डॉ अशोक कुमार मेहता के मैथिली गीत संग्रह ‘पंछी बनी गगन केर…’ का लोकार्पण

गीत साहित्य को जीवंत बनाने वाली विधा है। यह साहित्य और समाज के बीच पनप रही दूरी को पाटने में सर्वथा सक्षम है। गेय धर्मिता में सोलहो शृंगार का सौंदर्य निहित होता है। मैथिली में गीत लेखन की निरंतरता इसका जीवंत प्रमाण है। यह बात रविवार को मैथिली के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अशोक कुमार मेहता के काव्य संग्रह ‘पंछी बनी गगन के…’ के लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए मैथिली के मूर्धन्य साहित्यकार डॉ भीमनाथ झा ने कही। उन्होंने कहा कि डॉ अशोक कुमार मेहता रचित गीत संग्रह ‘पंछी बनी गगन के…’ पाठकों को नवीन ऊर्जा प्रदान करने वाला है। इस काव्य संग्रह में रचनाकार ने अपने सृजन सामर्थ्य से बखूबी अवगत कराया है। संग्रह में संकलित पचास सृजन पुष्प के साथ इसके भाव का जीवंत चित्रण करती अनुप्रिया के रेखाचित्र इसकी विशेषता हैं। इससे पहले रचनाकार की धर्मपत्नी पुष्पलता कुमारी ने मंचासीन अतिथियों के साथ मिलकर रचना संग्रह का लोकार्पण किया। मौके पर रचनाकार ने संग्रह के पहले एवं अंतिम गीत को सस्वर प्रस्तुत किया।
लोकार्पण समारोह में विद्यापति सेवा संस्थान के महासचिव डॉ बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने कहा कि डॉ अशोक कुमार मेहता के रचना संग्रह में पारंपरिक शब्दों का प्रयोग यह सद्य: संकेत करता है कि रचनाकार अपनी मातृभाषा के धरोहर शब्दों को जीवंत बनाये रखने के प्रति कितने संवेदनशील हैं। उन्होंने कहा कि डॉ मेहता ने अपनी इस कृति में एक सुंदर पहल की है, जो न सिर्फ सराहनीय है, बल्कि आने वाले युवा रचनाकारों के लिए अनुकरणीय भी है। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के मानविकी संकाय के अध्यक्ष प्रो चंद्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा कि गैर साहित्यिक कार्य में व्यस्त रहने के बावजूद साहित्य सृजन के प्रति डॉ अशोक कुमार मेहता की लगनशीलता यह साबित करता है कि उनका अपनी मातृभाषा के प्रति कितना गहरा लगाव है। उन्होंने कहा कि वर्तमान अमानवीय दौर में जहां मानवता खत्म हो रही है, ऐसे समय में रचनाकार ने प्रेम बंधन को आधार बनाकर व्यक्ति को प्रकृति से जोड़ने का उत्कृष्ट कार्य किया है।
लेखक रमेश ने कहा कि डॉ अशोक कुमार मेहता ने अपनी रचनाओं को लोक जीवन से सीधे जोड़कर गीत सृजन का बेहतर उदाहरण प्रस्तुत किया है। उनकी भाषा का सुगठन रचना संग्रह का अद्भुत सौंदर्य होने के साथ-साथ सुगीत सर्जन का अनुपम उदाहरण है। रचना संग्रह की समीक्षा करते हुए डॉ अमलेंदु शेखर पाठक ने कहा आज साहित्य अकादमी से सम्मानित गीतकार उपेंद्र ठाकुर मोहन की जयंती पर डॉ अशोक कुमार मेहता के गीत संग्रह का लोकार्पण होना एक सुखद संयोग है। उन्होंने कहा कि समाज के लिए प्रेम गीत सिर्फ साहित्यिक या दैहिक सौंदर्य मात्र ना होकर यह नैसर्गिक भी हो, इसे ध्यान में रखते हुए डॉ अशोक कुमार मेहता ने आशावादी गीतों का भावपूर्ण सृजन किया है। यह न सिर्फ यथार्थ के साथ शाश्वत अवधारणा का पोषक है, बल्कि डॉ मेहता के गीतों में ठेठ मैथिली शब्दों के निम्मन शब्दों के प्रयोग करने से यह काव्य गगन के पंछी बनकर मैथिली साहित्य की श्रीवृद्धि करने वाला साबित होगा। लोकार्पण समारोह में हीरेंद्र कुमार झा ने भी अपने विचार रखे। अनुप्रास प्रकाशन समूह के प्रबंधक दीप नारायण के संचालन में आयोजित कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन मोहित ठाकुर ने किया। डॉ मेहता के निज आवास पर आयोजित लोकार्पण समारोह में डॉ अरुण कुमार सिंह, डॉ सुरेश पासवान, गणपति झा, प्रो रमेश झा, डॉ योगानंद झा, डॉ मुरलीधर झा, डॉ मंजर सुलेमान, एस एम रिजवानुल्लाह, डॉ दमन कुमार झा, डॉ सुनीता झा, चंद्रेश, प्रवीण कुमार झा एवं रामेश्वर महतो सहित चार दर्जन से अधिक प्रबुद्ध एवं युवा साहित्यकारों की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।
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