डीएमसीएच के शिशु में बेहतर हो रहे हालात
विगत दो दिनों से वायरल का नया केस भर्ती नहीं
विभाग में केवल दो भर्ती बच्चे का चल रहा इलाज
वातावरण दूषित होने से बीमार हो रहे बच्चे- डॉ ओम प्रकाश

दरभंगा. डीएमसीएच के शिशु विभाग में विगत दो दिनों से वायरल संक्रमित नए बच्चों को भर्ती नहीं हुए है। वार्ड में केवल दो मरीज़ उपचाराधीन है। लिहाजा विभाग की स्थिति सामान्य होती जा रही है। नोडल ऑफिसर डॉ ओम प्रकाश के अनुसार वार्ड में सफलतापूर्वक शिशु मरीज़ों का उपचार किया जा रहा है। वर्तमान में एक भी गम्भीर केस नहीं है। बताया कि यहाँ अन्य ज़िला के शिशु को भर्ती कर उपचार की सुविधा उपलब्ध है। अभी तक एक भी शिशु की मौत नहीं हुई है। वार्ड में कुल 135 बेड है। सभी पर प्लांट से ऑक्सीजन सप्लाई का बेहतर प्रबंधन किया गया है। शिशु के बेहतर उपचार को लेकर 24 घण्टे चिकित्सको की ड्यूटी लगाई गई है। प्राचार्य सह विभागाध्यक्ष डॉ के.एन मिश्रा की देख रेख में बेहतर चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई जा रही है।
वातावरण प्रदूषण से घट रही रोग प्रतिरोधक क्षमता
डॉ ओम ने कहा आजकल पूरे वातावरण में अचानक से बदलाव हो रहें हैं और इसके साथ ही साथ पूरा वातावरण भी प्रदूषित है। खाने पीने की चीजों में भी अशुद्धि और मिलावट है , जिससे बच्चों की शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता घटती ही जा रही है।एक छोटा सा नाज़ुक बच्चा इन सारे परिवर्तन को एक साथ सहन नहीं कर पाता है जिसके फलस्वरूप वह बीमार पड़ जाता है। यह बीमारियां भी विभिन्न प्रकार की होती हैं जो बच्चे को पूरी तरह से अपने प्रभाव में ले लेती हैं। इन्ही बीमारियों में वायरल बुखार भी एक बीमारी है।
बच्चों में वायरल बुखार होने का कारण
हर बच्चा कभी ना कभी बीमार पड़ता ही रहता है। वो इसलिए क्यूंकि उसके शरीर में बिमारियों से लड़ने की प्रतिरोधक छमता पूरी तरह से विकसित नहीं हुई। इसके आलावा उन्हें ये नहीं पता होता की गन्दगी क्या होती है। वे जमीन पर पड़ी कुछ भी गन्दी वस्तु मुँह में डाल लेते हैं जिससे संक्रमण उनके शरीर में प्रवेश कर जाता है। हमें गन्दी वस्तुओं को, जिनसे संक्रमण का खतरा हो, बच्चों के पहुँच से दूर रखना चाहिए। बीमारी से बचाव ही सबसे बेहतरीन इलाज है।
बच्चों में वायरल बुखार के लक्षण:
बच्चे के पूरे शरीर में अत्यधिक दर्द होता है।
गले में खराश और खाँसी आना।
मिचली और उलटी होना।
नाक से लगातार पानी बहना।
सिर में दर्द होना।
आँखें लाल- लाल हो जाना और उसमें जलन का एहसास होना।
त्वचा पर धब्बे।
मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होना।
सामान्य रूप से कमज़ोरी होना।
बच्चे को अत्यधिक ठण्ड लगने लगती है।
अत्यधिक दस्त होना।
शरीर का तापमान 100 से 103 डिग्री हो जाता है।
तीन हफ़्तों से अधिक खाँसी आना।
मल में खून आना।
हाथ – पैर में सूजन।
दौरे पड़ना।
छींक आना।
तुरन्त ले डॉक्टर से सलाह
अगर बच्चे का तापमान किसी भी वक़्त 100.4 या फिर इससे अधिक पहुँच जाये तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। ये एक मेडिकल एमर्जेन्सी है। अगर बच्चा 3 महीने से कम उम्र का है तो डॉक्टर को यह बात आवश्य बताएं। बेहतर चिकित्सा के लिए निकट के सरकारी अस्पताल में सम्पर्क करें। वहां बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराई गई है।
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