माले के पूर्व महासचिव विनोद मिश्र की स्मृति में संकल्प सभा
किसान आंदोलन की ऐतिहासिक जीत को मजबूत बनाने और फासीवाद के खिलाफ संघर्ष तेज करने का आह्वान
दरभंगा भाकपा-माले के पूर्व महासचिव काॅ. विनोद मिश्र के 24 वें स्मृति दिवस पर आज पूरे जिला में संकल्प सभा का आयोजन किया गया और पार्टी की केंद्रीय कमिटी की ओर से जारी संकल्प सभा का पाठ किया गया। जिला कार्यालय में विनोद मिश्र को श्रद्धांजलि दी गई और तमाम शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई।
इस मौके पर पार्टी के वरिष्ठ नेता आर के सहनी, लक्ष्मी पासवान, प्रो कल्याण भारती, सदीक भारती, गंगा मंडल, रानी शर्मा सहित कई लोग शामिल थे।
बिरौल में भाकपा(माले) जिला सचिव बैद्यनाथ यादव, मनोज यादव, राम किसुन साह, कुशेश्वर स्थान में बैद्यनाथ यादव, हायाघाट में जंगी यादव, विशनाथ पासवान, जाले में ललन पासवान, सिंघवारा में सुरेंद्र पासवान, बहादुरपुर में अभिषेक कुमार, हरि पासवान, विनोद सिंह, बहेड़ी में सत्यनारायण मुखिया, हनुमाननगर में पप्पू पासवान, बेनीपुर में राजेंन्द्र दास सहित कई प्रखंडों में कार्यक्रम आयोजित किया गया।
इस अवसर पर भाकपा(माले) जिला सचिव बैद्यनाथ यादव ने इस मौके पर कहा कि काॅमरेड विनोद मिश्र आज होते तो ऐतिहासिक किसान आंदोलन को फासिस्ट विरोधी आंदोलन में तब्दील होते देख बहुत खुश होते.
फासीवादी ताकतों को परास्त करने के लिए यह संकल्प लेने का वक्त है। किसान आंदोलन में यह ताकत दिखी कि यह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को खत्म कर सके और अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे लोगों में आत्मविश्वास पैदा कर सके। पंजाब और उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण चुनाव से पहले तीनों कानूनों को रद्द करने के बावजूद सरकार किसान आंदोलन के साथ कोई समझौता करने से इंकार कर रही है। खेती कानूनों को वापस लेने का बिल ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ की आड़ में लाया गया है और दिखाने की कोशिश की जा रही है कि सरकार ने विरोध कर रहे किसानों को खुश करने के लिए ये कदम उठाया है। लेकिन दंभ और धोखाधड़ी वाले प्रचार के जरिये इस बात को छिपाया नहीं जा सकता कि सरकार को किसानों के सामने मुंह की खानी पड़ी है।
आंदोलन की सफलता का कारण लाखों किसानों की सतत और व्घ्यवस्थित गोलबंदी है। किसानों के आंदोलन की ऐतिहासिक जीत से प्रेरणा लेकर आगे हमें व्यापक संगठन निर्माण और राजनीतिक गोलबंदी की दिशा में बढ़ना है।
वही वरिष्ठ नेता आर के सहनी ने कहा कि खेती कानूनों को समाप्त करने की घोषणा के एक हफ्ते बाद 26 नवंबर को संविधान को स्वीकार किये जाने के दिन मोदी जी ने संविधान की मूल भावना को ही उलट देने की कोशिश की। संविधान की प्रस्तावना में किये गये वायदे और मूल अधिकार लोकप्रिय जनसंघर्षों का तर्क बन जाते हैं। इनसे डरी हुई मोदी सरकार ने मूलअधिकारों को कर्तव्यों के मातहत लाने के जरिये संविधान को सिर के बल खड़ा कर देने की कोशिश की। गौरतलब है कि कर्तव्यों का अनुच्घ्छेद आपातकाल के दौरान संविधान संशोधन के जरिये लाया गया था। सरकार जैसे-जैसे लोकतांत्रिक संस्थाओं, संघीय ढांचे, संवैधानिक मूल्यों और जनता को संविधान में दी गई गारंटी पर हमला और तेज करेगी उसके प्रतिवाद में खड़े होने वाले फासीवाद विरोधी आंदोलन के लिए किसान आंदोलन प्रेरणास्रोत की तरह काम करेगा। किसान आंदोलन को भी समान नागरिकता और अधिकारों के लिए चलने वाले ऐतिहासिक शाहीन बाग आंदोलन से प्रेरणा मिली थी। इस आंदोलन की मुख्य ताकत मुस्लिम महिलायें और विश्घ्वविद्यालयों के छात्र थे।
वही राज्य कमिटी सदस्य अभिषेक कुमार ने कहा कि 2021 भारतीय जनता के लिए बहुत भयावह साल रहा। सरकार ने लोगों की जान बचाने की जिम्मेदारी से पीछा छुड़ा लिया और भयावह दमन पर उतर आई। सरकार ने क्रूर जनविरोधी नीतियां लागू कीं और सार्वजनिक संपत्ति को एक तरफ से बेच डाला। लेकिन इस साल का अंत ऐतिहासिक संघर्ष की सफलता से हो रहा है। नये साल की शुरुआत में ही उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के महत्वपूर्ण चुनाव होने जा रहे हैं। हमें अपनी पूरी ताकत लगाकर इन चुनावों को ताकतवर जनान्दोलन में तब्घ्दील कर देना होगा।
वही लक्ष्मी पासवान ने कहा कि आज जब हम कॉमरेड विनोद मिश्र का 23वां स्मृति दिवस मना रहे हैं तो हमें उनके पूरे जीवन संघर्ष को याद करते हैं। उन्होंने सदैव भाकपा (माले) को विचारधारात्मक तौर पर साहसी, सांगठनिक तौर पर मजबूत, रचनात्मक पहलकदमी वाली और जनता की दावेदारी को आगे बढ़ाने वाली पार्टी के रूप में संगठित करने के लिए संघर्ष किया। जनसंघर्षों की जीत की गारंटी मजबूत पार्टी ही कर सकती है। नयी चुनौतियों के इस दौर में हम पार्टी के विस्तार की नयी संभावनाओं को भी देख सकते हैं। पार्टी की पहलकदमी को बढ़ाने के लिए यह जरूरी है। 2022 को और बेहतर प्रयासों तथा और बड़ी जीतों के साल में बदल देने का वक्त है।