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हिन्दी साहित्य भारती एवं सक्षम,दरभंगा द्वारा ‘हिन्दी काव्य जगत में सूर की शूरता’ विषयक विचारगोष्ठी आयोजित

हिन्दी साहित्य भारती एवं सक्षम,दरभंगा द्वारा ‘हिन्दी काव्य जगत में सूर की शूरता’ विषयक विचारगोष्ठी आयोजित

सूरदास की जयंती की पूर्व संध्या पर प्रो अजीत, डा सतीश, डा दिनेश, डा मीनाक्षी, चन्द्रभूषण व डा चौरसिया ने रखे विचार

हिन्दी साहित्य के स्वर्णिम भक्तिकाल के सशक्त हस्ताक्षर सूरदास महान भक्त एवं संत कवि- प्रो अजीत

सूर काव्य की सगुण भक्ति अमृतधारा सदा समाज को अप्लाविन करती रहेगी- डा सतीश सिंह

प्रेम व त्याग के प्रतिमूर्ति कृष्णभक्त सूर ने हमें भक्ति मार्ग से मुक्ति का रास्ता दिखाया- चन्द्रभूषण

सूर के वर्णन में सहृदयता, वचन में चातुर्यता एवं रचना में संगीत व कविता के स्वाभाविक दर्शन- डा दिनेश

वात्सल्य व श्रृंगार के सम्राट महाकवि सूरदास कृष्णभक्ति के पर्याय- डा मीनाक्षी राणा

 

