दरभंगा। बिहार का पहला तैरता हुआ सोलर एनर्जी प्लांट दरभंगा में बनकर तैयार हो रहा है। शहर के कादिराबाद में बिजली विभाग के तालाब में बन रहे इस प्लांट की क्षमता

2 मेगावाट है। इसकी लागत 7 करोड़ रुपये है। इस तालाब के अंदर एक तरफ तो मछली पालन होगा वहीं दूसरी तरफ इसके ऊपर लगे सोलर प्लेट्स से बिजली उत्पादन भी होगा। इसी महीने की 10 तारीख से इसमें 1.6 मेगावाट बिजली उत्पादन शुरू होने की संभावना है। इसी तालाब से सटा बिजली विभाग का एक पावर सबस्टेशन भी बनाया जा रहा है, जिसके माध्यम से इस सोलर एनर्जी को पावर ग्रिड में पहुंचाया जाएगा और उसके बाद शहर में इसकी आपूर्ति की जाएगी। इस प्रोजेक्ट को बिहार रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी यानी ब्रेडा ने शुरू किया है। ब्रेडा और नॉर्थ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड ने आवाडा नामक एक कंपनी से अगले 25 साल तक इस फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट के संचालन के लिए करार किया है। कंपनी इस प्रोजेक्ट पर जोर-शोर से काम कर रही है। सोमवार को नॉर्थ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड, दरभंगा के अधीक्षण अभियंता सुनील कुमार दास ने साइट पर पहुंचकर प्रोजेक्ट का निरीक्षण किया।
अधीक्षण अभियंता सुनील कुमार दास ने कहा कि सोलर प्लेट के माध्यम से दरभंगा में ऊर्जा उत्पादन का यह प्रोजेक्ट अब पूरा होने को है। उन्होंने कहा कि यह बिहार सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना है। इसी महीने की 10 तारीख से यहां बिजली उत्पादन की संभावना है। उन्होंने कहा कि इसी के बगल में एनबीपीडीसीएल का एक पावर सबस्टेशन भी बनाया जा रहा है जो अगले 15 दिन में बनकर तैयार हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इसी पावर सब स्टेशन से यहां उत्पादन की गई सोलर एनर्जी को पावर ग्रिड तक पहुंचाया जाएगा। उसके बाद से लोगों के घरों तक यह बिजली पहुंचेगी। उन्होंने कहा कि इससे प्रदूषण रहित ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा और भविष्य में गैर पारंपरिक ऊर्जा की तरफ सरकार और लोगों का ज्यादा ध्यान जाएगा।
वहीं, अवाडा कंपनी के प्रोजेक्ट मैनेजर रोहित कुमार सिंह ने कहा कि यहां से फिलहाल 1.6 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा। उन्होंने कहा कि अवाडा ने ब्रेडा और एनबीपीडीसीएल के साथ अगले 25 साल तक इस प्लांट के रखरखाव और यहां से सौर ऊर्जा के उत्पादन का करार किया है। उन्होंने कहा कि इस अवधि में प्रोजेक्ट का मेंटेनेंस भी शामिल है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार चाहती है कि आने वाले समय में गैर परंपरागत ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाए ताकि पारंपरिक ढंग से बनाई जाने वाली बिजली और कोयले के प्रयोग से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सके।
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