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अखिल भारतीय संस्कृत शिक्षक परिवार तथा संस्कृत विभाग, सी एम कॉलेज, दरभंगा द्वारा अन्तरराष्ट्रीय वेबीनार आयोजित

अखिल भारतीय संस्कृत शिक्षक परिवार तथा संस्कृत विभाग, सी एम कॉलेज, दरभंगा द्वारा अन्तरराष्ट्रीय वेबीनार आयोजित

“संस्कृत में रोजगार एवं अवसर” विषयक कार्यक्रम में कनाडा,श्रीलंका,दिल्ली,त्रिपुरा राजस्थान आदि से 150 से अधिक प्रतिभागियों की हुई सहभागिता

संस्कृत में चरित्र-निर्माण व व्यक्तित्व-विकास के साथ ही रोजगार प्रदान करने की अपार क्षमता- प्रो रामनाथ

सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संस्कृत व पाली भाषाओं के शिक्षण की श्रीलंका में बेहतर अवसर उपलब्ध- प्रो सेनेगल

संस्कृत-अध्ययन हमारा विचार,व्यवहार व आचरण उत्तम बनाकर आदर्श मानव बनाने में सक्षम- प्रो मार्कंडेयनाथ

संस्कृत अध्ययन से शिक्षा, प्रशासन, योग,आयुर्वेद, ज्योतिष सहितअनुवाद के क्षेत्र में असीम संभावनाएं- प्रो जीवानंद

