाली महिलाओं को और भी सतर्क रहने की जरूरत होती है. किन बातों का ध्यान रखना चाहिए
डीएमसीएच के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ ओम प्रकाश ने बताया प्रीमैच्योर बच्चों को लेकर सावधानी अधिक रखने की जरूरत होती है। आम बच्चों की तुलना में इन शिशुओं को ज्यादा देखभाल की आवश्यकता होती है। ब्रेस्ट मिल्क बच्चों को शुरुआती पोषण प्रदान करता है और उन्हें बीमारियों और इंफेक्शन संक्रमण के खतरे से दूर रखता है। उन्होंने कहा शिशु के प्री-मैच्योर होने पर मां को डॉक्टर से सलाह जरूर लेनी ले लेना चाहिए। साथ ही स्तनपान को लेकर किसी तरह के संदेह होने पर चिकित्सकों से जरुर चर्चा करनी चाहिए. सभी जरूरी जानकारी प्राप्त करें।
प्री-मैच्योर बच्चों को कैसे फीड करें कराएं स्तनपान : डॉ प्रकाश ने कहा स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी भी शिशु को स्तनपान फीड करने कराने की प्रक्रिया जेस्टेशन गर्भावस्था काल पर निर्भर करता है। इसके अनुसार ही फीडिंग प्रोसीजर प्रभावित होती है। लेकिन जिन बच्चों का जन्म समय से पहले हुआ है, उनकी माओं माताओं को कुछ बातों का ख्याल रखना चाहिए। उन्होंने कहा इन महिलाओं को बच्चों को फीड स्तनपान करने कराने से पहले ही ब्रेस्ट मिल्क पंप कर लेना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भी महिलाओं को जन्म के 1 घंटे के अंदर बच्चों को स्तनपान कराना चाहिए। इस पंप किये हुए दूध को मां बच्चे को फीडिंग ट्यूब के जरिये कम से कम 8 बार पिलाना चाहिए।इसके लिए किसी लैक्टेशन कंसल्टेंट से संपर्क करें, दूध निकालने के लिए सही जानकारी का होना आवश्यक है, ब्रेस्ट पंप का इस्तेमाल ठीक से करें। प्री-मैच्योर शिशु का वजन कम हो सकता है। साथ ही, उन्हें चूसने या निगलने में दिक्कत हो सकती है। इसलिए ही ब्रेस्ट पंप का इस्तेमाल करना चाहिए।
कब ब्रेस्ट से कराएं फीडकरायें स्तनपान : प्रीमैच्योर बच्चों के मामलों में ज़ब शिशु के 34 सप्ताह शुरू हो जाएं तब उन्हें डाइरेक्टली फीड कराएं। जब तक बच्चों में इसकी आदत न बन जाए तब तक ठीक से सिखाएं। साथ ही, शुरुआत में मां को शिशु से स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट स्थापित करना चाहिए।
माँ के दूध बढ़ाने के प्राकृतिक उपाय
निज़ी आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ विनय ने बताया मां का पहला दूध बच्चे के लिए अमृत समान होता है, जो उसे पोषण प्रदान करता है। वहीं मां के लिए भी स्तनपान कराना दुनिया का सबसे बड़ा सुख होता है। लेकिन कई बार कुछ विशेष करणों के स्तन में दूध की कमी हो जाती है, जिससे बच्चे को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता। यह स्थिति मां और नवजात दोनों के लिए समस्या पैदा करती है। कुछ ऐसे उपाय, जो इस समस्या से बचाने में मदद करेंगे। साथ ही प्राकृतिक रूप से दूध बढ़ाने के कुछ विशेष उपाय –
पौष्टिक भोजन – पौष्टिक भोजन करने से मां के स्तन में दूध की मात्रा बढ़ने लगती है। शरीर में दूध उत्पादन के लिए अच्छे और पौष्टिक खानपान की बहुत आवश्यकता होती है। जौ, दलिया और दूध को खाने से भी काफी लाभ मिलता है।
सूखे मेवे – मां बनने के बाद जितना हो सके सूखे मेवों का सेवन करना चाहिए। काजू, बादाम, पिस्ता जैसे मेवे स्तनों में दूध की मात्रा को बढ़ाते हैं। साथ ही ये विटामिन, मिनरल और प्रोटीन से भी भरपूर होते हैं।
तुलसी और करेला – तुलसी को सूप या शहद के साथ खाया जा सकता है, या फिर आप इसे चाय में डाल कर भी ले सकती हैं। करेला महिलाओं में लैक्टेशन सही करता है। करेला बनाते वक्त हल्के मसालों का ही प्रयोग करें ताकि यह आसानी से हजम हो सके।
सौंफ – आयुर्वेद के अनुसार सौंफ का सेवन स्तनों में दूध की कमी को दूर करने में मदद करता है। इसलिए आप स्तनों में दूध की मात्रा को ठीक करने के लिए सौंफ का सेवन कर सकती हैं।
लहसुन – लहसुन खाने से भी दूध बनाने की क्षमता बढ़ती है। लहसुन को कच्चा खाने की बजाए उसे पकाकर खाना अधिक लाभप्रद होगा। अगर आप लहसुन को नियमित खाती हैं तो आपको लाभ अवश्य होगा।
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