महाकवि सूरदास की जयंती की पूर्व संध्या पर ‘हिन्दी साहित्य भारती’, दरभंगा तथा दिव्यांग के कल्याण, निवारण एवं पुनर्वास को समर्पित संस्था ‘सक्षम’, दरभंगा के संयुक्त तत्वावधान में “हिन्दी काव्यजगत् में सूर की शूरता” विषयक ऑनलाइन विचारगोष्ठी का आयोजन किया गया।
सक्षम के उत्तर बिहार प्रांत के अध्यक्ष चन्द्रभूषण पाठक की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में हिन्दी साहित्य भारती के बिहार प्रदेश महामंत्री प्रो अजीत कुमार सिंह मुख्य अतिथि, एमएलएसएम कॉलेज, दरभंगा के हिन्दी- प्राध्यापक डा सतीश कुमार सिंह मुख्य वक्ता, सी एम कॉलेज, दरभंगा की हिन्दी प्राध्यापिका डा मीनाक्षी राणा विशिष्ट वक्ता के रूप में, जबकि हिन्दी साहित्य भारती के बिहार प्रदेश अध्यक्ष एवं सीएम साइंस कॉलेज के हिन्दी- विभागाध्यक्ष डा दिनेश प्रसाद साह विषय प्रवर्तक के रूप में तथा संयोजक के रूप में हिन्दी साहित्य भारती के दरभंगा जिलाध्यक्ष एवं सक्षम, दरभंगा के संरक्षक डा आर एन चौरसिया आदि ने अपने विचार व्यक्त किए,जबकि संगोष्ठी में एलएस कॉलेज से डा राजीव कुमार, कटिहार से अरुण कुमार, मारवाड़ी कॉलेज से डा विकास सिंह एवं डा सुनीता कुमारी, मिल्लत कॉलेज के पूर्व प्राध्यापक डा भक्तिनाथ झा, जीकेपीडी कॉलेज से डा प्रेम कुमारी, एमआरएम कॉलेज से डा सुकृति कुमारी,एसके महिला कॉलेज, बेगूसराय से डा अर्चना कुमारी, डा ज्योति कुमारी, मनीष कुमार, संस्कृत विश्वविद्यालय से डा प्रवीण शेखर झा, राजकुमार गणेशन, सीएम कॉलेज से डा प्रीति कानोडिया,डा मसरूर सोगरा व डा मनोज कुमार सिंह, एमएमटीएम कॉलेज के हिन्दी- प्राध्यापक डा सतीश कुमार, सक्षम के दरभंगा जिला संयोजक विजय कुमार लाल दास, राजाराम, सतीशचन्द्र पाठक, प्रियदर्शी राहुल, अनिल सिन्हा, डा नमीश कुमार, शरबत आरा, इन्दुभूषण सुमन,डा शशिकला यादव, सीतामढ़ी से आशीष रंजन, जूही झा, डा नमीशचन्द्र, कुंदन, अजय, विभाष, विनोद, कार्तिक, गोविंद, निभा भारती, ओमप्रकाश, प्रहलाद, रमेश, सज्जन, गोलू, यशवर्धन, निशीथचन्द्र, दीपक कुमार व प्रदीप महतो सहित 60 से अधिक व्यक्तियों ने भाग लिया।
अपने संबोधन में डा सतीश कुमार सिंह ने कहा कि सूरदास भक्ति परंपरा के शिरोमणि कवि हैं, जिनके काव्य की सगुण भक्ति अमृतधारा सदा समाज को आप्लावित करती रहेगी। सूर की शूरता का प्राकट्य गुरु बल्लभाचार्य की फटकार से प्रकट हुई, जिन्होंने सूर को भगवतलीला- वर्णन की प्रेरणा दी। सूर ने भगवान कृष्ण की विविध लीलाओं का सजीव वर्णन किया। उनके काव्य में प्रेम तत्व की प्रमुखता एवं उसके विराट स्वरूप का वर्णन हुआ है। सूर की कीर्ति का मुख्य आधार सूरसागर है। इसका उपजीव्य भागवत पुराण है, जिसमें सगुण भक्ति की प्रधानता है। कृष्णभक्ति ही सूर काव्य का एकमात्र उद्देश्य था, जिन्होंने कृष्ण भगवान को आमलोगों के बीच प्रतिष्ठित किया।
प्रो अजीत कुमार सिंह ने कहा कि हिन्दी साहित्य के स्वर्णिम भक्तिकाल के सशक्त हस्ताक्षर सूरदास महान भक्त एवं संत कवि थे, जिन्होंने भक्तिमार्ग से ईश्वर प्राप्ति का सरल मार्ग लोगों को बताया। सूर हिन्दी साहित्य में सूर्य के सदृश्य हैं। वे प्रेम, भक्ति, वात्सल्य व भक्ति के प्रमुख कवि थे, जिनके साहित्य के अनुशीलन से समरस समाज की स्थापना संभव है। वैश्विक संकट के समय सूरकाव्य की प्रासंगिकता अधिक बढ़ गई है।
डा मीनाक्षी राणा ने कहा कि वात्सल्य व श्रृंगार के सम्राट महाकवि सूरदास कृष्णभक्ति के पर्याय थे, जबकि कृष्णभक्ति भी सूर के पर्याय हैं। उनका अंतर्मन कृष्णभक्ति में लीन था, जिनके भजन आज भी घर-घर में सुनी जाती है। उन्होंने भक्ति, श्रृंगार और वात्सल्य रस में कृष्ण के मनोहर एवं वात्सल्य रूपों का मनोवैज्ञानिक व अद्वितीय वर्णन किया।
विषय प्रवर्तन करते हुए हिन्दी साहित्य भारती के बिहार प्रदेश अध्यक्ष डा दिनेश प्रसाद साह ने कहा कि सूर के वर्णन में सहृदयता, वचन में चातुर्यता एवं रचना में संगीत व कवित्व के स्वाभाविक दर्शन होते हैं। वैष्णव भक्ति परंपरा में सूर का कृष्ण- साहित्य अद्वितीय है। उनके श्रृंगार में जहाँ माधुर्य भाव की प्रमुखता है, वहीं श्रृंगार वर्णन में शालीनता भी है। भ्रमरगीत में सूर की शूरता प्रदर्शित हुई है।
अध्यक्षीय संबोधन में सक्षम उत्तर बिहार के अध्यक्ष चन्द्रभूषण पाठक ने कहा कि प्रेम व त्याग के प्रतिमूर्ति कृष्णभक्त कवि सूरदास ने हमें भक्तिमार्ग से मुक्ति का आसान रास्ता दिखाया। सूर पारिवारिक कठिनाइयों के बावजूद साहित्यिक व सामाजिक जीवन जीया। उनका साहित्य आज भी हमारे लिए प्रेरणास्रोत एवं मार्गदर्शक है।
हिन्दी साहित्य भारती के दरभंगा जिलाध्यक्ष एवं सक्षम, दरभंगा के संरक्षक डा आर एन चौरसिया के संचालन में आयोजित विचारगोष्ठी में अतिथियों का स्वागत डा दिनेश प्रसाद साह ने किया, जबकि विस्तार से अतिथियों का परिचय एवं धन्यवाद ज्ञापन डा चौरसिया ने किया। कार्यक्रम का प्रारंभ चन्द्रभूषण पाठक द्वारा सक्षम के संगठन सूत्र वाचन से हुआ, जबकि हिन्दी साहित्य भारती के धेयगीत की रिकॉर्ड प्रस्तुति डा दिनेश प्रसाद साह के द्वारा हुई, वहीं कार्यक्रम का समापन कल्याण मंत्र से हुआ।

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