संस्कृत सिद्ध व अमृत भाषा, जिसके अध्ययन-अध्यापन से बढ़ती है हमारी सामाजिक प्रतिष्ठा- प्रो विश्वनाथ
संस्कृत हमेशा से ही पठन-पाठन और शोध की भाषा रही है,जिसमें भारतीय ज्ञान-विज्ञान सुरक्षित है। इसके बिना कोई भी भारतवर्ष को सही रूप में नहीं जान सकता है। संस्कृत में चरित्र-निर्माण तथा व्यक्तित्व-विकास के साथ ही रोजगार प्रदान करने की अपार क्षमता है। इसके अध्ययन के बिना हम किसी भी अन्य विषय का पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते हैं। उक्त बातें जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय,नई दिल्ली के संस्कृत एवं प्राच्य विद्या अध्ययन संस्थान के प्रो रामनाथ झा ने अखिल भारतीय संस्कृत शिक्षक परिवार तथा संस्कृत विभाग,सी एम कॉलेज,दरभंगा के संयुक्त तत्वावधान में “संस्कृत में रोजगार एवं अवसर” विषयक वेबीनार में मुख्य वक्ता के रूप में कहा।उन्होंने कहा कि भारत सरकार की योजना के अनुसार संस्कृत के ग्रंथों का 22 भाषाओं में तथा अन्य भाषाओं के प्रमुख ग्रंथों का संस्कृत में भी अनुवाद किया जाना है,जिसमें संस्कृत के साथ ही अन्य भाषाओं के जानकारों को रोजगार की अत्यधिक संभावना है। संस्कृत में संपूर्ण मानव के कल्याण की भावना निहित है जो हमें कुशल एवं आत्मविश्वासी बनाता है।
मुख्य अतिथि के रूप में बौद्ध एवं पाली विश्वविद्यालय, कोलंबो, श्रीलंका के भाषा संकायाध्यक्ष प्रो सेनेगल सिरिनिवास महाथेरो ने कहा कि सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संस्कृत व पाली भाषाओं के शिक्षण की श्रीलंका में बेहतर अवसर उपलब्ध है।यहां योग व आयुर्वेद आदि अत्यंत लोकप्रिय है। मगध सम्राट अशोक के काल से ही सिंहलदेश में योग्य विद्वान संरक्षण पाते रहे हैं।
सम्मानित अतिथि के रूप में श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत (केंद्रीय) विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के शांति-योग विभागाध्यक्ष प्रो मार्कण्डेनाथ तिवारी ने कहा कि संस्कृत- अध्ययन हमारा विचार, व्यवहार और आचरण उत्तम बनाकर आदर्श मानव बनाने में सक्षम है। अन्य भाषाओं की तुलना में संस्कृत का क्षेत्र अत्यंत ही विस्तृत है।
सम्मानित वक्ता के रूप में कनाडा के अल्बर्टा विश्वविद्यालय के संस्कृत अनुसंधाता दीप्रो चक्रवर्ती ने कहा कि भारत में मैकालयी शिक्षा-पद्धति के कारण संस्कृत- अध्ययन का काफी नुकसान हुआ था। यूरोप व ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में छात्रवृत्ति देकर संस्कृत की पढ़ाई कराई जाती है। साथ ही विदेशों में हमेशा छोटे-छोटे प्रोजेक्ट में काम करने की काफी सुविधा उपलब्ध रहती है।
विषय प्रवर्तक के रूप में विश्वविद्यालय संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो जीवानंद ने कहा कि संस्कृत-अध्ययन से शिक्षा, प्रशासन,योग, आयुर्वेद व ज्योतिष सहित अनुवाद के क्षेत्र में असीम संभावनाएं हैं। उन्होंने वेबीनार के विषय को अत्यंत विस्तृत एवं प्रासंगिक बताते हुए कहा कि संस्कृत अध्येता को रोजी-रोटी की कोई समस्या नहीं है। पूरे विश्व में आज संस्कृत के प्रति लोगों की रूचि बढ़ रही है। संस्कृत के साथ ही अंग्रेजी ज्ञान रखने वाले विद्यार्थियों की विदेशों में अत्यधिक मांग है।
अतिथियों का स्वागत करते हुए सी एम कॉलेज के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा आर एन चौरसिया ने कहा कि संस्कृत समस्त मानव हेतु चारित्रिक शिक्षा का मूल आधार है जो अत्यंत ही प्रयोजनमूलक विद्या है। इसमें वर्णित नैतिक शिक्षा हमारे जीवन को सार्थक व व्यवस्थित बनाते हैं। संस्कार और संस्कृति की भाषा संस्कृत ज्ञान-विज्ञान का अक्षय स्रोत है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में त्रिपुरा केंद्रीय विश्वविद्यालय,अगरतला के संस्कृत प्राध्यापक पार्थ सारथि शील ने कहा कि हमारी प्राचीनतम भाषा संस्कृत में रोजगार की काफी संभावनाएं हैं। यदि हम सही माइंडसेट,गाइडेंस, अंग्रेजी-ज्ञान व तकनीकी कुशलता प्राप्त करें तो शिक्षण, शोध,प्रशासनिक,पत्रकारिता, अनुवाद ,कर्मकांड,आर्किटेक्ट फिल्म डायरेक्शन व प्रकाशन आदि क्षेत्रों में संस्कृत छात्रों के लिए काफी रोजी- रोजगार उपलब्ध हैं।
सी एम कॉलेज के संस्कृत प्राध्यापक डा संजीत कुमार झा ने कहा कि संस्कृत अध्ययन कर छात्र अपनी योग्यता का विकास कर सभी कार्य कुशलता से कर सकते हैं। हमें संस्कृत के सैद्धांतिक ज्ञान को व्यावहारिक रूप प्रदान करने की जरूरत है। वेबीनार में जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय,नई दिल्ली के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा जयप्रकाश नारायण,दिल्ली विश्वविद्यालय से डॉ मैत्रेयी कुमारी, डा राजेश्वर पासवान,डा प्रियंका उपाध्याय,बंगाल से डा सरोज कुमार व मौशमी आकूली, आचार्य महावीर शुक्ल,डा भोलानाथ, प्रो राजीव रंजन सिंह, बेगूसराय से डा शशिकांत पांडे,डा भारती झा,डा शशि शेखर,डा योगेश शर्मा, संस्कृत विश्वविद्यालय से डा दीनानाथ साह, छपरा से डा कृष्णानंद, मगध विश्वविद्यालय गया से डा ममता मेहरा व डा एकता वर्मा,डा एचएन, यूपी से डा सीता कुमारी, प्रद्युम्न द्विवेदी,डा शैलेंद्रनाथ तिवारी,डा शंभू मंडल,डा ममता पांडे,विकास कुमार गिरी,राघव झा,डा रंजना झा,विद्यानंद चौरसिया, योगेश पांडे,राजस्थान से डा सत्य मुदिता स्नेही,अनीता प्रजापति,डा भारती झा व नृपेंद्र तिवारी सहित 150 से अधिक शिक्षक,शोधार्थी एवं विद्यार्थियों ने भाग लिया।
वेबीनार का प्रारंभ जेएनयू , नई दिल्ली की संस्कृत शोधार्थी निहारिका के मंगलाचरण से हुआ। मारवाड़ी महाविद्यालय, दरभंगा के संस्कृत विभागाध्यक्ष सह संयोजक डा विकास सिंह के संचालन में आयोजित वेबीनार में स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग, मगध विश्वविद्यालय,बोधगया की प्राध्यापिका डा ममता मेहरा ने शांति पाठ किया,जबकि मिथिला विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग की प्राध्यापिका डा ममता स्नेही ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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