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सड़क निर्माण एवं प्रबंधन में करें जूट एवं प्लास्टिक का प्रयोग -डा सुनील

सड़क निर्माण एवं प्रबंधन में करें जूट एवं प्लास्टिक का प्रयोग -डा सुनिल

रिपोर्ट अजित कुमार सिंह

मधुबनी जिला के खिरहर गाँव निवासी पथ निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियंता डा सुनील कुमार चौधरी ने राँची के इन्जीनियर भवन में आयोजित आल इन्डिया सेमिनार आन”अल्टरनेटिव मटेरियल हाइवे कन्सट्रक्सन ” मे दो शोध पत्र प्रस्तुत कर राष्ट्रीय स्तर पर पर बिहार का परचम लहराया।डा चौधरी के शोध पत्र का शीर्षक था- 1.जियोसिन्थेटिक फोर रोड कन्सट्रक्सन , इरोजन कन्ट्रोल एवं मेन्टिनेन्स 2.प्लास्टिक रोड:एन इनोवेटिव, कौस्ट इफेक्टिव एण्ड ग्रीन रिवोल्यूशन इन दि फ़ील्ड ऑफ रोड कन्सट्रक्सन ।इस सेमिनार मे डा चौधरी दो शोध पत्र प्रस्तुत करने वाले एक मात्र अभियंता है । प्रथम शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए डा चौधरी ने बताया कि जूट का प्रयोग कर न कवल सड़क के भार वहन छमता को बढाया जा सकता है बल्कि सड़क के क्रस्ट की मुटाई को भी कम किया जा सकता है ।उन्होने जूट जियोटेक्सटाइल के साथ भेटिभर ग्रास का उपयोग कर कटाव निरोधी कार्य एवं स्लोप प्रोटेक्शन करने के सस्ता एवं पर्यावरण के अनुकूल तकनीक के विभिन्न पहलुओं पर बड़े ही सहज-सरल एवं रोचक ढंग से प्रकाश डाला ।उन्होने केस स्टडी के द्वारा मृदा स्थिरीकरण, मृदा रिइनफोर्समेन्ट,सडक के सीबीआर बढाने मे जियोसिन्थेटिक के उपयोग पर विस्तार से चर्चा की ।उन्होने भिजुअल प्रजेंटेशन के माध्यम से सडक निर्माण एवं प्रबंधन मे जियोटेक्सटाइल के उपयोग के होलिस्टिक एप्रोच पर बड़े ही रोचक ढंग से प्रकाश डाला ।डा चौधरी ने दूसरा शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए बताया कि सडक निर्माण मे प्लास्टिक का उपयोग कर न केवल सड़क निर्माण की लागत कम की जा सकती है बल्कि पर्यावरण के हो रहे नुकसान को भी कम किया जा सकता है ।उन्होने प्लास्टिक रोड के निर्माण में ड्राई प्रोसेस की वकालत की ।डॉ चौधरी ने बताया कि अगर सिन्गल लेन सड़क का निर्माण करते हैं तो प्रत्येक किमी निर्माण पर 30000 रू की बचत होगी एवं वातावरण पर छः टन कार्बन डाई ऑक्साइड गैस का लोड कम होगा।उन्होने बताया कि अगर डिजास्टर रेजिलिएन्ट सडक का निर्माण एवं प्रबंधन करना है तो जुट एवं प्लास्टिक के प्रयोग चो बढ़ावा देना होगा ।डॉ चौधरी ने बाढ प्रभावित इलाकों मे सडक सुरक्षा मे जुट एवं प्लास्टिक की भूमिका पर भी प्रकाश डाला ।उन्होने सड़क की मरम्मती मे जुट की विशिष्टयो एवं अभिकल्प के बारे मे केस स्टडी के माध्यम से चर्चा की ।आपदा रोधी समाज निर्माण के लिए कृतसंकल्पित तथा विज्ञान एवं तकनीक के विभिन्न पहलुओं को समाज के अन्तिम पंक्ति के लोगों तक पहुंचाने को कटिबद्ध डा चौधरी ने बताया कि जूट एवं प्लास्टिक के प्रयोग से न केवल डिजास्टर रेजिलिएन्ट सड़क का निर्माण होगा बल्कि संरचना की लाइफ भी दुगुनी हो जाएगी ।डॉ चौधरी ने जलवायु परिवर्तन जनित प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए इन्टिग्रेटेड एप्रोच अपनाने की जरूरत बताई । इसके लिए समाज में लोगो को जागरूक करना होगा। प्राकृतिक आपदा के समय इन्फ्रास्टक्चर भारी संख्या में क्षति ग्रस्त हो जाते हैं एवं जान माल की काफ़ी क्षति होती है जिससे लोगों को भारी कष्ट उठाना पड़ता है।ऐसे में पारम्परिक निर्माण एवं प्रबंधन में बदलाव की जरूरत है ।डा चौधरी ने सड़क निर्माण कार्य में अभिकल्प एवं मटेरियल के विशिष्टयो एवं प्रबंधन नीतियों में बदलाव की जरूरत की जोरदार वकालत की एवं इस दिशा में शोध को बढ़ावा देने की जरूरत बताई ।उन्होने क्लाइमेट एवं डिजास्टर रेजिलिएन्ट निर्माण एवं प्रबंधन में बायोइन्जिनियरिन्ग की महत्ता पर विस्तार से प्रकाश डाला।उन्होने बताया कि ऐसे पौधों को लगाने की जरूरत है जो कार्बन डाई ऑक्साइड का शोषण कर सके। उन्होने बताया कि सड़क निर्माण एवं प्रबंधन में जूट एवं प्लास्टिक के प्रयोग पर समाज के हर तबके को जागरूक करने के अभियान को एक आन्दोलन का रूप देकर पूरा देश में फैलाने की जरूरत है । डा चौधरी अन्तरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर के तकनीकी एवं सामाजिक संगठनों से जुड़कर जलवायु परिवर्तन जनित आपदा एवं उससे निपटने के लिए डिजास्टर रेजिलिएन्ट एवं कौस्ट इफेक्टिव टेक्नोलॉजी को समाज के अन्तिम पंक्ति के लोगों तक पहुंचाने का काम करते रहे हैं ।डा चौधरी बिहार राज्य अभियंत्रण सेवा संघ के पूर्व सचिव भी रह चुके हैं ।उन्होने निम्नलिखित पंक्तियों के साथ अपनी बात समाप्त की-

तमन्ना की इकाई गर दहाई में बदल जाये,
सड़क निर्माण में जूट एवं प्लास्टिक का उपयोग हो जाये ।
हमने डिजास्टर रेजिलिएन्ट सड़क बनाने की जिद जो ठानी है,
सफलता की कोई स्वर्णिम इकाई में बदल जाये ।
अन्त मे उन्हें स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया ।

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