कालाजार के रोगियों को स्वस्थ होने के बाद सरकार देती अनुदान
कालाजार उन्मूलन को लेकर जिला स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन
कालाजार की जांच को ले सभी पीएचसी में उपलब्ध है आरके- 39 कीट
दरभंगा डीएमसीएच स्थित टीबीडीसी विभाग में सिविल सर्जन डॉ अनिल कुमार सिन्हा, अधीक्षक डॉ एचएस मिश्रा एवं डब्ल्यूएचओ के जोनल कार्डिनेटर डॉ दिलिप कुमार की मौजूदगी में जिला स्तरीय कालाजार उन्मूलन कार्यक्रम की समीक्षात्मक बैठक सह प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इसमें बताया गया कि जिला लगातार कालाजार उन्मूलन की दिशा में आगे बढ़ रहा है. चालू वर्ष में कालाजार के कुल 24 रोगियों का सफलता पूर्वक उपचार किया गया. कहा कि जिला में कालाजार के एक भी रोगी न हो इसके लिये लागातार विभागीय प्रयास किये जा रहे हैं. कहा कि पिछले पांच सालों में एक भी प्रखंड में स्थानीय स्तर पर कालाजार के रोगी नहीं मिले. बताया गया कि इस रोग में एम्ब्रीजोम नामक इंजेक्शन का एक डोज काफी है. एक डोज मिलने के बाद रोगी ठीक हो जाता है. बताया कि यह जाले, बेनीपुर, कुशेश्वरस्थान पूर्वी व डीएमसीएच में उपलब्ध है. कहा कि यह दवा मंहगी है. डब्ल्यूएचओ के द्वारा इसे उपलब्ध कराया जाता है. कहा कि पेट संबंधी कालाजार रोगी को ठीक होने के बाद 71 सौ रूपये दिये जाते हैँ. वहीं चमड़ी रोग संबंधी कालाजार रोगियों को स्वस्थ होने के बाद चार हजार रूपया दिया जाता है.
स्वास्थ्य कर्मियों को दिया प्रशिक्षण:
मौके पर डब्ल्यूएचओ के जोनल कोऑर्डिनेटर डॉ दिलीप कुमार ने सभी प्रभारी चिकित्सा प्रभारी, स्टाफ नर्स एवं लैब टेक्निशियन को कालाजार के लक्षण व बचाव को लेकर प्रशिक्षण दिया. डॉ कुमार ने बताया कि कालाजार की जांच आरके- 39 नामक कीट से होता है. 10 मिनट में इसका रिजल्ट प्राप्त हो जाता है. यह किट पीएससी में उपलब्ध कराया गया है. कहा कि जिन मरीजों को दोबारा कालाजार होता है. उन्हें ही बोन मैरो टेस्ट कराने की जरूरत पड़ती है. बताया कि कालाजार बालू मक्खी के काटने से होता है. यह मक्खी अंधेरी एवं नमी वाली जगहों पर घर के अंदर दरारो में मिलते हैं. कहा कि यह कीट जानवरों के मल- मूत्र वाले जगहों पर भी यह पाया जाता है. इसलिए कालाजार से बचाव के लिए सिंथेटिक पायराथाइड का छिड़काव साल में दो बार लगातार तीन सालों तक कालाजार वाले क्षेत्र या गांव में कराया जाता है.
याद किये गये डॉ मोहन मिश्रा
बैठक में कालाजार के इलाज के लिये दवा विकसित करने वाले डीएमसीएच के पूर्व मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ मोहन मिश्रा को याद किया गया. कहा गया कि डॉ मिश्रा ने 1991 में साबित किया कि एमफोटेरेसिन दवा कालाजार रोगी के उपचार में बहुत उपयोगी है. उसके बाद भारत सरकार की ओर से गाइडलाइन में एमफोटेरेसिन दवा को शामिल किया गया. भारत सरकार की ओर से 2014 में डॉ मिश्रा को पदम श्री सम्मान दिया गया. मौके पर वेक्टर जनित रोग नियंत्रण अधिकारी डॉ जेपी महतो, केयर इंडिया के डीपीओ प्रमोद, वेक्टर रोग अधिकारी आशुतोष, सभी प्रखंडों प्रभारी चिकितसा पदाधिकारी आदि मौजूद थे.