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• जन संस्कृति मंच, बिहार के संस्थापक सदस्य महेश्वर के स्मृति दिवस पर संगोष्ठी हुई • दरभंगा  ajit कुमार सिंह की रिपोर्ट

 

जन संस्कृति मंच, बिहार के संस्थापक सदस्य महेश्वर के स्मृति दिवस पर संगोष्ठी हुई

दरभंगा  जन संस्कृति मंच, बिहार के संस्थापक सदस्य व सुप्रसिद्ध कवि महेश्वर के स्मृति दिवस पर जन संस्कृति मंच, दरभंगा के तत्वावधान में जनकवि सुरेंद्र प्रसाद स्मृति सभागार में संगोष्ठी आयोजित की गई।

 

कार्यक्रम की शुरुआत वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी कॉ. भोला जी द्वारा जनवादी गीतों की प्रस्तुति से हुई।

 

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जसम राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य प्रो. सुरेंद्र सुमन ने कहा कि कॉमरेड महेश्वर बिहार के धधकते खेत–खलिहान में नक्सलबाड़ी धमक की अनुगूंज के शिल्पी सेनानी थे। बिहार में नक्सलबाड़ी आंदोलन की शुरुआत भोजपुर में ब्राह्मणवादी–सामंती जुल्म के खिलाफ हुई थी। उस दौर में नक्सलबाड़ी आंदोलन के खासमखास योद्धा कवि, गीतकार एवं कथाकार के रूप में कॉमरेड महेश्वर का उदय हुआ था। हतोत्साह को परमोत्साह में परिणत कर देने वाले सृजनकर्म के अमर गायक कॉ. महेश्वर के गीत ‘सृष्टि बीज का नाश न हो हर मौसम की तैयारी है, कल का गीत लिए होठों पर आज लड़ाई जारी है’ हर दौर के इंकलाबी संस्कृतिकर्मियों की जुबान पर रहता है। महेश्वर भीषण से भीषण परिस्थिति में भी हमें आगाह करते रहे कि आदमी को हर हाल में निर्णायक होना चाहिए। उनके द्वारा जीवन के अंतिम क्षणों में कहा गया यह वाक्य कि पार्टी हमेशा जीवन देती है, हमलोगाें के लिए प्रेरणास्रोत है। उनके निधन के समय भाकपा–माले के राष्ट्रीय महासचिव कॉ. विनोद मिश्र ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए ठीक ही कहा था कि आज जन सांस्कृतिक आंदोलन का सबसे तीक्ष्ण मस्तिष्क ने सोचना बंद कर दिया। आज जन सांस्कृतिक आंदोलन उनकी कमी शिद्दत से महसूस करता है।

 

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जसम जिलाध्यक्ष डॉ. रामबाबू आर्य ने कहा कि कॉ. महेश्वर जन संस्कृति मंच और हिरावल के संस्थापकों में से एक थे। उन्होंने जनवादी लड़ाई के साथ–साथ बिहार में सांस्कृतिक जनवाद का परचम लहराया। आज के घोर राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संकटों के दौर में महेश्वर जी हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं कि हमलोग जीवट के साथ दुर्धर्ष योद्धा की तरह सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तन के लिए महेश्वर जी की तरह मैदान में डटे रहें!

 

जसम राज्यकार्यकारिणी सदस्य डॉ. संजय कुमार ने कहा कि इस घोर पूंजीवादी दौर में मुख्यधारा के संचार माध्यम में जिस प्रकार सत्ता का स्तुतिगान हो रहा है, वैसी स्थिति में प्रतिरोधी विचारों की अभिव्यक्ति सड़कों पर जनता से सीधे संवाद स्थापित करके ही हो सकती है। महेश्वर जी द्वारा स्थापित हीरावल संस्था जनपक्षधर आवाज की प्रखर अभिव्यक्ति इसी रूप में किया था। आज हीरावाल जैसे संगठनों की आवश्यकता कहीं अधिक है।

 

जसम जिला सचिव समीर ने कहा कि महेश्वर ने जनवादी संघर्षों को अपने लेखन व संस्कृतिकर्म से अभूतपूर्व ऊंचाई प्रदान की। आलोचना जगत में उन पर एक साजिशन चुप्पी साध ली गई है, जिसे तोड़े बिना आलोचना का जनवादी स्वरूप विकसित नहीं हो सकता है। फासिस्ट सत्ता संस्कृति से दो–दो हाथ करने के लिए महेश्वर की प्रतिबद्धता एवं जन सांस्कृतिक चेतना हमें हमेशा शक्ति प्रदान करती रहेगी।

 

युवा कवि रूपक कुमार ने कहा कि महेश्वर की रचना ‘परचम बनता आंचल’ स्त्रीवाद का अनिवार्य पाठ है।

 

मौके पर बबिता कुमारी, डॉ. अनामिका सुमन, पीयूष सुमन आदि उपस्थित रहे।

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