कुष्ठ रोग एवं फाइलेरिया से बचाव हेतु आशाओं का एक दिवसीय ट्रेनिंग
•अमेरिकन लेप्रोसी मिशन और लेप्रा सोसायटी तथा जिला स्वास्थ्य समिति के तत्वधान में चलाई जा रही जागृति परियोजना
• जागृति परियोजना के अंतर्गत अब तक 987 फाइलेरिया प्रभावित व्यक्ति 77 कुष्ठ प्रभावित व्यक्ति को सुरक्षात्मक चप्पल एवं स्वयं सुरक्षा कीट प्रदान किया जा चुका है
समस्तीपुर
जिले के कल्याणपुर प्रखंड के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में आशाओं का एक दिवसीय ट्रेनिंग का आयोजन किया गया , कल्याणपुर प्रखंड के 130 गांव में जिला स्वास्थ्य समिति अमेरिकन लेप्रोसी मिशन तथा लेप्रा सोसायटी के संयुक्त तत्वाधान में जागृति परियोजना चलाई जा रही है इस परियोजना के अंतर्गत 9 रोगों से बचाव एवं स्वच्छता संबंधित जानकारी दी गई, इस परियोजना के अंतर्गत 2598 फाइलेरिया 1854 हाइड्रोसील एवं 254 कुष्ठ रोग से प्रभावित लोगों का रजिस्ट्रेशन किया जा चुका है रजिस्ट्रेशन के उपरांत जागृति परियोजना के अंतर्गत अब तक 987 फाइलेरिया प्रभावित व्यक्ति 77 कुष्ठ प्रभावित व्यक्ति को सुरक्षात्मक चप्पल एवं स्वयं सुरक्षा कीट प्रदान किया जा चुका है दिनांक 1अगस्त 2022 से नए कुष्ठ रोगियों की खोज कल्याणपुर प्रखंड में की जा रही है लेप्रा सोसायटी के प्रोग्राम मैनेजर अमर सिंह ने ट्रेनिंग में आशाओं को संबोधित करते हुए बताया कि लेप्रोसी या कुष्ठ रोग एक जीर्ण संक्रमण है, जिसका असर व्यक्ति की त्वचा, आंखों एवं परिधीय तंत्रिकाओं पर पड़ता है। यह मायकोबैक्टीरियम लैप्री नामक जीवाणु के कारण होता है। हालांकि यह बीमारी बहुत ज्यादा संक्रामक नहीं है, लेकिन मरीज के साथ लगातार संपर्क में रहने से संक्रमण हो सकता है।
कुष्ठ रोग से संबंधित भ्रांतियां
लोगों का मानना है कि कोढ़ की बीमारी वंशानुगत रोग है। लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है यह संक्रमण की चपेट में आने से होता है।
•कुष्ठ रोग कोई ईश्वरीय प्रकोप, पुराने जन्मों का पाप या अन्य कोई श्राप नहीं है बल्कि यह जीवाणु की चपेट में आने से होता है जो कि व्यक्ति को उम्र के किसी भी दौर में अपनी चपेट में ले सकता है।
•बहुत से लोगों का मानना है कि अगर माता या पिता को कुष्ठ रोग है तो बच्चे को भी यह बीमारी हो सकती है। लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है, क्योंकि यह बीमारी जीन में होती।
•लोगों का मानना है कि कुष्ठ रोग लाइलाज बीमारी है। लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है, कुष्ठ रोग से जुड़ी ऐसी बहुत सी दवाएं हैं जिनकी मदद से इससे हमेशा के लिए छुटकारा पाया जा सकता है।
लेप्रा सोसायटी के प्रोग्राम मैनेजर अमर सिंह ने बताया कि लेप्रोसी संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने पर उस से निकलने वाले पानी की बूंदों में लेप्रे बैक्टीरिया होते हैं। ये बैक्टीरिया हवा के साथ मिलकर दूसरे व्यक्ति के शरीर में पहुंच जाते हैं। स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में पहुंच कर इन बैक्टीरिया को पनपने में करीब 4-5 साल लग जाते हैं। प्राइमरी स्टेज पर लेप्रोसी के लक्षणों की अनदेखी करने से व्यक्ति अपंगता का शिकार हो सकता हैं। यह संक्रामक है, पर यह लोगों को छूने, साथ खाना खाने या रहने से नहीं फैलता है। लंबे समय तक संक्रमित व्यक्ति के साथ रहने से इससे संक्रमण हो सकता है, पर मरीज़ को यदि नियमित रूप से दवा दी जाए, तो इसकी आशंका भी नहीं रहती है