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मधुबनी कालाजार उन्मूलन के द्वितीय चक्र के लिए सिंथेटिक पायराथायराइड का छिड़काव शुरू

कालाजार उन्मूलन के द्वितीय चक्र के लिए सिंथेटिक पायराथायराइड का छिड़काव शुरू

• 5 सितंबर से अगले 60 दिनों तक चिह्नित गांव के प्रत्येक घरों में दवा का किया जाएगा छिड़काव
•छिड़काव करने के लिए 30 दलों का किया गया है गठन

मधुबनी, जिले में कालाजार उन्मूलन को लेकर द्वितीय चरण में सिंथेटिक पायराथायराइड का छिड़काव 5 सितंबर से अगले 60 दिनों तक चिह्नित 17 प्रखंड के 71 गाँव में छिड़काव किया जाएगा। अभियान की शुरुआत जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ विनोद कुमार झा एवं केयर इंडिया के डीटीएल महेंद्र सिंह सोलंकी ने संयुक्त रूप से हरी झंडी दिखाकर पंडौल पीएचसी से की । प्रथम दिन अभियान की शुरुआत बाबूबरही,मधवापुर, लौकही एवं पंडौल ब्लॉक में की गयी है। बाकी 13 प्रखंडों में 9 सितंबर से शुरुआत की जाएगी। जिसमें बासोपट्टी, खजौली, कलुआहि ,लदनिया, मधेपुर, रहिका, राजनगर, खुटौना, लखनौर, झंझारपुर,बेनीपट्टी,बिस्फी, जयनगर शामिल हैं। छिड़काव के लिए 30 टीम का गठन किया गया है। प्रत्येक टीम में 6 लोगों को रखा गया है। सभी कर्मियों को प्रशिक्षण दे दिया गया है। प्रशिक्षण में कर्मियों को एक भी घर नहीं छूटे इसका ख्याल रखने को कहा गया। छिड़काव में आशा, फैसिलिटेटर व प्रखंड स्तर के कर्मियों व अधिकारियों को शामिल किया गया है। जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. विनोद कुमार झा ने बताया कि कालाजार की वाहक बालू मक्खी को खत्म करने तथा कालाजार के प्रसार को कम करने के लिए इंडोर रेसिडूअल स्प्रे (आईआरएस) किया जाता है। यह छिड़काव घर के अंदर दीवारों पर छह फीट की ऊंचाई तक होता है। कहा कि लोगों को प्रत्येक घरों में अवश्य छिड़काव करानी चाहिए, चाहे वह पूजा घर हो, बाथरूम हो या मवेशियों का स्थान। सभी जगहों पर छिड़काव कराने से कालाजार संक्रमण का खतरा कम हो जाता है। छिड़काव के दो घण्टा बाद घर में प्रवेश करना चाहिये। साथ ही छिड़काव के छह महीने तक घर मे पेंटिग नहीं करानी चाहिए। इसे लेकर लोगों को जागरूक करने की ज़रूरत है।

ऐसे फैलता है कालाजार:

वेक्टर रोग नियंत्रण पदाधिकारी राकेश कुमार रंजन ने कहा कि कालाजार एक संक्रमण बीमारी है जो परजीवी लिस्मैनिया डोनोवानी के कारण होता है। यह एक वेक्टर जनित रोग भी है। इस बीमारी का असर शरीर पर धीरे-धीरे पड़ता है। कालाजार बीमारी परजीवी बालू मक्खी के जरिये फैलती है। जो कम रोशनी और नम जगहों जैसे कि मिट्टी की दीवारों की दरारों, चूहे के बिलों तथा नम मिट्टी में रहती है। बालू मक्खी यही संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलाती है। इस रोग से ग्रस्त मरीज खासकर गोरे व्यक्तियों के हाथ, पैर, पेट और चेहरे का रंग भूरा हो जाता है। इसी से इसका नाम कालाजार यानि काला बुखार पड़ा ।

हर पीएचसी पर मुफ्त जांच सुविधा उपलब्ध :

डॉ. झा ने बताया हर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर कालाजार जांच की सुविधा उपलब्ध है। कालाजार की किट (आरके-39) से 10 से 15 मिनट के अंदर टेस्ट हो जाता है। हर सेंटर पर कालाजार के इलाज में विशेष रूप से प्रशिक्षित एमबीबीएस डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी उपलब्ध हैं।

कालाजार के कारण :

केयर इंडिया के डीपीओ धीरज कुमार ने बताया कालाजार मादा फाइबोटोमस अर्जेंटिपस(बालू मक्खी) के काटने के कारण होता है, जो कि लीशमैनिया परजीवी का वेक्टर (या ट्रांसमीटर) है। किसी जानवर या मनुष्य को काट कर हटने के बाद भी अगर वह उस जानवर या मानव के खून से युक्त है तो अगला व्यक्ति जिसे वह काटेगा वह संक्रमित हो जायेगा। इस प्रारंभिक संक्रमण के बाद के महीनों में यह बीमारी और अधिक गंभीर रूप ले सकती है, जिसे आंत में लिशमानियासिस या कालाजार कहा जाता है।

कालाजार उन्मूलन के लिए भारत सरकार का मानक प्राप्त :

जिले में लगातार छिड़काव के कारण कालाजार उन्मूलन के लिए भारत सरकार का जो मानक है उसे प्राप्त किया जा चुका है। मरीजों की संख्या शून्य करने के लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है। जिले में वर्ष 2009 में 730 मरीज, 2010 में 630, वर्ष 2011 में 538, वर्ष 2012 में 415, वर्ष 2013 में 321, वर्ष 2014 में 256, वर्ष 2015 में 187, मरीज 2016 में 108, मरीज, 2017 में 85 मरीज, 2018 में 50, 2019 में 31,और 2020 में 28, 2021 में 7 मरीज तथा 2022 मे अबतक 2 कालाजार के मिले हैं।

सरकार द्वारा रोगी को मिलती है आर्थिक सहायता :
कालाजार से पीड़ित रोगी को मुख्यमंत्री कालाजार राहत योजना के तहत श्रम क्षतिपूर्ति के रूप में पैसे भी दिए जाते हैं। बीमार व्यक्ति को 6600 रुपये राज्य सरकार की ओर से और 500 रुपए केंद्र सरकार की ओर से दिए जाते हैं। यह राशि वीएल (ब्लड रिलेटेड) कालाजार में रोगी को प्रदान की जाती है। वहीं चमड़ी से जुड़े कालाजार (पीकेडीएल) में 4000 रुपये की राशि केंद्र सरकार की ओर से दी जाती है।

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